स्यूडोसाइसिस के मूल कारणोंं का पता नहीं है। वैसे फॉल्स प्रेग्नेंसी का सबसे बड़ा मुख्य कारण माना जाता है मानसिक दबाव। यह समस्या उन महिलाओं में देखी जाती है जिनमें मां बनने की तीव्र इच्छा होती है या जिन महिलाओं का बार-बार गर्भपात हो रहा हो। ऐसी महिलाओं के अंदर प्रेग्नेंसी जैसे लक्षण पैदा होने लगते हैं। जो बाद में फॉल्स प्रेग्नेंसी का कारण बनते हैं। इसके अलावा गरीबी, निरक्षरता और पति-पत्नी के बीच मधुर संबंध न होना भी फॉल्स प्रेग्नेंसी के कारण माने जाते हैं। इस समय महिला को परिवार के सहयोग और उनकी खास देखभाल की जरूरत होती है। उन्हें इस समय अकेले नहीं छोडऩा चाहिए।
लक्षण जानना जरूरी
फॉल्स प्रेग्नेंसी गर्भावस्था के शुरुआती लक्षण जैसे पीरियड्स न आना, पेट का फूला होना, ब्रेस्ट का बढऩा, भूख कम लगना, उल्टी आना और पेट में गैस का बनना जैसे लक्षण देखे जाते हैं।
प्रेग्नेंसी टेस्ट से किया जाता है कन्फर्म फॉल्स प्रेग्नेंसी के डायग्नोसिस के लिए कोई निश्चित परीक्षण नहीं है। कोई महिला गर्भवती है या नहीं, इसके बारे में जानने के लिए अल्ट्रासाउंड और प्रेग्नेंसी टेस्ट किया जाता है। स्त्री रोग विशेषज्ञ की सलाह लेना बेहद जरूरी है। यदि कोई महिला फॉल्स प्रेग्नेंसी से पीडि़त है तो उसकी इस समस्या को परिवार नजरअंदाज न करे। बल्कि समय पर डॉक्टर से इस संबंध में सलाह अवश्य लें ताकि समय पर उन्हें इलाज मिले और वे किसी भी तरह के मानसिक आघात से बच सकें।
चिकित्सकीय से ज्यादा मनोवैज्ञानिक समस्या फॉल्स प्रेग्नेंसी का इलाज करना बहुत मुश्किल है क्योंकि यह एक नाजुक स्थिति है। यह आवश्यक रूप से एक चिकित्सीय समस्या नहीं है बल्कि अधिक मनोवैज्ञानिक है। जहां लक्षण कुछ हफ्तों से लेकर अधिक समय तक भी रह सकते हैं। जब डॉक्टर बता दें कि एक फॉल्स प्रेग्नेंसी है, तो मनोवैज्ञानिक चिकित्सक से जरूर मिलें और परिवार भावनात्मक सहायता प्रदान करे क्योंकि स्यूडोसाइसिस के इलाज का यही एकमात्र तरीका है।