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गंगा दशहरा से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार राजा भागीरथ ने ब्रह्मा की कठिन तपस्या की थी। इसके बाद प्रभु से गंगा को धरती पर ले जाने का वरदान मिला। वैशाख शुक्ल सप्तमी के दिन भगवान शिव की जटाओं में पहुंची थी इस दिन को गंगा दिवस के रुप में भी मनाया जाता है। भगवान शिव ने जब अपनी लट खोली तो गंगा की दस धाराएं हो गयी। गंगा की धाराएं नौ गंगा के नाम से हिमालय में बहने लगी। जबकि दसवीं धारा को महादेव ने विदसर सरोवर में डाल दिया था जो गोमुख से पहली बार धरती पर प्रकट हुई थी। गंगा दशहरा के दिन धरती पर अवतरण होने पर गंगा दशहरा मनाया जाता है। गंगा की दसवीं धारा ही गोमुख से लेकर आज तक बहती रहती है।
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गंगा दशहरा के दिन बटुकों ने अस्सी घाट पर 21 लीटर दुग्ध से मां गंगा का दुग्धाभिषेक किया गया। मंत्रोचार के साथ विधि-विधान से मां गंगा की पूजा की गयी है। भक्तों ने भी स्नान से पहले मां गंगा को प्रणाम किया और दीपदान कर पूजा की। गंगा स्नान को लेकर भक्तों की इतनी भीड़ उमड़ी की गौदौलिया की ट्रैफिक व्यवस्था ध्वस्त हो गयी थी।
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