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दादा खरीदे, पीढ़ियां बरतें…5730 साल चलने वाली बैटरी तैयार, जानिए इसकी खासियत

Carbon-14 Diamond Battery: ब्रिटेन की ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों को दुनिया की पहली न्यूक्लियर-डायमंड बैटरी बनाने में कामयाबी मिली है।

नई दिल्लीDec 18, 2024 / 09:08 am

Shaitan Prajapat

Carbon-14 Diamond Battery: ब्रिटेन की ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों को दुनिया की पहली न्यूक्लियर-डायमंड बैटरी बनाने में कामयाबी मिली है। यह किसी भी तरह के छोटे इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस को हजारों साल तक ऊर्जा प्रदान कर सकती है। इसमें कार्बन-14 नाम का रेडियोएक्टिव पदार्थ और हीरा मिलकर बिजली पैदा करते हैं। रेडियोएक्टिव पदार्थ की हाफ लाइफ 5730 साल है। यानी डिवाइस अगर इतने साल चल सकता हो तो उसे बैटरी से ऊर्जा मिलती रहेगी।
लाइव साइंस की रिपोर्ट के मुताबिक बैटरी बनाने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि इसे चलाने के लिए किसी तरह के मोशन की जरूरत नहीं है। इसमें कॉयल के अंदर मैग्नेट नहीं घुमाया जाता। यह किसी भी पारंपरिक बैटरी या बिजली पैदा करने वाले यंत्र से कई गुना बेहतर है। इसके अंदर रेडिएशन के कारण इलेक्ट्रॉन्स तेजी से घूमते हैं और बिजली पैदा होती है। यह उसी तरह की प्रक्रिया है, जैसे सोलर पावर के लिए फोटोवोल्टिक सेल्स का इस्तेमाल किया जाता है और फोटोन्स को बिजली में बदला जाता है।
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सबसे कठोर पदार्थ, इसलिए ज्यादा सुरक्षित

ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक नील पॉक्स का कहना है कि दुनिया का सबसे कठोर पदार्थ होने के कारण हीरे को बैटरी के लिए सबसे सुरक्षित माना गया। कार्बन-14 प्राकृतिक तरीके से पैदा होता है। इसका इस्तेमाल परमाणु संयंत्रों को नियंत्रित करने के लिए भी किया जाता है। कार्बन-14 को खुले हाथों से नहीं छुआ जा सकता और न निगला जा सकता है। इसलिए यह जानलेवा साबित नहीं हो सकता।
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4.4 प्रकाश वर्ष की दूरी नापेगा यान

वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर भविष्य में रेडियोएक्टिव पदार्थ और हीरे की बैटरी से किसी अंतरिक्ष यान को लैस किया जाए तो पृथ्वी के सबसे नजदीकी अल्फा सेंटौरी (विशेष तारा) की 4.4 प्रकाश वर्ष (41.8 ट्रिलियन किमी) की दूरी तय करने में यान को किसी और ऊर्जा स्रोत की जरूरत नहीं होगी। कार्बन-14 से ज्यादा रेडिएशन नहीं होता। यह आसानी से किसी भी ठोस पदार्थ में अवशोषित हो जाता है।

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