scriptकई सालों के आंदोलन के बाद हासिल हुआ ‘रविवार का साप्ताहिक अवकाश’, जानिए किसने, कब और क्यों की इसकी शुरुआत | Man behind Sunday holiday, Narayan Meghaji Lokhande | Patrika News
नई दिल्ली

कई सालों के आंदोलन के बाद हासिल हुआ ‘रविवार का साप्ताहिक अवकाश’, जानिए किसने, कब और क्यों की इसकी शुरुआत

साप्ताहिक अवकाश हासिल करने के लिए हमारे देस में लंबा आंदोलन चला था, जिसकी शुरुआत मजदूर नेता नारायण मेघजी लोखंडे ने की थी। लोखंडे ने साप्ताहिक अवकाश के लिए अंग्रेजों के खिलाफ लंबा संघर्ष किया और आंदोलन चलाया था। उन्हीं के प्रयास से भारतीयों को ‘रविवार’ का दिन ‘साप्ताहिक अवकाश’ के रुप में प्राप्त हुआ।

नई दिल्लीMay 31, 2022 / 10:40 pm

Archana Keshri

कई सालों के आंदोलन के बाद हासिल हुआ 'रविवार का साप्ताहिक अवकाश', जानिए किसने, कब और क्यों की इसकी शुरुआत

कई सालों के आंदोलन के बाद हासिल हुआ ‘रविवार का साप्ताहिक अवकाश’, जानिए किसने, कब और क्यों की इसकी शुरुआत

चाहे स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे हों, या फिर कॉलेज या जॉब पर जाने वाले युवा, हर किसी को रविवार का इंतजार रहता है, क्योंकि रविवार को उनकी छुट्टी रहती है। छुट्टी, एक ऐसा शब्द जिसका नाम सुनते ही हर किसी के मुंह पर अनायास ही एक ख़ुशी झलक पड़ती है। ख़ुशी हो भी क्यों न? भाग-दौड़ भरी इस जिंदगी में छुट्टी किसे नहीं प्यारी होती। मगर एक समय ऐसा भी था जब किसी भी तरह की छुट्टी की कोई व्यवस्था नहीं थी। हालांकि, आज के समय में हफ्ते में रविवार की छुट्टी तो सबसे कॉमन बात है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि रविवार को ही छुट्टी क्यों होती है? इस दिन छुट्टी देने का इतिहास क्या है?
चलिए हम आपको बताते हैं की कैसे रविवार को छुट्टी की शुरुआत हुई थी। एक दौरा ऐसा था जब काम करने वालों को साप्ताहिक छुट्टी नहीं मिलती थी और लोगों को हफ्ते के सातों दिन काम करने को मजबूर होना पड़ा था। भारत में कभी भी अवकाश का चलन नहीं रहा था। अंग्रेजों के आने से पहले भारत पूरी तरह व्यापार और कृषि पर निर्भर था. जिनके खेत थे वे और, जो खेत में मजदूर थे वे भी सप्ताह के हर दिन काम करते थे। पर अच्छाई यह रही कि जब जिसे जरूरत होती थी, उसकी सुविधा के अनुसार अवकाश दे दिया जाता था।

sunday_story.jpeg

इस सबके बीच जब अंग्रेजों ने भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की, तब उन्हें अपनी कंपनी में काम करने और मिलों में मजदूरों की जरूरत थी। क्योंकि पूरे देश में ब्रिटिश हुकूमत थी, इसलिए उनके लिए मजदूरों का इंतजाम करना मुश्किल काम नहीं रहा. अंग्रेजों ने अपनी मिलों में भारतीय गरीबों को बतौर मजदूर नौकरी दी। दुर्भाग्य यह था कि अब तक अपनी मर्जी से जीने वाला भारतीय अंग्रेजों के इशारों पर जी रहा था। मजदूरों से पूरे सप्ताह काम लिया जाता था।

