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वाराणसी

भूख, गरीबी और अशिक्षा से मुक्ति को असली आजादी मानते थे लोक नायक जयप्रकाश नारायण

देशहित के 14 सूत्री अपने प्रोग्राम के लिए नेहरू मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हुए। 1977 में वह चाहते थे कि जगजीवन राम बनें पीएम।

वाराणसीOct 11, 2017 / 01:43 pm

Ajay Chaturvedi

जय प्रकाश नारायण

जय प्रकाश नारायण

डॉ. अजय कृष्ण चतुर्वेदी


वाराणसी. लोकनायक जयप्रकाश नारायण जिनकी आज 115वीं जयंती है का जीवन बेहद संघर्षपूर्ण रहा। शिक्षा के लिए गांव (सिताब दियारा) ही नहीं बल्कि देश भी छोड़ा। पटना कॉलेज में पढाई के दौरान मौलाना अब्दुल कलाम आजाद से प्रभावित हुए तो कॉलेज छोड़ कांग्रेस द्वारा संचालित विद्यापीठ में पढ़ने गए, लेकिन तभी चौरी चौरा कांड ने विद्यापीठ को बंद करा दिया तो आगे की पढ़ाई के लिए वह अमेरिका गए। वहां अध्ययन के लिए काफी संघर्ष किया। फूड पैकेजिंग से लेकर जूठे बर्दन तक धोए। फिर जवाहरलाल नेहरू की पहल पर 1929 में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की। साल भर बाद यानी 1930 में जब कांग्रेस के अधिकांश नेता गिरफ्तार कर लिए गए तब जेपी ही थे जिन्होंने भूमिगत होकर कांग्रेस वर्किंग कमेटी का कामकाज जारी रखा। इसी दौरान उन्हें भी गिरफ्तार किया गया और वह 1933 तक जेल में रहे। एक दफा जेल से भाग कर नेपाल गए और गोरिल्ला फौज बनाई जिसका नाम दिया ‘आजाद दस्ता’। वह अपने आजाद भारत अभियान में जुटे रहे लेकिन तभी ब्रितानी हुकूमत ने उन्हें फिर गिरफ्तार किया और वह 12 अप्रैल 1946 को रिहा हुए। इस गिरफ्तारी के दौरान उन्हें लाहौर किले में एकांतवास की सजा काटनी पड़ी। बहुत सी यातनाएं झेलीं। आजादी के बाद 1952 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने मंत्रिमंडल में शामिल होने का न्योता भेजा पर जेपी नेहरू को 14 सूत्रीय प्रोग्राम दिया जिस पर माकूल जवाब न मिलने पर वह मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हुए। दरअसल जयप्रकाश नारायण भूख, गरीबी तथा अशिक्षा से मुक्ति को असली आजादी मानते थे।
बैंकों के राष्ट्रीयकरण की पहल 1952 में की थी जेपी ने

