वाराणसी के औरंगाबाद मोहल्ले के निवासी सनातन हिंदू ब्राह्णण पंडित नारायणपति त्रिपाठी के पुत्र पंडित कमलापति त्रिपाठी मूल रूप से वह पंडी के त्रिपाठी परिवार से जुड़े थे लेकिन पूर्वज जब मुगल काल में औरंगज़ेब के शासन काल में वाराणसी के औरंगाबाद मोहल्ले में आ बसे। काशी हिंदू विश्वविद्यालय से जब पीयूसी (प्री यूनिवर्सिटी कोर्स) कर रहे थे तभी महात्मा गांधी के भाषणों और आंदोलन से प्रेरित हुए और पढाई छूट गई। बन गए स्वतंत्रता संग्राम सेनानी। स्वातंत्र्य आंदोलन के दौरान कई दफा जेल गए। पुलिसिया उत्पीड़न सहा। लेकिन टस से मस नहीं हुए। कालांतर में काशी विद्यापीठ (अब महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ) से शास्त्री की उपाधि हासिल की। उन्होंने हिंदी दैनिक ‘आज’ और बाद में ‘संसार’ में बतौर पत्रकार सेवाएं दीं। द टैब्लोइड्स का भी संपादन किया। 19 वर्ष की आयु में गृहस्थ होने के बाद भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में सक्रिय योगदान करने वाले पं. कमलापति त्रिपाठी ने आंदोलन के दौरान ही संस्कृत की शिक्षा विशेष रूप से ग्रहण की।
पंडित जी ने संविधान सभा के सदस्य, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और केंद्रीय रेल मंत्री के रूप में राष्ट्र को अपनी महत्वपूर्ण सेवाएं दीं। चंदौली को धान कटोरा बनाने के लिए नहरों का जाल बिछाया। पूर्वांचल में रेलपटरियां बिछाने के साथ ही मुगलसराय एवं डीरेका के आधुनिकीकरण का खाका खींचा।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उन्हें कई बार जेल यात्राएं भी करनी पड़ीं। इसी दौरान साहित्य के प्रति विशेष अनुराग भी जन्मा। उनमें एक पक्का बनारसी व्यक्तित्व भी था जो सिर्फ मित्रमंडली में ही उजागर हुआ करता था। लक्सा क्षेत्र में थाने के निकट एक पान की दुकान उनकी अड़ी का मुख्य अड्डा हुआ करती थी। पान की दुकान के चौतरे पर मित्रमंडली के साथ बैठने वाले पंडित जी अन्य सार्वजनिक अवसरों पर दिखने वाले कमलापति त्रिपाठी से बिल्कुल अलग हुआ करते थे। पान घुला कर ठहाके लगाना उनकी बेहद खास फितरत थी। वह भारतीय व्यंजनों के खासे शौकीन रहे। शुद्ध बनारसी मिठाई यथा मालपुआ, खीर आदि उन्हें बेहद परंसद रहा।
उनकी पांच संतानों में तीन बेटे और दो बेटियां थीं। सबसे बड़े पुत्र लोकपति त्रिपाठी थे। वह भी कालांतर में प्रदेश की कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे। उनके दूसरे बेटे मायापाति त्रिपाठी ने अखिल भारतीय किसान मजदूर वाहिनी नाम से सामाजिक संगठन की स्थापना की। वहीं मंगलापति त्रिपाठी उनके तीसरे बेटे का नाम है।
पंडित जी डॉ संपूर्णानंद को अपना राजनीतिक गुरु मानते रहे। उनकी हर इच्छा पूरी की। बनारस के लोग जानते हैं कि डॉ संपूर्णानंद शहर दक्षिणी से विधायक चुने जाते रहे, पर चुनाव के वक्त कभी क्षेत्र में प्रचार करने नहीं गए। उनका कहना था कि अगर हमने कुछ काम किया होगा तो लोग खुद ही वोट देंगे। ऐसे में अंतिम विधानसभा चुनाव में जब परिस्थितियां प्रतिकूल हुईं और वामपंथी प्रतिद्वंद्वी रुस्तम सैटिन के प्रति लोगों की सिंपैथी जाने लगी तब अंतिम समय में पंडित जी ने जी जान लगा दिया अपने गुरु को चुनाव जिताने में। वह अपने मकसद में सफल भी रहे। उन्होंने कभी भी संपूर्णानंद जी के विचारों का विरोध नहीं किया।
यूपी में जब भाजपा और अन्य हिंदू संगठन अयोध्या में राम मंदिर बनाने का माहौल बना रहे थे। राम लला के जन्म स्थल के उपासन स्थल को तोडने का मुद्दा भी उठा तब पंडित जी ने ललकार भरी थी और कहा कि अयोध्या में विवादित ढांचे पर कोई भी फावड़ा चला तो सबसे पहले मेरी गर्दन पर गिरेगा। सनातन हिंदू ब्राह्मण परिवार में जन्न लेने और हर धार्मिक कर्मकांड को नियमित रूप से करने वाले पंडित जी पूरी तरह से धर्म निरपेक्ष भी रहे। कोई नवरात्र छूटता नहीं जब पंडित मां विंध्यवासिनी दरबार में मत्था टेकने न जाएं। दुर्गा सप्तशती का पाठ उनके निवास पर नियमित तौर पर होता रहा। पर अन्य धर्मों और संप्रदायों को भी उन्होंने समान रूप से महत्व दिया।
कमलापति त्रिपाठी एक नजर – 1921 के असहयोग आंदोलन में भाग लिया – 1947-48 में प्रान्तीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभापति -1937 में प्रथम बार उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य निर्वाचित
– 1946, 1952, 1957, 1962, 1967 एवं 1969 में उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य निर्वाचित – 1952 में सूचना तथा सिंचाई मंत्री – 1957 में गृह, शिक्षा तथा सूचना विभाग के मंत्री
– 1962 में वित्त मंत्री बने – 1969 में उपमुख्यमंत्री – 1970 में उत्तर प्रदेश विधान सभा में नेता विरोधी दल -4 अप्रैल, 1971 से 12 जून, 1973 तक उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री रहे
– 1973-1978, 1978-1980 और 1985-1986 में राज्य सभा के सदस्य थे – 1980-1984 तक लोक सभा के सदस्य थे – 1973 से 1977 तक रेल मंत्री