यह भी पढ़ें

200 साल का होने के बाद भी पढ़ाने जाता था ये शख्स, इन चीजों को खाकर रहता था जिंदा

लगातार काम करने के कारण मजदूरों की सेहत पर बुरा असर दिखाई देने लगा था। वो बिमार पड़ने लगे, मगर बीमारी की हालत में भी उन्हें काम करना पड़ता था, उसे आराम करने की इजाजद नहीं थी। उस समय सरकार का नियम था कि यदि मजदूर आराम करता है, तो उसके आराम किए गए समय से दोगुना अतिरिक्त समय काम में देना होगा। इससे बचने के लिए मजदूरों ने लगातार काम जारी रखा। इस अत्याचार ने देश के विभिन्न क्षेत्रों में स्थिति मिलों के मजदूरों को मौत की चौखट पर ला खड़ा किया।

sunday_story_2.jpg

इसी बीच पुणे जिले के गरीब परिवार से तालुक रखने वाले नारायण मेघाजी लोखंडे, जो उस समय रेलवे के डाक विभाग में काम करते थे, अंग्रेजों की नौकरी करते हुए उन्हें भी साप्ताहिक अवकाश का सुख नहीं मिला। जिसके बाद उन्होंने बॉम्बे टेक्सटाइल मिल में बतौर स्टोर कीपर काम करना शुरू किया। यही वह जगह थी, जब उन्हें मजदूरों की परेशानियों को नजदीक से देखने और समझने का मौका मिला।
उन्होंने देखा कि मिल में कई परिवार बंधुआ मजदूर की तरह दिन रात बस काम किए जा रहे हैं। उन्हें न तो स्वास्थ्य लाभ मिलता है न ही आराम करने के लिए एक दिन का समय। उनसे क्षमता से ज्यादा काम लिया जा रहा है और जिसका असर उनके स्वास्थ्य पर दिखने लगा है। ये देखते हुए उन्होंने 1880 में ‘दीन बंधु’ नामक जर्नल शुरू किया, क्योंकि वो जानते थे सरकार तक वो अपनी बात सीधे नहीं पहुंचा सकते।

यह भी पढ़ें

सुबह-दोपहर-शाम सिर्फ Maggi ही खिलाती थी पत्नि, परेशान होकर पति ने दिया तलाक

sunday_story_3.jpg

उन्होने ‘दीन बंधु’ जर्नल की मदद से लोगों तक मजदूरों की दयनीय स्थिति को उजागर किया। उनके लेखों ने क्रांतिकारियों और मजदूरों को काफी प्रभावित किया। इसके बाद 1884 में ‘बॉम्बे हैंड्स एसोसिएशन’ के नाम से पहली बार ट्रेड यूनियन की स्थापना की गई, तो नारायण लोखंडे उसके अध्यक्ष बने। एसोसिएशन के माध्यम से उन्होंने पहली बार अंग्रेजों से 1881 में बने कारखाना अधिनियम में बदलाव करने की बात रखी।
मगर उनकी मांगों को सरकार ने सिरे से खारिज कर दिया गया। लोखंडे जी को यह बात बिल्कुल पसंद नहीं आई। उन्होंने सभी श्रमिकों को अपने साथ लिया और इसका जमकर विरोध किया और सरकार की इस सख्ती के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की थी। मजदूरों को उनका हक दिलवाने के लिए काफी कुछ किया। लोखंडे जी ने 1881 में पहली बार कारखाने संबंधी अधिनियम में बदलावों की मांग रखी और इसे पूरा करवाने के लिए आंदोलन की शुरुआत हुई। साप्ताहिक अवकाश हासिल करने के लिए देश में यह आंदोलन काफी लंबा चला।

sunday_story_4.jpg

लोखंडे ने मजदूरों के हक में कहा कि मजदूरों को साप्ताहिक छुट्टी मिलना चाहिए ताकि वे अपनी थकान मिटा सकें या अपने लिए भी वक्त नकाल सकें। उनकी ये कोशिश रंग लाई और उनके चलते 10 जून, 1890 को ब्रिटिश शासन ने सबके लिए रविवार के दिन छुट्टी घोषित कर दी। अब आप सोच रहे होंगे की आखिर रविवार के दिन को ही छुट्टी के लिए क्यों चुना गया, तो आपको बता दें रविवार को ही छुट्टी के लिए इस वजह से चुना गया, क्योंकि उस दिन अंग्रेजों की छुट्टी रहा करती थी। रविवार को अंग्रेज चर्च जाते थे। ऐसे में जब हफ्ते में एक दिन छुट्टी देने की बात आई तो अंग्रेजों ने रविवार को सबकी छुट्टी करने का फैसला किया।

यह भी पढ़ें

24 हजार साल ठंडी कब्र में दफन रहा फिर भी निकला जिंदा, बाहर आते ही बना दिए अपने क्लोन

Hindi News / New Delhi / कई सालों के आंदोलन के बाद हासिल हुआ ‘रविवार का साप्ताहिक अवकाश’, जानिए किसने, कब और क्यों की इसकी शुरुआत

ट्रेंडिंग वीडियो