डॉ. अजय कृष्ण चतुर्वेदी वाराणसी. विकास की राजनीति का दंभ भरने वाली केंद्र सरकार पर आरोप है कि उसने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के ड्रीम प्रोजेक्ट काशी में मेट्रो रेल के प्रोजेक्ट को लटका दिया। अब कम से कम विधानसभा चुनाव 2017 की अधिसूचना जारी होने से पहले तो इसकी आधारशिला नहीं रख पाएंगे सीएम। इस तरह प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में विकास का उनका सपना धरा ही रह जाएगा। बता दें कि केंद्र सरकार द्वारा मेट्रो रेल संचालन की आठ फीसदी से कम आय का मामला उठाया था। लेकिन उसी वक्त वाराणसी विकास प्राधिकरण के सचिव एमपी सिंह ने इसका समाधान निकाल कर बजाफ्ता राज्य सरकार ने केंद्र सरकार को सारी जानकारी से अवगत करा दिया था। महीने भर से नगर विकास मंत्रालय में धूल खा रही है फाइल बता दें कि मेट्रो रेल प्रोजेक्ट सीएम अखिलेश का ड्रीम प्रोजेक्ट रहा है। इसके लिए उन्होंने सारी ताकत लगा दी। मेट्रो मैन श्रीधरन तक को बनारस भेज कर परियोजना को हरी झंड़ी दिलाई। श्रीधरन ने डीपीआर को तो देखा ही, साथ ही मेट्रो रेल के सभी रूट का बारीक अध्ययन किया। स्थानीय प्रशासन खास तौर पर मंडलायुक्त नितिन रमेश गोकर्ण ने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना कर न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि प्रदेश शासन से डीपीआर को फाइनल कराया। मुख्य सचिव की मुहर लगवा कर केंद्रीय शहरी मंत्रालय तक भिजवा दिया। उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव के यहां से मेट्रो रेल की डीपीआर नवंबर के शुरू में ही दिल्ली भेज दी गई। लेकिन वहां पहुंचने के बाद से महत्वाकांक्षी योजना पर मंत्रालय ने ब्रेक लगा दिया। अभी तय न फंडिंग का प्रारूप ही नहीं तय हो सका सूत्र बताते हैं कि 15,000 करोड़ की सीएम अखिलेश की इस महात्वाकांक्षी परियोजना की फंडिंग कैसे होगी। यही तय नहीं हो सका है। मसलन कितनी धनराशि केंद्र देगा और कितना राज्य सरकार को वहन करना होगा। पूरी परियोजना के लिए किससे लोन लिया जाएगा। यह भी तय नहीं है। उल्टे केंद्र ने अड़ंगा लगाया है कि काशी में मेट्रो रेल पर खर्च होने वाली धनराशि बैक कैसे होगी। भरोसेमंद सूत्र बाताते हैं कि केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय का कहना है कि इतनी बड़ी धनराशि खर्च होने के बाद उसकी रिकवरी ही नहीं हो पाएगी। राज्य व स्थानीय प्रशासन का दावा तैयारी पूरी हालांकि स्थानीय प्रशासन का दावा है कि राज्य सरकार की तरफ से सब कुछ ओक हो चुका है। संबंधित विभाग और स्थानीय प्रशासन का कहना है कि वो तो नवंबर में ही सीएम अखिलेश से उनके ड्रीम प्रोजेक्ट की आधारशिला रखवाने के लिए तैयार था। लेकिन केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय से हरी झंडी न मिल पाने के कारण मामला लटक गया। मेट्रो मैन दे चुके हैं हरी झंडी मेट्रो मैन डॉ. ई श्रीधरन पहले ही पीएम नरेंद्र मोदी की काशी में सीएम अखिलेश यादव के ड्रीम प्रोजेक्ट मेट्रो रेल परियोजना को हरी झंडी दे चुके हैं। दो दिन के वाराणसी प्रवास के दौरान उन्होंने मीडिया से कहा था कि काशी में मेट्रो चलाना कठिन जरूर है पर असंभव नहीं है। मेट्रो रूट का निरीक्षण करने के बाद उन्होंने रूट व डीपीआर दोनों को मंजूरी दे दी। कहाथा कि वह अपनी रिपोर्ट केंद्र व राज्य सरकार को भेज देंगे। काम कराना उन्हीं की जिम्मेदारी है। लखनऊ मेट्रो रेल कारपोरेशन के प्रधान सलाहकार डॉ. श्रीधरन ने कहा था कि, बनारस में मेट्रो का परिचालन सबसे बड़ी चुनौती है। यह सबसे कठिन काम है। फिर भी योजना आकार लेगी। रात में काम होगा। बताया कि चार साल में एक कारीडोर तो छह साल में दोनो करोडोर तैयार होंगे। मेट्रो के दोनों रूट इस प्रकार हैं मेट्रो के लिए दो रूट तय किए गए हैं। इसमें एक बीएचयू से भेल, शिवपुर तक तो दूसरा बेनियाबाग से सारनाथ तक। दोनों को मिला कर कुल लंबाई है 29.3 किलोमीटर जबकि कुल भूमिगत लाइन है 23 किलोमीटर। इसमें बीएचयू से भेल तक की लंबाई है 19.33 किलोमीटर। इसमें 15.5 किलोमीटर भूमिगत और शेष शिरोपरि है। इस रूट पर 17 स्टेशन होंगे। दूसरे बेनिया से सारनाथ के बीच की 9.88 किलोमीटर लंबी लाइन प्रस्तावित है। इस रूट पर 8.33 किलोमीटर मेट्रो लाइन भूमिगत होगी। इस रूट पर नौ स्टेशन होंगे। इसके कुल 26 स्टेशन होंगे। परियोजना पर 17000 करोड़ रुपये होंगे खर्च। बेनियाबाग में टर्मिनल प्रस्तावित है तो हरहुआ के गणेशपुर में 14 हेक्टेयर में वर्कशाप का निर्माण प्रस्तावित है। विकास संग अतीत की झलक भी दिखाएगी मेट्रो बता दें कि बनारस में मेट्रो की 80 फीसदी लाइन भूमिगत है। लिहाजा उम्मीद की जा रही है कि खोदाई के दौरान काशी के अतीत के पुरावशेष भी मिलें। लिहाजा कंसल्टेंट ने इसके लिए संग्रहालय का नक्शा भी तैयार किया है ताकि प्राचीनतम जीवंत नगरी के अतीत को संग्रहीत किया जा सके। यह ग्रीस के एथेंस मेट्रो स्टेशन की तर्ज पर होगा। लैंड बैंक का न होना भी बड़ा रोड़ा हालाकि वाराणसी में मेट्रो रेल दौड़ाने में सबसे बड़ी बाधा स्टेशन व पार्किंग आदि के लिए जगह का न होना भी है। वाराणसी विकास प्राधिकरण के पास कोई लैंड बैंक है ही नहीं। यह बड़ा रोड़ा बन कर सामने आया है। रूट तो तय हो गए, स्टेशन तक तय हो गए, पर स्टेशन के लिए जमीन ही नहीं है।