प्रवासी भारतीयों के 6 सवाल, राहुल के जवाब
महिला अधिकारिता संगठन का सवाल: “महिला आरक्षण बिल लंबे समय से कोर्ट में है। एक कांग्रेस नेता के रूप में इस बिल पर और इसके कोर्ट में होने पर आपके क्या विचार हैं? आप इससे निपटने के लिए क्या करेंगे? भारत में महिलाओं की सुरक्षा एक अहम और कठिन मुद्दा है। ऐसे में हम भारत में लड़कियों की अगली पीढ़ी को क्या देने जा रहे हैं?”
राहुल का जवाब: “महिला आरक्षण बिल के लिए हम प्रतिबद्ध हैं। जब हम सत्ता में थे, तब इसे पास करना चाहते थे। लेकिन हमारे कुछ सहयोगी दल इसके खिलाफ थे और उन्होंने इसे समर्थन नहीं दिया। पर मुझे विश्वास है जब हम सत्ता में आएंगे तो हम महिला आरक्षण बिल को पास कर देंगे।”
“आपके दूसरे सवाल के जवाब का एक हिस्सा पहले सवाल में निहित है। अगर हम महिलाओं को सशक्त करते हैं, अगर हम महिलाओं को राजनीतिक व्यवस्था में शामिल करते हैं, अगर हम महिलाओं को देश के शासन में जगह देते हैं, अगर हम महिलाओं को देश के बिज़नेस में जगह देते हैं, तो हम उन्हें सुरक्षित बना सकते हैं। इसलिए उन्हें राजनीति में शामिल करना, उन्हें बिज़नेस में शामिल करना, देश चलाने में उन्हें शामिल करना ही उन्हें शक्ति और सुरक्षा देने का तरीका है।”
तमिल सामुदायिक संगठन का सवाल: “संयुक्त राज्य अमरीका की तरह भारत को एक सच्चा संयुक्त राज्य भारत बनाने के बारे में आपका क्या विचार है?”
राहुल का जवाब: “संविधान पर गौर किया जाए, तो इसमें भारत की परिभाषा राज्यों का संघ है। हमारे संविधान में यह विचार है कि हमारे देश के हर राज्य की भाषाओं, संस्कृतियों, इतिहासों को संघ की तहत संरक्षित किया जाना है। आप जिस बारे में बात कर रहे हैं वह हमारे संविधान में पहले से ही है। भाजपा और आरएसएस उस विचार के साथ ही संविधान पर भी हमला कर रहे हैं। यह फैक्ट है।”
“मुझे लगता है कि तमिल लोगों के लिए तमिल भाषा सिर्फ एक भाषा नहीं, बल्कि एक भाषा से बढ़कर है। यह उनका इतिहास, संस्कृति और जीवन शैली है। मैं कभी भी तमिल भाषा को खतरे में नहीं पड़ने दूंगा। मेरा मानना है कि तमिल भाषा को धमकी देना भारत के विचार को खतरे में डालना है। जैसे बंगाली को धमकी देना, या कन्नड़ को धमकी देना, या हिंदी को धमकी देना, पंजाबी को धमकी देना, ये सब भारत के उसी विचार पर हमले हैं। हमारी ताकत विविधता से आती है, जो दूसरे कई देशों से अलग है और इस बात को स्वीकारने से कि हम सब अलग हैं लेकिन हम एक साथ काम कर सकते हैं। और इस विचार की आप और कांग्रेस पार्टी रक्षा कर रहे हैं।”
ईसाई समुदाय का सवाल: “लोकसभा की सीटें बढ़कर 888 हो रही हैं। यह पूरी तरह देश की जनसंख्या पर आधारित होने जा रहा है। इससे ज़्यादा आबादी वाले राज्यों की ओर उन्मुखीकरण बढ़ेगा, जिससे उन्हें राजस्व के साथ-साथ ज़्यादा फायदा मिलेगा। इस पर आपका क्या विचार है?”
राहुल का जवाब: “सरकार इसे किस तरह से करने की सोच रही है, मुझे वो देखना होगा। मुझे लगता है कि किसी देश के प्रतिनिधि ढांचे को बदलते समय बहुत सावधानी रखनी ज़रूरी है। इसलिए मैं यह समझना चाहूंगा कि सरकार सीटों के लिए 888 नंबर के साथ किस आधार पर आई है और इसके लिए सरकार किस मापदंड का इस्तेमाल कर रही है। इन कामों को करते समय लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए। भारत एक संवाद है। भारत अपनी भाषाओं, अपने लोगों, अपने इतिहास और संस्कृतियों के बीच एक वार्तालाप है और इस वार्तालाप का निष्पक्ष होना ज़रूरी है। भारत के सभी हिस्सों को यह महसूस करना चाहिए कि वार्तालाप की यह प्रक्रिया निष्पक्ष है। मुझे ये देखना होगा कि सरकार किस तरह सीटों के लिए 888 नंबर पर पहुंची और इसके लिए उनका डिजाइन क्या है। ये देखने के बाद मैं जवाब दे पाऊंगा कि क्या मैं 888 नंबर से सहमत हूं। लेकिन अभी मुझे नहीं पता कि सरकार किस तरह सीटों की नई गिनती कर रही है।”
“मेरा मानना है कि संसद भवन और इस तरह की दूसरी बातें भारत में असली मुद्दे जैसे बेरोजगारी, महंगाई, गुस्से, नफरत का बढ़ना, चरमराती शिक्षा व्यवस्था, शिक्षा की कीमत, हेल्थकेयर की कीमत आदि से ध्यान भटकाने के लिए है। बीजेपी उन पर चर्चा नहीं कर सकती है, इसलिए उन्हें सेंगोल/राजदंड की पूरी बात करनी होगी।”
छात्र समुदाय का सवाल: “हम भारत वापस जाकर अपने देश का प्रतिनिधित्व करना चाहते हैं। लेकिन हम देखते हैं कि हाल के दिनों में एथलीटों, युवाओं, पहलवानों के साथ जिस तरह का व्यवहार किया गया, वह बहुत ही खराब और मर्यादाहीन है। हम बहुत निराश महसूस करते हैं। अपने देश वापस जाने की इच्छा वापस जागृह हो, इसके लिए आप हमसे क्या कहेंगे?”
