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अजब गजब

यहां पहुंचना है असंभव! जो भी गया बना पत्थर, एक पर्वतारोही ने कर दी ऐसी गलती और…

समुद्र तल से 18500 फीट की ऊंचाई पर स्थित मणिमहेश को भगवान शिव और मां पार्वती का निवास स्थान माना जाता है क्यूं की जब शंकर जी ने पार्वती जी के साथ विवाह किया था तो उन्होंने इस पर्वत का निर्माण किया था।

Oct 05, 2018 / 06:28 pm

Priya Singh

nobody can climb manimahesh mountain this is reason behind

यहां पहुंचना है असंभव! जो भी गया बना पत्थर, एक पर्वतारोही ने कर दी गलती और…

नई दिल्ली। आप ये सुनकर हैरान हो जाएंगे लेकिन हमेशा बर्फ से ढके रहने वाले इस पौराणिक पर्वत पर जिसने भी चढ़ने का दुस्साहस किया वो पत्थर बन गया। हालांकि कुछ कैलाशों में पर्वत की चोटी तक यात्रा की जाती है लेकिन यहां ऐसा संभव नहीं है। आज भी इस पर्वत की चोटी तक पहुंचने की हिम्मत किसी की नहीं हुई। आपको बता दें हिमाचल प्रदेश के चंबा जिला के भरमौर में स्थित मणिमहेश पर्वत को टरकोईज माउंटेन के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ वैदूर्यमणि या नीलमणि होता है। बताया जा रहा है कि समुद्र तल से 18500 फीट की ऊंचाई पर स्थित मणिमहेश को भगवान शिव और मां पार्वती का निवास स्थान माना जाता है क्यूं की जब शंकर जी ने पार्वती जी के साथ विवाह किया था तो उन्होंने इस पर्वत का निर्माण किया था। कथाओं के अनुसार साल 1968 में भी इस पर्वत पर एक पर्वतारोही ने चढ़ने की कोशिश की लेकिन वो असमर्थ रहा।

इस घटना के बाद आज तक मणिमहेश पर्वत पर चढ़ने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पाया है। हालांकि उस इंसान के पत्थर बनने के कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं। वहीँ, स्थानीय लोगों का कहना है कि पांच कैलाशों में से एक मणिमहेश पर्वत पर जिसने भी चढ़ने की कोशिश की वह पत्थर बन गया। यहं के लोगों के अनुसार ‘एक बार गड़रिया अपनी भे़डों के साथ मणिमहेश पर्वत की चोटी पर चढ़ने लगा लेकिन जैसे-जैसे वह ऊपर की ओर चलता गया, लेकिन उसकी सभी भेडें एक-एक करके पत्थर बनती गईं। इसके बाद भी जब गड़रिया ने ऊपर चढ़ना बंद नहीं किया तो वह भी पत्थर में बदल हो गया। वैसे तो मणिमहेश यात्रा के प्रमाण सृष्टि के आदिकाल से मिलते हैं। लेकिन 520 ईस्वी में भरमौर नरेश मरू वर्मा द्वारा भगवान शिव की पूजा अर्चना के लिए मणिमहेश यात्रा का उल्लेख मिलता है।

एक कथा के अनुसार क समय मरू वंश के वशंज राजा शैल वर्मा भरमौर के राजा थे। उनकी कोई निःसंतान थे। एक बार चौरासी योगी ऋषि इनकी राजधानी में पधारे। राजा की विनम्रता और आदर-सत्कार से प्रसन्न हुए इन 84 योगियों के वरदान के फलस्वरूप राजा साहिल वर्मा के दस पुत्र और चम्पावती नाम की एक कन्या को मिलाकर ग्यारह संतान हुई। इस पर राजा ने इन 84 योगियों के सम्मान में भरमौर में 84 मंदिरों के एक समूह का निर्माण कराया, जिनमें मणिमहेश नाम से शिव मंदिर और लक्षणा देवी नाम से एक देवी मंदिर विशेष महत्व रखते हैं। यह पूरा मंदिर समूह उस समय की उच्च कला-संस्कृति का नमूना आज भी पेश करता है।

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