भालुओं का पूरा परिवार माता की प्रतिमा की परिक्रमा भी करता है। हैरानी की बात यह है कि भालू मंदिर में किसी पालतू जानवर की तरह आते हैं और बिना किसी को नुकसान पहुंचाए आराम से चले जाते हैं।
स्थानीय लोगों की मानें तो ये भालू कभी भी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। गांववाले भालुओं को जामवंत परिवार कहने लगे हैं। जानकारों की मानें तो माता के मंदिर में भालुओं का इस तरह से रोज आना हैरानी की बात है। क्योंकि आमतौर पर जंगल में भालू का किसी इंसान से सामना हो जाए तो वह हमला कर देते हैं। गांववालों के मुताबिक, चंडी माता का यह मंदिर पहले तंत्र साधना के लिए मशहूर था। यहां कई साधु-संत रहते थे। तंत्र साधना करने वालों ने पहले यह स्थान गुप्त रखा था लेकिन साल 1950-51 में इसे आम जनता के लिए खोला गया।