इतिहासकारों के अनुसार ली चिंग का जन्म 3 मई 1677 को चीन के कीजियांग जिले में हुआ था। उनके जन्म के समय चीन में क्विंग शासक का राज्य था। जब ली 13 साल के थे तब उन्होंने अपना घर छोड़ दिया था। इसके बाद ली पहाड़ों पर रहने चले गए थे। 13 साल में पहाड़ पर बसने के बाद ली ने 51 साल की उम्र में वहां से लौटने का फैसला किया। इसके बाद उन्होंने आर्मी ज्वाइन की और जनरल यू जोंग की सेना में सलाहकार बन गए।
जब ली 78 साल का हुआ तो उसने आर्मी से रिटायरमेंट ले लिया। अपनी जिंदगी में गोल्डन रिवर के वॉर में पार्टिसिपेट किया। ऐसे में उसके योगदान की वजह से उसकी पहचान शाही राजघराने में बढ़ गई। शाही राजघराने से ली को शाही संदेश भेजा गया था ली के 100, 150 और फिर 200 साल पूरे होने पर और न्यूयॉर्क टाइम्स में ये सन्देश 1929 में प्रकाशित भी हुआ था। इस संदेश और दस्तावेजों के मुताबिक ली की 6 मई 1933 में मौत हुई थी।
ली चिंग अपने समय में एक आयुर्वेद के डॉक्टर के रूप में प्रसिद्ध थे और उसके साथ मार्शल आर्ट मे भी उन्हें महारथ हासिल थी। कहतें हैं की उन्होंने जीने का मत्रं सीख लिया था इस लिए हमेशा से वो निरोगी और फीट रहा। कहतें हैं की ली चिंग ने अपने जीवन काल में 23 पत्नियों का अंतिम संस्कार कर चूका थे। ली चिंग-युन की कुल 24 पत्नियां रही हैं। 24वीं पत्नी उनके मरने के बाद भी जीवित रही थीं। इसके अलावा ली चिंग-युएन के 200 से ज्यादा बच्चे थे।
सिर्फ इतना ही नहीं 200 साल के होने के बाद भी वे यूनिवर्सिटी में पढ़ाने जाया करते थे। ली बचपन से ही पढ़ने-लिखने में सक्षम थे। आम तौर पर स्वीकार की गई कहानियों के अनुसार उन्होंने कांसू, शांसी, तिब्बत, अन्नाम, सियाम और मंचूरिया में जड़ी-बूटियों की खोज की थी। पहले एक सौ साल तक वह इस व्यासाय में बने रहे। बाद में अन्य लोगों द्वारा इकट्ठा की गई जड़ी-बूटियों को बेचने का व्यवसाय किया। उन्होंने अन्य चीनी जड़ी बूटियों के साथ लिंगजी, गोजी बेरी, जंगली जिनसेंग, शू वू और गोटू कोला आदि जड़ी बूटियां बेची।
सौ साल का होने के बाद ली ने अपनी जिंदगी के अगले 40 साल सिर्फ जड़ी बूटियों के सहारे गुजारे। इन जड़ी बूटियों के साथ-साथ चावल की शराब को एक आहार के रूप में प्रयोग किया। ली चिंग-युएन ने अपने अधिकांश जीवन पहाड़ों में बिताया और किगोंग नामक कसरत की एक तकनीक में कुशल थे। जब ली से उनकी लंबी उम्र का राज पूछा गया तो उनका जवाब था, “अपने दिल को शांत रखो, कबूतर की तरह बिना सुस्ती के चलो, कछुए की तरह बैठो, और कुत्ते की तरह नींद लो।”