#Once upon a time: काशी के इस मंदिर पर भी हुआ था औरंगजेब का हमला
#Once upon a time:काशी में है इन देव का मंदिर जिनके दर्शन मात्र से सभी ग्रहों की होती है शांति मिलती सुख समृद्धिकाशी के केदारखंड का माना जाता है कोतवाल-कृष्णावतार में मिलता है वर्णन-यहीं भगवान श्री कृष्ण ने इंद्रप्रस्थ की सुरक्षा के लिए भीम को भेजा था तपस्या के लिए-16वीं शताब्दी में शंकराचार्य ने स्थापित किया था क्रोधन भैरव का विग्रह-शैव व वैष्णव दोनों धर्मावलंबी दोनों ही समान रूप से करते हैं पूजा
डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदीवाराणसी. भगवान भोले नाथ की नगरी दो खंडों में विभक्त है, एक विशेश्वर खंड तो दूसरा केदारेश्वर खंड। दोनों खंडों की सुरक्षा के लिए दो भैरव विराजमान हैं। विशेश्वर खंड की सुरक्षा का जिम्मा जहां काल भैरव को प्राप्त है वहीं केदार खंड की सुरक्षा के लिए बटुक भैरव को कोतवाल के रूप में मान्यता प्राप्त है। बटुक भैरव का मंदिर कमच्छा क्षेत्र में अवस्थित है। यह अति प्राचीन मंदिर है। हालांकि मंदिर के महंत बताते हैं कि इस मंदिर में भी मुगल सम्राट औरंगजेब के शासनकाल में हुई थी तोड़फोड़। बाद में तत्कालीन काशी नरेश ने कराया था जीर्णोद्धार।
मंदिर के महंत जितेंद्र मोहन पुरी उर्फ विजय गुरु ने पत्रिका से बातचीत में बताया कि यह अति प्राचीन मंदिर है। कृष्णावतार में भी इस मंदिर का उल्लेख आता है। भगवान श्री कृष्ण ने पांडु पुत्र भीम को इंद्रप्रस्थ की रक्षा के लिए भीम को यहां तपस्या करने के लिए भेजा था। बाबा बटुक नाथ के प्रताप से ही इंद्रप्रस्थ की रक्षा संभव हुई।
वह बताते हैं कि बाबा बटुक नाथ को काशी के केदार खंड के कोतवाल की मान्यता हासिल है, ठीक वैसे ही जैसे विशेश्वर खंड के कोतवाल के रूप में काल भैरव को कोतवाल की मान्यता प्राप्त है। उन्होंने बताया कि बटुक भैरव बाबा का दर्शन करने मात्र से स्टांग भैरव का दर्शन पूर्ण माना जाता है।
बाबा बटुक नाथ में सभी ग्रहों की शांति की क्षमता है, चाहे वह शनि ग्रह हो अथवा राहु या केतु ग्रह। काल सर्व दोष से भी मुक्ति मिलती है बाबा के दर्शऩ से। वजह बटुक नाथ के मस्तक पर स्वयं सूर्य विद्यमान हैं। ऐसे में इन्हें ग्रहों का राजा भी कहा जाता है। लिहाजा हर ग्रहों की शांति के लिए भक्त जन यहां आते हैं और उन्हें अपेक्षित सफलता मिलती है।
इसके अलावा जिस किसी को भयंकर शारीरक या मानसिक कष्ट हो जो तमाम प्रयासों के बाद भी दूर न हो रहा तो उस कष्ट का भी निवारण यहां होता है। यहां रोजाना महाचक्र पूजन यानी पंचकार पूजन भी होता है। बताय कि जिस तरह से माना जाता है कि मनुष्य का शरीर पंचतत्व से बना है तो यहां मछली यानी जल, अंडा यानी अग्नि, मांस यानी सूर्य और मदिरा यानी वायु का द्योतक मानते हुए इन सभी से पूजन करने से सारे विकार दूर होते हैं। इसे ही महाचक्र पूजन या पंचमकार पूजन कहा जाता है।
उन्होंने बताया कि बाबा बटुक नाथ का विग्रह स्वयंभू है, इन्हें किसी ने स्थापित नहीं किया है। अलबत्ता जब मुगल काल में औरंगजेब के शासनकाल में इस मंदिर में तोड़फोड़ हुई तो उसके बाद काशी नरेश राजा बलभद्र ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था।
इससे पहले इस मंदिर में आदि शंकराचार्य ने 16वीं शताब्दी में खुद स्टांग भैरव के विग्रह की स्थापना की थी। इन्हें क्रोधन भैरव की भी मान्यता हासिल है। इसके अलावा इस मंदिर में महिषासुर मर्दिनी, नागा माता मंशा देवी, शिव, शिव के अर्द्ध नारीश्वर स्वरूप, शिव-पार्वती और विष्णु-महा लक्ष्मी का अर्द्ध नारीश्वर स्वरूप वाला विग्रह भी है। यही वजह है कि बटुक भैरव को शैव व वैष्णव दोनों ही संप्रदाय के लोग समान रूप से पूजते हैं।
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