प्राचीन काल में विदिशा का नाम बैसनगर था। अशोक को उनके पिता बिन्दुसार ने 18 वर्ष की आयु में उज्जैन का राजप्रतिनिधि बनाया था। तब पाटलिपुत्र से उज्जैन जाते वक्त अशोक बैसनगर (विदिशा) में रुके थे। यहां के शाक्यवंशी साहूकार की बेटी देवी से उनकी नजरें मिलीं और उन्हें पहली ही नजर में अपना दिल दे बैठे। इसके बाद उनका प्रेम परवान चढ़ा और बैसनगर के बाग-बगीचों और नदी किनारे अशोक और देवी अक्सर मिलने लगे। बैसनगर की देवी से दिल हार चुके सम्राट अशोक ने देवी के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा और देवी ने एक शर्त रखी कि वे बैसनगर को छोड़कर कहीं नहीं जाएंगी।
सम्राट अशोक ने देवी की बात मानी और विवाह कर लिया। सम्राट अशोक ने भी जीवनभर देवी की भावनाओं का सम्मान किया। सदियां बीत गईं, लेकिन सम्राट अशोक हमेशा देवी से मिलने आते रहे। यहां की नदी का किनारा, बाग-बगीचे सम्राट अशोक और देवी की प्रेम की स्थली बन गए थे। इतिहास के पन्नों में दर्ज इन इलाकों को आज भी विदिशा के लोग याद करते हैं।
एक पुत्र और एक पुत्री को दिया जन्म
अशोक और देवी के एक पुत्र महेन्द्र और एक पुत्री संघमित्रा हुए। देवी भगवान बुद्ध की अनुयायी थीं। महेन्द्र और संघमित्रा भी बुद्ध की अनन्य भक्त थीं। अशोक अपने दोनों बच्चों को पाटलिपुत्र ले गए, लेकिन संघमित्रा यहीं रहीं। सम्राट अशोक के शासनकाल के 30वें वर्ष 239 ईसा पूर्व में विदिशा में ही देवी की मृत्यु हो गई थी।
सांची में आखिरी मिलन
सम्राट अशोक और देवी के साथ ही उनके बच्चे महेन्द्र और संघमित्रा का नाम भी इतिहास में अमर हो गया। महेन्द्र के साथ-साथ संघमित्रा ने भी बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी। जब एक बार महेन्द्र बौद्ध धर्म का प्रचार करने श्रीलंका गए, तो वहां की रानी अनुला ने संसार से विरक्त होकर बौद्ध धर्म की दीक्षा लेने की इच्छा जताई। लेकिन, महेन्द्र ने वहां के राजा को समझाया कि नियमानुसार कोई पुरुष भिक्षु महिला को दीक्षित नहीं कर सकता। तब इस कार्य के लिए भारत से महाविदुषी संघमित्रा को बुलवाया गया और बोधिवृक्ष की शाखा सहित संघमित्रा को श्रीलंका भेजने की तैयारी हुई। सम्राट अशोक ने अपनी पुत्री को विदा कर दिया। भिक्षु-भिक्षुणियों के साथ संघमित्रा तपस्विनी वेश में पाटलिपुत्र से अपनी मां के नगर बैसनगर पहुंची। यहां देवी और संघमित्रा का अंतिम मिलन हुआ। देवी ने वेदिसगिरी (विदिशा के पास सांची की पहाड़ी) पर संघमित्रा का अंतिम अभिवादन किया। संघमित्रा बोधिवृक्ष के साथ पहुंची और रानी अनुला समेत करीब एक हजार महिलाओं को वहां दीक्षित किया। दोनों भाई-बहन जीवन पर्यन्त लंकावासियों को भगवान बुद्ध के संदेश सुनाते रहे। वे भारत से एक बार गए, तो फिर लौटकर नहीं आए।
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