जेपी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू को जो 14 सूत्री प्रोग्राम दिया था उसमें संविधान में सुधार, प्रशासन तथा न्याय व्यवस्था में सुधार, बैंकों का राष्ट्रीयकरण, भूमिहीनों को जमीन देने का प्रस्ताव था । जयप्रकाश स्वदेशी नीति को आगे बढाना चाहते थे। उनकी योजना सहकारी इकाइयों के गठन की थी । नेहरू ने इन मुद्दों पर भले ही उन्हें माकूल जवाब न दिया हो पर उनके बाद इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए इसमें से कई काम किए। मसलन बैंकों का राष्ट्रीयकरण, भूमिहीनों को जमीन देने की नीति आदि प्रमुख रहे। लेकिन उन्हीं इंदिरा गांधी ने उन्हें गिरफ्तार कराया। 25 जून 1975 को देश में जब इंदिरा गांधी ने आपात काल लागू किया तो सबसे पहले जेपी को ही गिरफ्तार किया गया और वह पूरे आपात काल के दौरान जेल में ही रहे। जयप्रकाश नारायण किसी सरकार का हिस्सा भले ही न रहे हों पर उनकी राजनैतिक सक्रियता हमेशा बनी रही। उन्होंने ट्रेड यूनियन के अधिकारों के लिए संघर्ष किया तो कामगारों के लिए न्यूनतम वेतन, पेंशन, चिकित्सा-सुविधा तथा घर बनाने के लिए सहायता जैसे जरूरी मुद्दे लागू कराए।
जेपी की चलती तो मोरारजी नहीं जगजीवन राम होते प्रधानमंत्री
जेपी के अनुयायियों में से एक अशोक मिश्र ने पत्रिका संग बातचीत में बताया कि गुजरात से शुरू हुआ आंदोलन जब पटना पहुंचा और गांधी मैदान में सभा हुई तभी लालू प्रसाद यादव ने सबसे पहले जयप्रकाश नारायण को लोकनायक की उपाधि से नवाजा था। मिश्र बताते हैं कि हम लोग उन्हें उत्तर प्रदेश लाना चाहते थे। उन्हें लखनऊ लाने की योजना सफल भी हो गई थी लेकिन तभी तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा ने एक चाल चली, जेपी को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बता दिया,जिससे उनके सारे अनुयायी स्तब्ध रह गए और वह योजना धरी की धरी रह गई। फिर 1975 में आपात काल लागू होने के साथ ही उन्हें पटना में गिरफ्तार कर लिया गया। ऐसे में हम लोगों से उनकी मुलाकात भी तभी संभव हो पाई जब आपात काल खत्म हुआ। समाजवादी विचारक व पूर्व पत्रकार मिश्र कहते हैं कि अगर जयप्रकाश नारायण की चलती तो 1977 में मोरारजी देसाई नहीं जगजीवन राम देश के प्रधानमंत्री होते। लेकिन कुछ लोगों ने उन्हें गुमराह कर मोरारजी भाई को पीएम बनवा दिया। वह बताते हैं कि जयप्रकाश जी के जीवन काल में एक वक्त ऐसा भी आया जब सरकारों और कुछ लोगों ने यह कहना शुरू कर दिया कि वह अब किसी काम के नहीं रहे। तब हम लोगों ने बड़ी मुश्किल से उनके कदमकुआं स्थित आवास पर मुलाकात का मौका हासिल किया। वह भी पिछले दरवाजे से। तब इलाहाबाद में महाकुंभ लगा था, हम लोगों ने जेपी को इस बात के लिए राजी कर लिया कि वह कुंभ मेले में आए ताकि लोगों का यह भ्रम टूट जाए कि वह असक्त हो गए हैं और किसी काम के लायक नहीं रहे। लेकिन वह योजना भी उनके कुछ अत्यंत करीबी लोगों ने साजिशन ध्वस्त कर दी। अंततः आठ अक्टूबर को पटना में ही उन्होंने अंतिम सांस ली।
जय प्रकाश का बिगुल बजा तो जाग उठी तरुणाई

कमलापति आदर्श इंटर कॉलेज के सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापक अशोक श्रीवास्त कहते हैं कि जे पी प्रारंभ में मार्क्सवाद से प्रभावित थे, बाद में समाजवादी व सर्वोदयी बनें। 1942 में आजाद रेडियो के माध्यम से स्वतंत्रता आंदोलन को गति दी। वह समाजवादी विचारक, गांधी जी के सत्य अहिंसा से प्रभावित नेता थे। उन्होंने 5जून 1975को पटना के गांधी मैदान में संपूर्ण क्रांति का उद्घोष किया। सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, बौद्धिक व आध्यात्मिक सात क्रांतिओं को संपूर्ण क्रांति कहा। वह व्यवस्था परिवर्तन के हिमायती थे। हर स्थिति में लोकतंत्र व विचार स्वातंत्र्य, अभिव्यक्ति के पोषक थे। स्वतंत्रता से पूर्व और स्वतंत्रता के बाद भी जेल यात्रा के दौरान उन्होंने काफी में कष्ट सहा । जेल में ही गुर्दा रोग से पीड़ित हुए। 1977 में जनता पार्टी के गठन में और केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उस समय गाये जाने वाले गीत नें नौजवानों और विद्यार्थियों को आंदोलित कर रखा था, जो कुछ इस प्रकार था…
जयप्रकाश का बिगुल बजा
तो जाग उठी तरुणाई
है जवानों द्वार पर
क्रांति तिलक लगाने को आई ।।

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