ग्रामीणों का कहना है कि ऐसा देवी को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। इस दौरान गांव में सन्नाटा पसरा रहता है। इसका लोगों की प्राचीन मान्यता है। यहां के लोगों का कहना है कि ऐसा करने से देवी प्रकोप से निजात मिलती है। इस प्रथा के चलते नवमी के दिन लोग अपने साथ-साथ मवेशियों को भी छोड़ने की हिम्मत नहीं करते हैं। लोग जंगल में जाकर वहीं, पूरा दिन बिताते हैं।
आधुनिकता के इस दौर में इस गांव के लोग अंधविश्वास की दुनिया में जी रहे हैं। इस गांव की स्थानीय निवासी कौशल्या देवी के अनुसार, “यह पुरानी प्रथा है। जो वर्षों से चली आ रही है। आज अगर हम लोग इस प्रथा को नहीं मानेंगे और घर में ही रहेंगे तो घर में आग लग जाएगी। एक दो नहीं बहुत सारे घरों में एक साथ आग लग जाती है। इसलिए हर साल हमलोग यह प्रथा मनाते है। जो हमारे पूर्वजों ने बताया है, उसे हम लोग ईमानदारी से निभा रहे हैं।”
बताया जाता है कि वर्षों पहले इस गांव में महामारी आई थी, उस दौरान गांव में आग लग जाती थी। चेचक, हैजा जैसी गंभीर बीमारियां फैल जाती थी। जिसके बाद वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के जंगल में बसा नौरंगिया गांव के रहने वालों के अनुसार यहां रहने वाले बाबा परमहंस के सपने में देवी मां आई थीं। सपने में मां ने बाबा को गांव को बचाने का आदेश दिया था। सपने में देवी मां ने कहा था कि नवमी को गांव खाली कर पूरा गांव वनवास को जाए।
इसी दिन के बाद से यह परंपरा शुरू हो गई जो आज भी लोग निभाते आ रहे है। और इसी वजह से नवमी के दिन लोग अपने घर खाली कर भजनी कुट्टी में पूरा दिन बिताते हैं और मां दुर्गा की पूजा करते हैं। ये परंपरा वो पूरे उत्सव के साथ हर्षो-उल्लास से निभाते और मनाते हैं। जंगल में भी पिकनिक जैसा माहौल हो जाता है। और आपको बता दें जंगल में मेला भी लगाया जाता है। 12 घंटे गुजरने के बाद सभी अपने घर वापस आ जाते हैं। आपको बता दें, जब गांव के लोग जंगल में जाते हैं तो घर पर ताला भी नहीं लगा के जाते। पूरा घर खुला रहता है और हैरान करने वाली बात ये है कि तब यहां कोई चोरी भी नहीं होती।