नेहा सेन
जबलपुर. शहपुरा की रहने वाली अनीता ठाकुर अपनी ममता गांव की बेटियों पर न्यौछावर कर रही हैं। वह उनके विवाह का जिम्मा स्वयं उठा रही हैं इसलिए उन्हें अब लोग ‘गांव की मम्मी’ कहने लगे हैं। वह आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखती हैं। वह गांव की 11 बेटियों की शादी स्वयं के खर्च पर करा चुकी हैं। अन्य गांवों में भी 8 से अधिक बेटियों का कन्यादान कर चुकी हैं। उनके इस काम की हर कोई तारीफ करता है।
हरिचरण यादव
भोपाल. पन्ना की समीना यूसुफ आदिवासी महिलाओं को मशरूम उत्पादन सिखाकर आत्मनिर्भर बना रही हैं। वह अब तक 129 महिलाओं को मशरूम उत्पादन से जोड़ चुकी है। इनमें कई परिवार हैं जो टीबी व सिलिकोसिस जैसी बीमारियों से भी लड़ रहे हैं, ये खुद भी मशरूम का उपयोग खाने में करते हैं, जो कि कुपोषण को दूर करने में सहायक हैं। दरअसल समीना के पति यूसुफ बैग लंबे समय से आदिवासियों के अधिकारों के लिए लड़ते रहे। अप्रैल 2021 में वह कोविड से जिंदगी की जंग हार गए। तभी समीना ने पति के अधूरे काम को पूरा करने का बीड़ा उठाया।
आकाश मिश्रा
जगदलपुर. बस्तर की आदिवासी महिलाएं बैम्बू आर्ट से लेकर ढोकरा कला व अन्य शिल्प कला से जुड़कर कलात्मक उत्पाद तैयार करती हैं। ट्राइबल टोकरी संस्था की फाउंडर प्रीति आर्या इन महिलाओं के हुनर को बाजार तक पहुंचा रही हैं। इससे इन महिलाओं को काम का उचित मेहनताना मिल पा रहा है। प्रीति बताती हैं कि यहां के बैम्बू आर्ट, ढोकरा आर्ट, सीशल, तूंवा, जूह, काष्ठ, टेराकोटा, लौह शिल्प के प्रचार प्रसार का काम उनकी संस्था कर रही है।