scriptNavratri 2019-देश का सबसे प्राचीन मंदिर जहां खुद विराजमान है मां शैलपुत्री, नवरात्र के पहले दिन देती हैं साक्षात दर्शन | Maa Shailputri Devi oldest temple history in Navratri 2019 | Patrika News
वाराणसी

Navratri 2019-देश का सबसे प्राचीन मंदिर जहां खुद विराजमान है मां शैलपुत्री, नवरात्र के पहले दिन देती हैं साक्षात दर्शन

मां करती है भक्तों की हर मुराद पूरी, वैवाहिक जीवन में आने वाली परेशानी भी हो जाती है दूर

वाराणसीSep 28, 2019 / 12:42 pm

Devesh Singh

Maa Shailputri

Maa Shailputri

वाराणसी. जहां खुद शिव विराजमान रहते हैं वहां से आदि शक्ति कैसे दूर हो सकती है। शिव की नगरी काशी में इसका सबसे बड़ा उदाहरण देखने को मिलता है। बनारस में एक ऐसा मंदिर है जहा पर खुद मां शैलपुत्री विराजमान है और शारदीय व वांसतिक नवरात्र के पहले दिन भक्तों को साक्षात दर्शन देती है। सिटी स्टेशन से चार किलोमीटर दूर स्थित मां शैलपुत्री के मंदिर में नवरात्र के पहले दिन आस्था का समन्दर उमड़ता है। इस बार नवरात्र का पहला दिन 29 सितम्बर को पड़ रहा है और मंदिर में शनिवार रात 12 बजे से ही दर्शन के लिए कतार लग जायेगी।
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मां शैलपुत्री मंदिर बेहद प्राचीन है और यह इतना पुराना मंदिर है कि यहां पर लोगों को इस बात की जानकारी नहीं है कि मंदिर को कब व किसने स्थापित किया। मंदिर के सेवादार पंडित बच्चेलाल गोस्वामी जी महराज ने बताया कि राजा शैलराज के यहां पर माता शैलपुत्री का जन्म हुआ था उनके जन्म के समय नारद जी वहां पर पहुंचे थे और कहा था कि यह पुत्री बहुत गुणवान है और भगवान शिव के प्रति आस्था रखने वाली होगी। इसके बाद जब माता शैलपुत्री बड़ी हुई तो वह भ्रमण पर निकल गयी। मन में शिव के प्रति आस्था थी इसलिए वह उनकी नगरी काशी पहुंची। यहां पर वरुणा नदी के किनारे की जगह उन्हें बहुत अच्छी लगी। इसके बाद माता शैलपुत्री यही पर तप करने लगी। कुछ दिन बाद पिता भी यहां आये तो देखा कि उनकी पुत्री आसन लगाकर तप कर ही है इसके बाद राजा शैलराज भी वही पर आसन लगा कर पत करने लगे। बाद में पिता व पुत्री के मंदिर का निर्माण हुआ। मंदिर में नीचे पिता राजा शैलराज शिवलिंग के रुप में विराजामन है जबकि उसी गर्र्भगृह में माता शैलपुत्री उपर के स्थान में विराजमान है। उन्होंने बताया कि मा शैलपुत्री ने फिर से पार्वती के रुप में जन्म लिया था और फिर उनका महादेव से विवाह हुआ था।
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देश में नहीं होगा ऐसा मंदिर
सेवादार पंडित बच्चेलाल गोस्वामी जी महाराज का दावा है कि दुनिया में अन्य कही पर ऐसा मंदिर नहीं होगा। माता यहां पर खुद विराजमान है, जबकि अन्य कही पर माता के विराजमान होने की बात सामने नहीं आयी है। उन्होंने कहा कि बालावस्था में ही माता तप करने के लिए बैठ गयी थी इसलिए अन्य कही जाने की संभावन नहीं हो सकती है। दोनों नवरात्र के पहले दिन माता शैलपुत्री माता पर्वती व दुर्गा के नौ रुप का दर्शन देती है। जो भक्त नवरात्र के पहले दिन मां का दर्शन कर लेता है, उसे आदि शक्ति के सभी रुपों का दर्शन मिल जाता है।
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रात में विशेष आरती को शुरू हो जाता है माता का दर्शन, प्रसाद में चढ़ाया जाता है चुनरी व नारियल
नवरात्र रविवार 29 सितम्बर से आरंभ हो रहा है। रविवार की रात्रि में दो बजे विशेष आरती के बाद मंदिर का पट खोल दिया जायेगा। इसके बाद भक्तों के दर्शन का सिलसिला शुरू होकर रविवार की रात 12 बजे तक जारी रहेगा। माता के दर्शन के लिए दूर-दराज से लोग आते हैं और कई किलोमीटर लंबी लाइन लगती है। माता को भक्त लाल फूल, चुनरी व नारियल का प्रसाद चढ़ाते हैं। सुहागिन यहां पर सुहाग के सामान भी चढ़ाती है। धार्मिक मान्यताओं की माने तो किसी के दांपत्य जीवन में परेशानी है तो यहां पर दर्शन करने से उसकी सारी परेशानी दूर हो जाती है। इसके अतिरिक्त माता अपने भक्तों के सभी कष्टों को दूर करने के साथ उनकी मुराद पूरी करती है। माता शैलपुत्री का वाहन वृषभ है और माता क दाएं हाथ में त्रिशुल व बाएं हाथ में कमल रहता है।
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