ऐसा क्या जादू किया ?
लोगों को इस बात पर ताज्जुब हो रहा है कि आखिर जादूगर गहलोत ने ऐसा क्या जादू किया कि वे कांग्रेस के एक छोटे सिपाही को यह सीट जिताने में कामयाब रहे और उनकी गांधीवादी और सादगी की रणनीति से कांग्रेस को गांधी परिवार की परंपरागत सीट वापस मिल गई। जानिए, सियासत के ये राज :बूस्टर डोज से किया बूस्ट अप
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सियासत के ” चाणक्य” और “जादूगर” कहे जाने वाले राष्ट्रीय नेता अशोक गहलोत एक बाजीगर की तरह बाजी खेलते हैं। उनके बारे में एक बात कही जाती है कि वे जब भी कोई काम करते हैं तो उसका कोई न कोई अर्थ होता है। उनकी रणनीति, कूटनीति और रेमेडी ऐसी होती है कि अंतिम समय तक अपने पत्ते नहीं खोलते हैं और उसके बाद अचानक चुपके से ऐसा दांव खेलते हैं कि प्रतिद्वंद्वी को सोचने का समय ही नहीं मिलता कि वह हार गया है। उन्होंने अंडर करंट को भांप कर गेम खेला। वहीं कार्यकर्ताओं को बूस्टर डोज दे कर उन्हें बूस्ट अप किया।“नया दांव -नया खेल” थीम पर काम
राष्ट्रीय राजधानी के सियासी गलियारों में चर्चा है कि लोग इस बात भी हैरत कर रहे हैं कि ,गांधी परिवार का सदस्य न होने पर के बावजूद देश की परंपरागत सबसे हॉट सीट अमेठी से कांग्रेस उम्मीदवार केएल शर्मा जीत गए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ( Narendra Modi )की नजदीकी केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ( Smriti Irani) यह सीट हार गईं। ध्यान रहे कि पिछले अनुभव को देखते हुए कांग्रेस के लिए मुश्किल यह थी कि जब गांधी परिवार का उम्मीदवार मैदान में हो तो भाजपा बहुत आक्रामक हो जाती है। इसलिए गहलोत ने “नया दांव -नया खेल” थीम पर काम किया।अंदर की बात और “जादूगर” की रणनीति
॰सोनिया गांधी ने अनुभवी अशोक गहलोत को परंपरागत सदस्य मानते हुए उन्हें अमेठी का जिम्मा सौंपा।॰ अशोक गहलोत सन 1981 में भी राजीव गांधी ( Rajiv Gnadhi) के पहले लोकसभा चुनाव में एक महीने तक अमेठी में कार्य कर चुके थे और उसके बाद 2017 में भी चुनाव की बागडोर संभाल चुके हैं।
॰ गहलोत लंबे समय तक उतर प्रदेश के ए आई सी सी प्रभारी महासचिव रह चुके हैं, इसलिए उन्हें यू पी की राजनीति की गहरी समझ है।
॰ गांधी परिवार की परंपरागत अमेठी सीट के स्थानीय कांग्रेस कार्यकर्ताओं और नेताओं में गहलोत बहुत लोकप्रिय हैं।
॰ गहलोत के राजस्थान में मुख्यमंत्री काल की लोक कल्याणकारी योजनाएं यूपी सहित अमेठी के आम लोगों में चर्चित हैं।
॰ कांग्रेस आलाकमान को मालूम है कि गहलोत की संगठनात्मक क्षमता बहुत विलक्षण है, इसलिए एक कार्यकर्ता को टिकट दे कर उसका प्रबंधन गहलोत को दिया गया।
॰ गहलोत के व्यक्तित्व से समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता भी बहुत प्रभावित हैं और इस दृष्टि कांग्रेस के साथ सामंजस्य बैठाने में गहलोत को चुनावी कमान सौंपी गई।
यूं चला जादूगर का जादू
॰अशोक गहलोत ने अमेठी में स्थानीय संगठन व प्रत्याशी की रणनीति व योजना को छेड़े बिना अपने साथ राजस्थान से अपने विश्वतस्त सांसद प्रत्याशी, विधायक व मंत्री स्तर के 200 से अधिक कार्यकर्ताओं को वहां ब्लॉकवार व पंचायतवार ज़िम्मेदारियां दीं।॰गहलोत ने अपनी राजस्थानी टीम को सीधे ग्राउंड पर कार्य करने में झोंका और वहां के स्थानीय कार्यकर्ताओं को मज़बूती देने व उन्हें सक्रिय रखने की जवाबदेही तय की, इस रिपोर्ट की गहलोत खुद समीक्षा करते थे।
॰ गहलोत ने सोशल मीडिया व कंट्रोल रूम की टीम भी साथ लेकर अमेठी गए थे।
॰ गहलोत की ओर से राजस्थान से गये अपने भरोसेमंद नेताओं को निर्देश थे कि वे अपनी गाड़ी साथ लेकर आएं और अपने खर्चे पर ही ठहरने व खाने की व्यवस्था करें और किसी प्रकार का खर्चा प्रत्याशी या संगठन से नहीं लें। पार्टी फंड की बचत हुई और इससे वोटर्स को सादगी पसंद आई।
10 दिन में अमेठी का माहौल बदला
॰ उन्होंने स्वयं सभी विधानसभा क्षेत्रों व ब्लाकों में मीटिंग व रोड शो किया, इससे मतदाताओं में अच्छा संदेश गया।॰ गहलोत ने अमेठी में अपना निवास कैंप होटल के बजाय एक सामान्य कार्यकर्ता के घर को चुना, जिसमें अटैच बाथरूम भी नहीं था और वहां पर ही रहना, खाना और आमजन से सहज रूप से मिलते थे।
॰ गहलोत ने यहां के जातिगत नेताओं व सामाजिक संगठनों को सक्रिय करने व उन्हें कांग्रेस के पक्ष में मतदान करने के लिए प्रेरित किया।
॰ स्मृति ईरानी की रणनीति को धराशायी करते हुए गहलोत ने 10 दिन में अपनी टीम के साथ अमेठी का माहौल ही बदल दिया।