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वाराणसी

अब गंगा के पानी से मोटर न्यूरॉन डिजीज का खतरा

गंगा में शैवाल से तटवर्तयिों में मोटर न्यूरॉन डिजीज का खतरा बढ़ा, शैवाल की जांच के लिए टीम गठित।-अब भी गंगा तट पर नहीं हो रहा शवों का समुचित निस्तारण। हर रोज सैकड़ो टन चिता की राख हो रही प्रवाहित।

वाराणसीJun 08, 2021 / 05:51 pm

रफतउद्दीन फरीद

algae in ganga river

गंगा में शैवाल से पानी हआ हरा

पत्रिका न्यूज नेटवर्क

वाराणसी. जीवनदायिनी गंगा में लाशों के प्रवाहित करने का मामला अभी थमा भी नहीं था कि अब गंगा किनारे रहने वालों में एमएनडी (मोटर न्यूरॉन डिजीज) ने चिंता बढ़ा दी है। एमएनडी से ग्रसित होने पर कमजोरी और शरीर में कंपन व धड़कन बढऩे की समस्याएं सामने आ रही हैं। कुछ मरीजों में चलने और कुछ भी निगलने में दिक्कत के साथ भोजन के समय निवाला सरक जाने से खांसते-खांसते मौत तक होने की आशंका रहती है। हाल के दिनों में ऐसे मरीजों की संख्या में इजाफा हुआ है।

 

वाराणसी में गंगा के दोनों किनारों के 20-20 किलोमीट के दायरे में पिछले साल एमएनडी के आठ हजार रोगी पाए गए थे। बीएचयू के वरिष्ठ न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. विजय नाथ मिश्रा का कहना है इस साल गंगा में शैवाल के चलते क्रोमियम, एल्यूमीनियम, आर्सेनिक और लेड जैसे खतरनाक तत्वों की मात्रा एक बार फिर बढ़ गयी है। माना जा रहा है कि इस वजह से एमएनडी के मरीजों की संख्या इस साल एक बार फिर बढ़ रही है।


जल्द शुरू होगा अध्ययन

एमएनडी के संभावित खतरों की पड़ताल के लिए अब एक बार फिर से कानपुर से बिहार तक गंगा के दोनों किनारों के गांवों का अध्ययन किया जाएगा। पिछली बार भी इसी क्षेत्र का अध्ययन किया गया था। जीवित और मृत मरीजों की केस हिस्ट्री, गंगा पट्टी के खेतों की मिट्टी, वहां होने वाली फसल, और गंगा जल का परीक्षण अध्ययन का हिस्सा होगा। यह भी जानने की कोशिश होगी कि कहीं अत्याधिक मात्रा में गंगा में शवों को प्रवाहित करने की वजह से यह समस्या तो नहीं आ रही।


अब भी गंगा में बहाई जा रही शवों की राख

सरकार के तमाम प्रयासों के बाद अब भी गंगा के तट पर लाए जाने वाले शवों का समुचित निस्तारण नहीं हो पा रहा। एनडीआरएफ की तैनाती के बाद अब कुछ हद तक शवों को गंगा में प्रवाहित करने पर रोक लगी है लेकिन अब भी हर रोज सैकड़ो टन राख यूपी के 26 जिलों में गंगा घाटों पर अंतिम संस्कार के बाद चिता की राख नदी में बहाई जा रही है। ऐसे में पानी के प्रदूषित होने के साथ ही संक्रमित होने का भी खतरा है।


जिला अस्पतालों के आंकड़े भयावह

जिला अस्पतालों से अब कोरोना से हुई मौतों के नए आंकड़े सामने आ रहे हैं। अकेेले कानपुर के हैलट अस्पताल ने अप्रेल माह में 42 मौतें और कबूली हैं। इन शवों का निस्तारण भी गंगा में ही हुआ होगा। हर जिले में ऐसी ही कितनी मौतें अलमारियों में बंद फाइलों में दफन हैं। कानपुर के आंकड़ों से समझा जा सकता है कि अप्रेल-मई में गंगा किनारे के 26 जिलों से हर दिन कितने शव गंगा में प्रवाहित किए गए होंगे या रेत पर दफनाए गए होंगे। और इनसे कितना प्रदूषण हुआ होगा।

 

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पानी में शैवाल की जांच के लिए टीम

गंगा में प्रदूषण और प्रयागराज से लेकर वाराणसी तक शैवाल के चलते गंगा के पानी के हरा हो जाने खबरों के बाद वाराणसी के जिलाधिकारी ने गंगा में शैवाल की तह तक पहुंचने के लिये पांच वैज्ञानिकों की एक टीम बनाकर उन्हें जांच का जिम्मा सौंपा है। तीन दिन में रिपोर्ट देनी होगी। हालांकि, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी ने जांच कराई थी। लेकिन अब जिलाधिकारी ने एक बार फिर विस्तृत जांच करने को कहा है। जांच टीम जल पुलिस की मदद से नाव के जरिये गंगा के बीचोबीच जाकर यह पता लगाएगी कि गंगा में ये शैवाल कैसे आए, कैसे बढ़े और इनका स्रोत और घाटों तक पहुंचने का कारण क्या था। रिपोर्ट 10 जून तक सौंपनी है।

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