प्रचलित कथाओं के अनुसार, हजारों साल पहले एक बार यहां मुनि ध्यान में मग्न थे और उनके सामने ही एक मेंढक पहाड़ की चोटी से गिरकर मर गया था। मुनि से यह देखा नहीं गया कहा जाता है कि, उन्होंने उस मेंढक के कान में णमोकार मंत्र का जापकीया जिसके बाद उसे मोक्ष मिला और उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई। इसके बाद मेंढक ने सवर्ग पहुंचकर मुनि से मिलने की योजना बनाई। जब मृत्यु के बाद मेंढक जब मुनि के दर्शन करने आया तो उस दिन केसर और चन्दन की बरसात हुई थी। इस मंदिर में अष्टमी चौदस के दिन यहां दर्शन करना बहुत अच्छा माना जाता है इसलिए दूर-दूर से लोग यहां दर्शन करने आते हैं। कहते हैं, इसी के बाद इस पर्वत को मेढ़ागिरी पर्वत के नाम से जाना जाता है। इस मुक्ता गिरी सिद्धक्षेत्र का इतिहास कुछ इस तरह है कि, मान्यता है कि, उस समय लोग शिकार के लिए पहाड़ पर जूते-चप्पल पहनकर जाते थे और जानवरों का शिकार करते थे। इसी वजह से, पवित्रता को ध्यान में रखते हुए यह पहाड़ खरीदा गया और इसपर मंदिर की स्थापना की गई। इस मंदिर में जाने के लिए दर्शनार्थियों को कम से कम 600 सीढ़ियां चढ़कर जाना पड़ता है।