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सेवादार पंडित बच्चेलाल गोस्वामी जी महाराज का दावा है कि दुनिया में अन्य कही पर ऐसा मंदिर नहीं होगा। माता यहां पर खुद विराजमान है, जबकि अन्य कही पर माता के विराजमान होने की बात सामने नहीं आयी है। उन्होंने कहा कि बालावस्था में ही माता तप करने के लिए बैठ गयी थी इसलिए अन्य कही जाने की संभावन नहीं हो सकती है। दोनों नवरात्र के पहले दिन माता शैलपुत्री माता पर्वती व दुर्गा के नौ रुप का दर्शन देती है। जो भक्त नवरात्र के पहले दिन मां का दर्शन कर लेता है, उसे आदि शक्ति के सभी रुपों का दर्शन मिल जाता है।
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नवरात्र रविवार 29 सितम्बर से आरंभ हो रहा है। रविवार की रात्रि में दो बजे विशेष आरती के बाद मंदिर का पट खोल दिया जायेगा। इसके बाद भक्तों के दर्शन का सिलसिला शुरू होकर रविवार की रात 12 बजे तक जारी रहेगा। माता के दर्शन के लिए दूर-दराज से लोग आते हैं और कई किलोमीटर लंबी लाइन लगती है। माता को भक्त लाल फूल, चुनरी व नारियल का प्रसाद चढ़ाते हैं। सुहागिन यहां पर सुहाग के सामान भी चढ़ाती है। धार्मिक मान्यताओं की माने तो किसी के दांपत्य जीवन में परेशानी है तो यहां पर दर्शन करने से उसकी सारी परेशानी दूर हो जाती है। इसके अतिरिक्त माता अपने भक्तों के सभी कष्टों को दूर करने के साथ उनकी मुराद पूरी करती है। माता शैलपुत्री का वाहन वृषभ है और माता क दाएं हाथ में त्रिशुल व बाएं हाथ में कमल रहता है।
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