इस धार्मिक कथा के अनुसार, देवी पार्वती बचपन से ही शिव की बहुत बड़ी भक्त थीं। शिव जी को पति के रूप में पाने के लिए उन्होंने हजारों साल तक कठिन तपस्या की। माता पार्वती ? की तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी उनके सामने प्रकट हुए और उन्हें मनचाहा वरदान दिया।
फलस्वरूप माता पार्वती की शादी शिव जी से तय हो गई। इस विवाह समारोह में समस्त देवी देवता, साधु गण पधारें।हालांकि तपस्या का तेज इस कदर तेज था कि जिससे माता पार्वती का रंग सांवला पड़ गया।
शादी के बाद एकदिन माता पार्वती और भगवान शिव कैलाश पर्वत पर बैठकर एक-दूसरे से मजाक कर रहे थे। मजाक ही में शिव जी माता पार्वती के गहरे सांवले रंग को देखकर उन्हें ‘काली’ कहकर पुकारा। यह बात पार्वती मां को अच्छी नहीं लगी और उन्होंने तुरंत कैलाश पर्वत को छोड़कर वन में चली गईं और अपने गोरे रंग को वापस पाने के लिए फिर से तपस्या में लीन हो गईं।
इधर वन में एक भूखा शेर शिकार को निकला। जब उसकी नजर माता पार्वती पर पड़ी तो उसने उन्हें अपना आहार बनाने का सोचा। चूंकि वह तपस्या में लीन थीं तो वह शेर उसी जगह चुपचाप बैठ गया और उनके उठने का इंतजार करने लगा।
इधर तपस्या करते हुए सालों बीत गए, लेकिन वह शेर वहां से हटा नहीं। माता पार्वती की तपस्या को खत्म करने के लिए शिव जी वहां पहुंचे और उन्हें गोरा होने का वरदान प्रदान किया। इसके तुरंत बाद माता पार्वती गंगा स्नान के लिए चली गईं।
नहाने के दौरान माता पार्वती में से एक और काले रंग की देवी प्रकट हुईं जिनका नाम कौशिकी पड़ा। इस देवी के निकलते ही मां फिर से गोरी हो गईं और उन्हें गौरी का नाम मिला।
माता गौरी की नजर जब शेर पर पड़ी तो वह हैरान रह गईं क्योंकि तपस्या के दौरान वह शेर उनके पास था। शेर के धैर्य को देखकर मां इस कदर प्रसन्न हुईं कि उन्होंने शेर को अपना वाहन बना लिया। इस वजह से शेर पर सवार मां को ही शेरावाली के नाम से जाना जाता है।