276 फीट लंबे और, 154 फीट चौड़े इस मंदिर की खासियत ये है कि इसे केवल एक ही चट्टान को काटकर बनाया गया है। यह मंदिर दो या तीन मंजिला इमारत के बराबर है। बताया जाता है कि इस मंदिर के निर्माण (Construction) में जिस चट्टान का इस्तेमाल किया गया था उसका वजन करीब 40 हजार टन था। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मान्यता है कि यहां दर्शन करने वाले भक्त को वैसा ही फल मिलता है, जैसे कैलाश पर्वत के दर्शन पर जाने पर। इसलिए जो लोग कैलाश नहीं जा पाते हैं, वे यहां दर्शन के लिए आते हैं।
इस अद्भुत शिव धाम को बनने में लगभग 100 साल से ज्यादा का वक्त लगा। इसके निर्माण कार्य की शुरुआत मालखेड स्थित राष्ट्रकूट वंश के नरेश कृष्ण (प्रथम) (757-783 ई.) ने शुरु करवाया था। इसे बनाने में करीब 7000 मजदूरों ने दिन-रात काम किया था। इस मंदिर में देश-विदेश से सैकड़ों लोग दर्शन के लिए आते हैं, लेकिन हैरानी की बात यह है कि यहां एक भी पुजारी नहीं है। आज तक कभी पूजा नहीं हुई। यूनेस्को ने 1983 में ही इस जगह को ‘विश्व विरासत स्थल’ घोषित किया है।