वाराणसी के कई इलाकों में बकरीद के दूसरे और तीसरे दिन चार ऊंटों की कुर्बानी दिए जाने की परंपरा काफी समय से चली आ रही है। ऊंट की कुर्बानी को देखने के लिए सुबह से लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता है। दूसरे शहरों से भी लोग यहां ऊंट की कुर्बानी देखने आते हैं।
वाराणसी के मौलाना मो. कलीम के मुताबिक, सैकड़ों साल पहले हजरत इब्राहिम को स्वप्न आया कि अपने बेटे हजरत इस्माइल को कुर्बान कर दो। सपने को हकीकत का रूप देने वो निकल पड़े। रास्ते में तीन शैतान मिले जो उन्हें इस काम से रोकना चाहते थे। ऐसा चमत्कार हुआ कि बेटे को अल्लाह ने बचा लिया। उसकी कुर्बानी रुक गई। उसकी जगह डुम्बा (भेड़) प्रकट हो गया और उसकी कुर्बानी दे दी गई। इसलिए कहा जाता है कि उनका मन सच्चा था। सच्ची इबादत से एक बड़ी समस्या टल गई। उनके अंदर की बुराई खत्म हो गई और वह जीवन भर सच्चाई के रास्ते पर चले।
– तभी से कुर्बानी की परंपरा चली आ रही है।