वाराणसी

नाटी इमली का भरत मिलाप: यदुकुल के कंधे पर 479 साल से हो रहा रघुकुल का मिलन, ऐतिहासिक है काशी का भरत मिलाप

परे भूमि नहिं उठत उठाए, बर करि कृपासिंधु उर लाए। स्यामल गात रोम भए ठाढ़े, नव राजीव नयन जल बाढ़े…। रामचरितमानस की इस पंक्ति के साथ ही नाटी इमली का प्रसिद्ध भरत मिलाप इस वर्ष यह 480 साल में पहुंच गया है।

वाराणसीOct 23, 2023 / 04:44 pm

SAIYED FAIZ

Nati Imli Bharat Milap

वाराणसी। धर्म की नगरी काशी में दशहरे के ठीक अगले दिन होने वाले श्री चित्रकूट रामलीला समिति के भरत मिलाप की तैयारियां जोरों पर हैं। इस ऐतिहासिक भरत मिलाप को देखने के लिए सिर्फ काशी ही नहीं आस-पास के जिलों से लोग यहां नाटी इमली पहुंचते हैं। कहा जाता है कि इस भारत मिलाप में राम, लक्ष्मण, भरत शत्रुघ्न के साक्षात् दर्शन होते हैं। अस्ताचलगामी सूर्य की किरणें यहां बने चबूतरे पर एक तय समय पर पड़ती है और उसके बाद राम और लक्षमण धरा पर गिरे भरत और शत्रुघ्न की तरफ दौड़ पड़ते हैं और उन्हें गले लगाते हैं। इसके बाद चारों तरफ से सियावर रामचंद्र की जय की गूंज होती है। काशी का यह मेला लक्खी मेला है और इस वर्ष इसका 480वां साल है। इस ऐतिहासिक भरत मिलाप पर स्पेशल रिपोर्ट…
मेघा भगत को श्रीराम ने दिए थे यहीं दर्शन

लगभग पांच सौ वर्ष पहले संत तुलसीदास जी के शरीर त्यागने के बाद उनके समकालीन संत मेधा भगत काफी विचलित हो उठे। मान्यता है की उन्हें स्वप्न में तुलसीदास जी के दर्शन हुए और उसके बाद उन्ही के प्रेरणा से उन्होंने इस रामलीला की शुरुआत की। इस रामलीला का ऐतिहासिक भरत मिलाप, दशहरे के ठीक अगले दिन होता है। मान्यता है कि 479 साल पुरानी काशी की इस लीला में भगवान राम स्वय धरती पर अवतरित होते है। चित्रकूट रामलीला समिति के व्यवस्थापक पंडित मुकुंद उपाध्याय ने बताया कि कहा जाता है कि तुलसी दास ने जब रामचरित मानस को काशी के घाटों पर लिखा उसके बाद तुलसी दास ने भी कलाकारों को इकठ्ठा कर लीला यहीं शुरू की थी, मगर उसको परम्परा के रूप में मेघा भगत जी ने ढाला। मान्यता ये भी है की मेघा भगत को इसी चबूतरे पर भगवान राम ने दर्शन दिया था, उसी के बाद यहां भरत मिलाप होने लगा।
लीला का समय तय
इस मेले को लक्खी मेल भी कहा जाता है। काशी की इस परम्परा में लाखों का हुजूम उमड़ता है भगवान राम, लक्ष्मण माता सीता के दर्शन के लिए शहर ही नहीं अपितु पूरे देश के लोग उमड़ पड़ते है। शाम को लगभग चार बजकर चालीस मिनट पर जैसे ही अस्ताचल गामी सूर्य की किरणे भरत मिलाप मैदान के एक निश्चित स्थान पर पड़ती हैं तब लगभग पांच मिनट के लिए माहौल थम सा जाता है। जैसे ही चारों भाइयों का मिलन होता है पूरे मैदान में जयकारा गूंज उठता है।
nati_imli_bharat_milap_1.jpg
यादव बंधू निभाते हैं परंपरा

यदुकुल के कंधे पर रघुकुल का रथ सवार होता है तो एक अद्भुत नजारा काशी में देखने को मिलता है। आंखों में सुरमा लगाए धोती और बनियान और सर पर पगड़ी लगाए यादव बंधू अद्भुत छटा बिखेरते हैं। श्रीराम का 5 टन का पुष्पक विमान फूल की तरह पिछले 479 सालों से यादव बंधू लीला स्थल तक लाते हैं और भाइयों को रथ पर सवार कर अयोध्या तक ले जाते हैं। चित्रकूट रामलीला समिति के व्यवस्थापक पंडित मुकुंद उपाध्याय के अनुसार तुलसीदास ने बनारस के गंगा घाट किनारे रह कर रामचरितमानस तो लिख दी, लेकिन उस दौर में श्रीरामचरितमानस जन-जन के बीच तक कैसे पहुंचे ये बड़ा सवाल था। लिहाजा प्रचार प्रसार करने का बीड़ा तुलसी के समकालीन गुरु भाई मेघाभगत ने उठाया। जाति के अहीर मेघाभगत विशेश्वरगंज स्थित फुटे हनुमान मंदिर के रहने वाले थे। सर्वप्रथम उन्होंने ही काशी में रामलीला मंचन की शुरुआत की। लाटभैरव और चित्रकूट की रामलीला तुलसी के दौर से ही चली आ रही है।
nati_imli_bharat_milap_2.jpg
काशी नरेश भी बनते हैं साक्षी

इस लीला के साक्षी काशी नरेश भी बनते हैं। हाथी पर सवार होकर महाराज बनारस लीला स्थल पर पहुंचते हैं और देव स्वरूपों को सोने की गिन्नी उपहार स्वरुप देते हैं। इसके बाद लीला शुरू होती है। आयोजकों के अनुसार पिछले 227 सालों से काशी नरेश शाही अंदाज में इस लीला में शामिल होते रहे। पूर्व काशी नरेश महाराज उदित नारायण सिंह ने इसकी शुरुआत की थी। 1796 में वह पहली बार इस लीला में शामिल हुए थे। तब से उनकी पांच पीढ़ियां इस परंपरा का निर्वहन करती चली आ रही हैं।

Hindi News / Varanasi / नाटी इमली का भरत मिलाप: यदुकुल के कंधे पर 479 साल से हो रहा रघुकुल का मिलन, ऐतिहासिक है काशी का भरत मिलाप

Copyright © 2025 Patrika Group. All Rights Reserved.