अमरीका से भी अधिक समृद्ध होता
इस में कोई शक नहीं कि अगर भारत गुलाम नहीं होता तो अमरीका से भी अधिक समृद्ध होता। देश की आजादी, भुखमरी, महामारियों और अत्याचार के कारण लाखों लोग दुनिया से विदा हो गए। देश आजाद होता तो ये सब देश की तरक्की में सहायक बनते। भारत लगभग 200 साल तक गुलाम रहा, जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बाद ब्रिटिश साम्राज्य भारत पर अपना शासन चलाता था। ब्रिटिश शासन की शुरुआत 1757 में हुई थी और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बाद भारत सन 1947 में आजाद हुआ थाभुखमरी न होती, हालात कुछ और होते
भारतीय सांख्यिकी के महानिदेशक सर विलियम हंटर ने लिखा है कि तब भारत में 4 करोड़ लोग ऎसे थे, जो कभी भी अपना पेट नहीं भर पाते थे। भूख और गरीबी की ओर धकेल दिए गए समृद्ध भारतीय शारीरिक दृष्टि से कमजोर होकर महामारी के शिकार होने लगे। वहीं सन 1901 में विदेश से आए प्लेग के कारण 2 लाख 72 हजार भारतीय मर गए, 1902 में 50 लाख भारतीय मरे, 1903 में 8 लाख भारतीय मारे गए और 1904 में 10 लाख भारतीय भूख, कुपोषण और प्लेग जैसी महामारी के कारण मारे गए। सन 1918 में 12 करोड़ 50 लाख भारतीय इनफ्लूएंजा रोग के शिकार हुए, जिनमें से 1 करोड़ 25 लाख लोगों की मौत सरकारी तौर पर दर्ज हुई।आजादी के लिए शहीद
सन 1857 से 1947 तक भारत के बहुत से लोग देश के लिए शहीद हुए। इन शहीदों की संख्या 3300 बताई गई है, लेकिन इससे कहीं ज्यादा लोग शहीद हुए हैं। अंग्रेजों के अत्याचार का शिकार होने पर मरने वालों की तादाद भी अधिक है।जलियांवाला बाग नरसंहार न होता
अगर भारत गुलाम न होता तो पंजाब के अमृतसर में जलियांवाला बाग नरसंहार न होता। मारे गए लोगों का अनुमान 379 से 1,500 या अधिक लोगों तक है, 1,200 से अधिक अन्य घायल हुए, जिनमें से 192 को गंभीर चोटें आईं। हालांकि ब्रिटेन ने नरसंहार के लिए कभी भी औपचारिक रूप से माफी नहीं मांगी, लेकिन 2019 में “गहरा खेद” व्यक्त किया हैआर्थिक तंगी न होती और भ्रष्टाचार न होता
अगर ब्रिटिशर्स भारत न आते तो भारत का थिंक टैंक और यूथ पॉवर जिंदा होता और अपनी ताकत और अक्ल देश की तरक्की में लगाता। भारत का खजाना खाली न होता। अंग्रेजों ने भारत के राजा महराजाओं को भ्रष्ट करके भारत को गुलाम बनाया। उसके बाद उन्होने योजनाबद्ध तरीके से भारत में भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया और भ्रष्टाचार को गुलाम बनाये रखने के प्रभावी हथियार की तरह इस्तेमाल किया। देश में भ्रष्टाचार भले ही वर्तमान में सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है, लेकिन भ्रष्टाचार ब्रिटिश शासनकाल में ही होने लगा था जो हमारे राजनेताओं को विरासत में दे गए थेभारत में ईस्ट इंडिया कंपनी का आने से सब तबाह
भारत छोड़ कर जाते-जाते भी अंग्रेजों की कुटिल बुद्धि ने भारत को और भी तबाह करने की बात सोच ली थी। इसीलिए एक लंबे अरसे से षड़यन्त्रपूर्वक इस देश में में नफरत फैलाना शुरू कर दिया था। धर्मेन्द्र गौड़ की पुस्तक “मैं अंग्रेजों का जासूस था” उनकी ओर से भारत छोड़ने के नफरत फैलाने का साक्ष्य है। भारत को विभाजन की आग में झोंकने की साजिश पहले से ही रच रखी थी।अराजकता और गरीबी न होती
भारत में इतनी अधिक अराजकता ब्रिटिशर्स के भारत आने से पहले कभी नहीं थी। गरीबी, सामान्य राजनीति और प्रशासनिक भ्रष्टाचार अंग्रेजों की देन है, तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। मुंबई के प्रसिद्ध प्रकाशक और व्यवसायी शानबाग लेखकों और साहित्यकारों में काफी प्रसिद्ध रहे हैं। फोर्ट में उनकी पुस्तकों की दुकान स्ट्रेंड बुक स्टाल एक ग्रंथ तीर्थ ही माना जाता है।भारत विश्व का मातृ संस्थान था
इतिहासकार व चिंतक विल डूरा की पुस्तक “द केस फॉर इंडिया” में लिखा है कि भारत केवल एक राष्ट्र ही नहीं था, बल्कि सभ्यता, संस्कृति और भाषा में विश्व का मातृ संस्थान था। भारतभूमि हमारे दर्शन, संस्कृति और सभ्यता की मां कही जा सकती है। विश्व का ऎसा कोई श्रेष्ठता का क्षेत्र नहीं था, जिसमें भारत ने सर्वोच्च स्थान न हासिल किया हो। चाहे वह वस्त्र निर्माण हो, आभूषण और जवाहरात का क्षेत्र हो, कविता और साहित्य का क्षेत्र हो, बर्तनों और महान वास्तुशिल्प का क्षेत्र हो अथवा समुद्री जहाज का निर्माण क्षेत्र हो, हर क्षेत्र में भारत ने दुनिया को अपना प्रभाव दिखाया।