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नया अध्यायः चीन के हस्तक्षेप से अरब दुनिया में गिर रही है शिया और सुन्नी की दीवार

चीन की मध्यस्थता में सऊदी अरब और ईरान में राजनयिक संबंध सामान्य होने की ओर हैं। लेकिन गौर से देखें तो यह बदलाव सिर्फ सऊदी अरब और ईरान में संबंध बहाली का मसला नहीं है।

Apr 13, 2023 / 07:23 am

Swatantra Jain

China Impact: The wall of Shia and Sunni is falling in the Arab world

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चीन की मध्यस्थता में सऊदी अरब और ईरान में राजनयिक संबंध सामान्य होने की ओर हैं। लेकिन गौर से देखें तो यह बदलाव सिर्फ सऊदी अरब और ईरान में संबंध बहाली का मसला नहीं है। पश्चिम एशिया में कई ऐसी हलचलें नजर आ रही हैं जो पूरी अरब दुनिया में नए अध्याय की कहानी लिखते नजर आ रहे हैं। इसकी एक बानगी तब मिली थी जब इजराइली सुरक्षा बलों ने कुछ फलस्तीनी प्रदर्शनकारियों का पीछा करते हुए अल अक्सा मस्जिद के अंदर घुस कर कार्रवाई की थी।
अल-अक्सा मस्जिद पर एक हुए अरब देश
इजराइली पुलिस की कार्रवाई के बाद सभी अरब देशों ने एकजुट होकर इजराइल की कड़े शब्दों में निंदा करते हुए चेतावनी जारी की है। अरब दुनिया के तीन अहम देश ईरान, तुर्की और सऊदी अरब भी इस मुद्दे पर एक साथ खड़े दिख रहे हैं। तुर्की के राष्ट्रपति रैचप तैय्यप अर्देआन ने इस मुद्दे पर सभी इस्लामिक देशों को एकजुट होने की अपील की है। इस्लामिक देशों के संगठन (आर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन-ओआईसी) ने इस मसले पर एक मीटिंग कर बयान जारी किया है। बयान का सख्त लहजा क्षेत्र में तनाव के साथ अरब देशों की एकजुटता का भी अंदाज देता है। बयान में ओआईसी ने इजराइल को हमलावर, कब्ज़ा करने वाला, आक्रमणकारी करार देते हुए कार्रवाई को बर्बर करार दिया है। बयान में इजराइल को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों, संयुक्त राष्ट्र के नियमों, संधियों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया है। चीन ने ये मुद्दा यून में भी उठाने की बात कही है।
फिर अरब लीग में शामिल होगा सीरिया
इस बदलाव की तस्वीर सीरिया में भी दिख रही है। लंबे समय से शिया समुदाय से आने वाले सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद के साथ रूस और ईरान ही खड़े रहे हैं और अमरीका के मित्र सऊदी अरब के नेतृत्व में अरब देश इसके खिलाफ एकजुट एकजुट रहे हैं। लेकिन पश्चिम एशिया में जो अभी बयार बह रही है, उसमें ऐसा लग रहा है कि शिया और सुन्नी की दीवार भी गिर जाएगी.
सऊदी अरब सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल-असद को 19 मई से रियाद में शुरू होने जा रहे अरब लीग समिट में बुलाने जा रहा है। जबकि 2011 में सीरिया को अरब लीग से बाहर कर दिया गया था। गौर करें, राष्ट्रपति बशर अल-असद शिया मुस्लिम हैं और सीरिया की बहुसंख्यक आबादी सुन्नी है।
यमन में भी शांति

ईरान और सऊदी की दोस्ती की असर यहां भी दिख रहा है। 2015 से यमन में सऊदी अरब और ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों की खूनी जंग चल रही है। अब इसका भी अंत होता दिख रहा है। आठ अप्रैल यानी शनिवार को सऊदी और ओमानी वार्ताकारों में बातचीत का पहला दौर शुरू हो चुका है।
कहा जा रहा है कि ईद के पहले यमन में युद्ध के अंत की घोषणा हो सकती है। इससे जल्दी ही यमन के खिलाफ नाकाबंदी भी खत्म होगी ताकि उसे पोर्ट तक पहुँच मिले। सना का एयरपोर्ट खोला जाएगा। इसके बाद यमन से विदेशी सैनिकों की वापसी और कैदियों की रिहाई शुरू होगी।

अमरीका से दूर जा रही अरब दुनिया
सऊदी अरब के हाल के कई फैसलों को देखकर संकेत मिलता है कि वह अमरीका के इशारों पर काम करने के लिए तैयार नहीं है। सऊदी अरब अब बहुध्रुवीय दुनिया की बात कर रहा है। यूक्रेन रूस युद्ध के बीच सऊदी अरब ने चीन के साथ रूस से भी अपने करीबी संबंध बनाए हैं। कई मौकों पर अमरीका की परवाह किए बिना कच्चे तेल उत्पादन को कम करने के फैसले लिए हैं।
कहा जा रहा है कि सऊदी अरब अपनी इस नई स्वतंत्र विदेशी नीति और कूटनीतिक प्रयासों के जरिए अगर क्षेत्रीय स्थिरता बहाल करने में कामयाब रहता है तो पश्चिम एशिया पर इसका गहरा असर पड़ेगा।
इराक में कार्रवाई से अमरीका के खिलाफ जनमत

कई एक्सपर्ट का मत है कि अमरीका ने जिस तरह से सामूहिक विनाश के हथियारों के नाम पर सद्दाम हुसैन के खिलाफ एक तरफा कार्रवाई की थी, उससे पश्चिम एशिया में अमरीका के खिलाफ जनमत बना है। इराक में किए गए एक सर्वे में अधिकांश इराकी अमरीका की कार्रवाई को गलत मानते हैं और चाहते हैं कि अमरीका उनके देश से पूरी तरह निकल जाए।
ईरान और सऊदी में मौजूज हैं तनाव के बिंदु

सऊदी अरब और ईरान के बीच अब भी कई टकराव के बिंदु हैं। ईरान फलस्तीन में हमास का समर्थन करता है, सऊदी इसके विरोध में है। ईरान मुस्लिम ब्रदरहुड के साथ भी दिखता है और सऊदी को यह पसंद नहीं है।
भारत के लिए भी चिंता

जानकारों का कहना है कि चीन जिस तैयारी के साथ पश्चिम एशिया में पांव जमा रहा है, उससे आने वाले दिनों में भारत के लिए कई तरह की मुश्किलें होंगी। इसलिए भारत को अब पश्चिम एशिया में नए सिरे से इजराइल जैसे देशों से अपने संबंध तय करने होंगे। भारत के यहां यूएई जैस मित्र देशों की संख्या बढ़ानी होगी, जो मुस्लिम देश पाकिस्तान की उपेक्षा करते हुए कश्मीर में निवेश कर रहा है।

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