राहुल का जवाब: “यह एक तोड़-मदद कर पेश की गई बात है। भारत वो नहीं है जो मीडिया दिखाता है। मीडिया को एक खास नैरेटिव दिखाना पसंद है, जो भारत में नहीं चल रहा है। मीडिया उन चीज़ों को दिखाना पसंद करता है जिनसे बीजेपी को फायदा मिलता है। इसलिए आपको यह नहीं सोचना चाहिए कि मीडिया सिर्फ सच ही दिखता है। आप युवा हैं और देश ज़रूरत है। आपका कौशल और ऊर्जा देश के बहुत काम आएगी। इसलिए अगर आपका वापस देश जाने का मन करता है तो आपको देश वापस जाना चाहिए और देश की मदद करनी चाहिए।”
आंबेकर समुदाय का सवाल: “भारतीय उपमहाद्वीप और वैश्विक स्तर पर फेसिज़्म की स्थिति पैदा करने वाली आर्थिक और सामाजिक असमानता को दूर करने के लिए भारतीय राष्ट्र कांग्रेस की क्या योजना है?”
राहुल का जवाब: “जब हम सरकार में थे, हमने एक जातिगत जनगणना की थी। इसे करने की वजह देश की सटीक जनसांख्यिकी पता लगाकर भारतीय समाज का एक्स-रे लेना थी। देश में कौन कौन है, धन, शक्ति को प्रभावी ढंग से बांटना और वो भी बिना जनसांख्यिकी को समझे बहुत मुश्किल है। हम बीजेपी सरकार पर जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी करने का दबाव डाल रहे हैं। वो ऐसा नहीं कर रहे हैं पर हम दबाव बनाते रहेंगे।”
“अगर हम सत्ता में आए तो हम ऐसा करेंगे। कांग्रेस पार्टी भारत को एक निष्पक्ष रराष्ट्रा बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम इस बात को समझते हैं कि दलितों, आदिवासियों, गरीबों, अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार के मामले में भारत आज एक उचित जगह नहीं है। इसके अलावा भी बहुत कुछ है जो किया जा सकता है। न्याय योजना, जिसका उद्देश्य सभी भारतीयों को न्यूनतम आय प्रदान करना था, मनरेगा इसी तरह के विचार हैं जो किए जाने चाहिए। मुझे लगता है कि सार्वजनिक शिक्षा में इजाफा, सार्वजनिक हेल्थकेयर में इजाफा जैसी चीज़ें भारत को और ज़्यादा समान और निष्पक्ष स्थान बनाने के लिए की जा सकती हैं।”
मुस्लिम समुदाय का सवाल: “भारत में मुसलमानों को आज सुरक्षा का इतना खतरा महसूस होता है जितना पहले कभी नहीं होता था। आप कौन सी रणनीति अपना सकते हैं या भारतीय मुसलमानों को कौन सी उम्मीद दे रहे हैं जो हालत को उस स्थिति पर ला सकता है जहाँ हम थे और भारत को विकसित करने के लिए सामान्य धारा में वापस आ जाएंगे?”
राहुल का जवाब: “इस बात को समझाने के लिए मेरे पास एक बेहतरीन लाइन है और वो है ‘नफरत के बाज़ार में मोहब्बत की दुकान’। यह सबसे अच्छा तरीका है। मुस्लिम समुदाय अत्याचार को सबसे ज़्यादा महसूस करता है क्योंकि उनके साथ ऐसा सीधे तौर पर होता है। लेकिन ऐसा सभी अल्पसंख्यकों के साथ हो रहा है। जिस तरह आप लोगों पर हमला हो रहा है, मैं गारंटी दे सकता हूं कि मेरे सिख भाई भी ऐसा ही महसूस कर रहे हैं। मैं गारंटी दे सकता हूं कि मेरे ईसाई भाई-बहन भी ऐसा ही महसूस कर रहे हैं। मैं गारंटी दे सकता हूं कि दलित समुदाय भी ऐसा ही महसूस कर रहा है। आदिवासी समुदाय भी ऐसा ही महसूस कर रहा है।”
“सच तो यह है कि आज भारत में जो भी गरीब है, जब वह सीमित लोगों के पास बहुत ज़्यादा दौलत और संपत्ति देखता है तो उसे वैसा ही महसूस होता है जैसा आप महसूस करते हैं। वो सोचते हैं कि यह क्या हो रहा है कि मेरे पास खाने के लिए कुछ नहीं है पर इन पांच लोगों के पास लाखों करोड़ रुपये हैं। आप इसे सबसे ज़्यादा महसूस करते हैं क्योंकि आपके साथ यह आक्रामक तरीके से सबसे ज़्यादा हो रहा है। आप नफरत को नफरत से नहीं काट सकते। ऐसा करना असंभव है। भारत में समय-समय पर ऐसा होता रहता है। आज भारत में मुसलमानों के साथ जो हो रहा है, वो 1980 के दशक में दलितों के साथ हुआ था। हमें इससे लड़ना है, पर नफरत से नहीं, प्यार से। और हम ऐसा करेंगे।”