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अब इस मंदिर का ताला खुलवाने की उठ रही मांग, 71 साल से लटका है ताला

रायसेन के शिव मंदिर के बाद अब विदिशा में उठ रही इस मंदिर का ताला खुलवाने की मांग…

विदिशाApr 22, 2022 / 04:58 pm

Shailendra Sharma

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विदिशा. मध्यप्रदेश में इन दिनों मंदिरों का ताला खुलवाने की मांग जोर शोर से उठ रही है। कुछ दिन पहले सीहोर वाले पंडित प्रदीप मिश्रा के मंच से रायसेन के शिव मंदिर में ताला लगे होने की बात उठाने के बाद अब विदिशा में भी एक मंदिर का ताला खुलवाने की मांग तेज हो गई है। शहर के व्यापार एवं उद्योग मंडल ने विदिशा के विजय मंदिर का ताला खोलने की मांग उठाई है। जिसके लिए शहर में जगह जगह पोस्टर लगाए गए हैं। बता दें कि विजय मंदिर पुरातत्व विभाग के अधीन है और उस पर 71 साल से ताला लगा हुआ है।

 

विजय मंदिर का ताला खुलवाने की मांग
विदिशा के विजय मंदिर का ताला खुलवाने के लिए एक बार फिर आंदोलन की शुरुआत होती नजर आ रही है। शुक्रवार को शहर में विजय मंदिर का ताला खुलवाने की मांग करते हुए जगह जगह पोस्टर लगाए गए हैं। ये पोस्टर व्यापार एवं उद्योग मंडल की ओर से लगाए गए हैं। शहर का विजय मंदिर हिंदुओं की आस्था का केन्द्र है लेकिन उस पर 71 सालों से पुरातत्व विभाग का ताला लटका हुआ है जिसके कारण मंदिर वर्तमान में महज एक स्मारक बनकर रह गया है। व्यापारियों की मांग है कि मंदिर का ताला खुलवाया जाए जिससे कि शहर के लोग मंदिर में जाकर पूजा अर्चना कर सकें।

 

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सिर्फ नागपंचमी को खुलता है मंदिर का ताला
बता दें कि शहर के मध्य में बने विजय मंदिर को सूर्य मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर का ताला साल में सिर्फ नागपंचमी के दिन खुलता है और वहां पर मेला भी लगता है। अगर मंदिर के इतिहास की बात की जाए तो बताया जाता है कि विजय मंदिर सूर्य भगवान को समर्पित था। चालुक्य राजाओं ने अपनी शौर्यपूर्ण विजय को अमर बनाने के लिए इसका निर्माण कराया था। मंदिर के निर्माण का श्रेय चालुक्यवंशी राजा कृष्ण के प्रधानमंत्री वाचस्पति को जाता है। इसके बाद 10वीं-11वीं शताब्दी के दौरान परमार शासकों द्वारा मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया। हालांकि मंदिर ने कई बार इस्लामी आक्रमण भी झेला, जिसके कारण मंदिर क्षतिग्रस्त भी हुआ। इतिहासकारों का कहना है कि सन् 1922 के समय मुस्लिमों द्वारा यहां नमाज पढ़नी शुरू कर दी गई और हिन्दुओं द्वारा की जाने वाली पूजा का विरोध प्रारम्भ हो गया। 1947 के बाद से हिन्दू महासभा द्वारा इसे प्राप्त करने के लिए संघर्ष किया गया, जिसके बाद विजय मंदिर को सरकारी नियंत्रण में ले लिया गया ।

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