आज लमही स्थित मुंशी प्रेमचंद स्मारक और भवन में पुष्पांजलि का कार्यक्रम रखा गया है। शहर भर के साहित्यकार और गणमान्य कथा सम्राट मुंशी जी को नमन करेंगे और उनका संस्मरण करेंगे। रामलीला मैदान व स्मारक पर सांस्कृतिक आयोजनों की श्रृंखला शुरू होगी जिसमें स्कूली बच्चों के साथ ही सांस्कृतिक संगठनों की मौजूदगी रहेगी। इसी के साथ शाम को लमही को दीपों से सजाया जाएगा।
एक बार फिर जीवंत होंगे पात्र
मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर आयोजित लमही महोत्सव में कथा सम्राट के पात्र जीवंत होंगे। मंत्र, बड़े भाई साहब और बड़े घर की बेटी के साथ ही कठपुतली की नाट्य प्रस्तुतियां आकर्षण का केंद्र होंगी। 31 जुलाई को सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरुआत सुबह 10.30 बजे से लमही के रामलीला मैदान में होगी।
आज भी लोकप्रिय हैं प्रेमचंद्र की ये रचनाएं रूठी रानी, रंगभूमि, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान और मंगलसूत्र प्रेमचंद्र के बहुचर्चित उपन्यास हैं।
आखिरी तोहफ़ा, गैरत की कटार, गुल्ली डण्डा, घमण्ड का पुतला, ठाकुर का कुआँ, त्रिया-चरित्र, नसीहतों का दफ्तर, पंच परमेश्वर, बन्द दरवाजा पुत्र-प्रेम, प्रतिशोध, परीक्षा,पूस की रात, मन्त्र, शूद्र ,शराब की दुकान, शादी की वजह, समस्या, स्वामिनी, सिर्फ एक आवाज, सोहाग का शव और नमक का दरोगा समेत दर्जनों कहानियां पाठकों की स्मृतियों में हमेशा के लिए रच-बस गई हैं।
संग्राम, कर्बला, प्रेम की वेदी जैसे नाटकों ने उन्हें बहुत ख्याति दिलाई।
कुछ ऐसे प्रेरक वाक्यों का सागर है मुंशी जी की रचनाएं
भारतीय साहित्य के हिंदी और उर्दू के सबसे बड़े कथा लेखक प्रेमचंद की कलम ने कभी काल्पनिक दुनिया को पन्नों पर नहीं उतारा, उन्होंने हमेशा आम आदमी को अपना पात्र बनाया। यही कारण है कि उनकी हर रचना का हर एक पात्र , हर एक कथन आज भी जीवंत लगता है। आइए मुंशी प्रेमचंद्र की कुछ कालजयी वाक्यों को आपको पढ़वाते हैं-
1.चापलूसी का जहरीला प्याला आपको तब तक नहीं नुकसान पहुंचा सकता जब तक कि आपके कान उसे अमृत समझ कर पी ना जाए। 2 . न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं। इन्हें वह जैसे चाहती है, नचाती है।
3. सोने और खाने का नाम जिंदगी नहीं है, आगे बढ़ते रहने की लगन का नाम जिंदगी हैं। 4. जवानी आवेशमय होती है, वह क्रोध से आग बन जाती है तो करुणा से पानी भी।
5. जिस बंदे को दिन की पेट भर रोटी नहीं मिलती, उसके लिए इज्जत और मर्यादा सब ढोंग है। 6. जिस बंदे को दिन की पेट भर रोटी नहीं मिलती, उसके लिए इज्जत और मर्यादा सब ढोंग है।
7. विपत्ति से बढ़कर अनुभव सिखाने वाला कोई भी विद्यालय आज तक नहीं हुआ। मुंशी प्रेमचंद्र को दलितों, किसानों और गरीबों का लेखक माना जाता था। वो अपनी लेखनी से शब्दों को ऐसे लिखते थे की पढ़ने वाला उनसे सीधा संवाद कर सकता था। प्रेमचंद्र की रचनाओं में कभी चकाचौंध दिखी ही नहीं, वो हमेशा निचले तबके की भावनाओं से जुड़े रहे और उनको ही लिखा।