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वाराणसी

अगहन में ऐसे करें मां अन्नपूर्णा की आराधना, धन धान्य से भरेगा घर परिवार

मां अन्नपूर्णा का 17 दिवसीय महाव्रत अनुष्ठान 27 नवंबर से।

वाराणसीNov 25, 2018 / 05:58 pm

Ajay Chaturvedi

मां अन्नपूर्णा

मां अन्नपूर्णा

वाराणसी. धन धान्य से परिपूर्ण रहना हो, सुख समृद्धि की प्राप्ति की कामना करते हों तो मां अन्नपूर्णा के पूजन व व्रत अनुष्ठान से बढ कर कुछ और नहीं हो सकता। वह भी काशी में जिसके स्वामी भगवान शंकर को भी जगत जननी मां अन्नपूर्णा से भिक्षा मांगनी होती है। वह भी ऐसी भिक्षा कि उनकी नगरी में किसी को कोई कष्ठ न हो, कोई भूखा न रहे। ऐसी धर्म नगरी काशी में अब शुरू होने जा रहा है मां अन्नपूर्णा का 17 दिवसीय महाव्रत अनुष्ठान। यह अनुष्ठान 27 नवंबर से आरंभ होगा और 13 दिसंबर तक चलेगा। यह व्रत करने से जीवन रहता है सुखमय।
माता अन्नपूर्णा के इस महाव्रत में व्रतीजन 17 गाठ वाला धागा धारण करते हैं। इसमें महिलाएं बाएं व पुरुष दाहिने हाथ में इसे धारण करते हैं। इसमें अन्न का सेवन वर्जित है। केवल एक वक्त फलाहार किया जाता है वह भी बिना नमक का। व्रत रखने के इच्छुक लोगों को अन्नपूर्णा मंदिर के महंत रामेश्वरपुरी अपने हाथो से 17 गांठ वाला धागा वितरित करते हैं। 17 दिन तक चलने वाले इस अनुष्ठान का उद्यापन 13 दिसंबर को होगा। उस दिन धान की बालियों से माता रानी के परिसर को सजाया जाता है। बता दें कि पूर्वाचल के किसान अपनी फसल का पहला धान मां को अर्पित करते है। महिलाएं माता का दर्शन व फेरी लगा कर अपने व्रत का समापन करती है। 14 दिसंबर को धान की बाली प्रसाद रूप में भक्तो में वितरित किया जाता है।

मान्‍यता है कि मां अन्नपूर्णा का व्रत-पूजन दैहिक, दैविक, भौतिक सुख प्रदान करता है। अतः अन्न-धन, ऐश्वर्य, आरोग्य एवं संतान की कामना से मां अन्नपूर्णा का यह व्रत अनुष्ठान किया जाता है। यह व्रत अनुष्ठान मार्गशीर्ष (अगहन) मास कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि से शुरू होता है जो शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि तक किया जाता है। यानी यह अनुष्ठान 27 नवंबर से शुरू होगा और 13 दिसंबर तक चलेगा। हालांकि यह भी कहा गया है कि जो साधक 17 दिन तक अनुष्ठान नहीं कर पाएं वो एक दिन में इसका संपूर्ण लाभ पा सकते हैं। इसके लिए सबसे पहले स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करके पूजन की सामग्री रख कर रेशमी अथवा साधारण सूत का डोरा लेकर उसमें 17 गांठ लगाएं। इसके बाद लाल कुसुम, चंदनादि से पूजन कर डोरे को अन्नपूर्णा माता के चित्र या मूर्ति के सामने रख कर मां भगवती अन्नपूर्णा की प्रार्थना करें। प्रार्थना के बाद पुरूष दाहिने हाथ तथा स्त्री बायें हाथ की कलाई में डोरे को धारण कर कथा को सुनें। ध्‍यान रहे कथा निराहार रह कर ही कहें और सुनें। ऐसा करने से पुत्र, यश, वैभव, लक्ष्मी, धन-धान्य, वाहन, आयु, आरोग्य और ऐश्वर्य की प्राप्‍ति होती है।
अन्नपूर्णा षष्‍ठी की पूजा के लिए धूप, दीप, लाल फूल, रोली, हरे धान के चावल, अन्नपूर्णा देवी का चित्र या मूर्ती, रेशमी या साधारण सूत का डोरा, पीपल का पत्ता, सुपारी या ग्वारपाठा, तुलसी का पौधा, धान की बाल का कल्पवृक्ष, अन्न से भरा हुआ पात्र, करछुल, 17 पात्रों में बिना नमक के पकवान और गुड़हल या गुलाब जैसे पुष्‍पों की आवश्‍यकता होती है। यह पूजा शाम सूर्यास्त के बाद होती है, इस वर्ष यह शाम को पांच बजकर आठ मिनट से प्रारम्भ होगी। सारी सामग्री एकत्रित करके सफेद वस्त्र धारण कर पूजागृह में धान की बाली का कल्पवृक्ष बनायें और उसके नीचे भगवती अन्नपूर्णा की मूर्ति सिंहासन या चौकी पर स्थापित करे। उस मूर्ति के बायीं ओर अन्न से भरा हुआ पात्र तथा दाहिने हाथ में करछुल रखें। धूप दीप, नैवेद्य, सिन्दूर, फूल आदि भगवती अन्नपूर्णा को समर्पित करे। अपने हाथ के डोरे को निकालकर भगवती के चरणों में रख प्रार्थना करे। उसके बाद अन्नपूर्णा व्रत की कथा सुनें। गुरू को दक्षिणा प्रदान करें। 17 प्रकार के पकवानों का भोग लगाएं।

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