हिंदू धर्म में गणेश भगवान को ऋद्धि-सिद्धि और बुद्धि का दाता माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि गुरु शिष्य परंपरा के तहत इसी दिन से विद्याध्ययन का शुभारंभ होता है। इस खास दिन पर बच्चे डण्डे से खेलते हैं। इसके चलते कुछ जगहों पर गणेश चतुर्थी को डण्डा चौथ भी कहते हैं।
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से गणेश भगवान का उत्सव शुरू हो जाता है। इस दिन से उनकी प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चना शुरू कर दी जाती है और लगातार दस दिनों तक घर में गणेश भगवान को रखकर अनंत चतुर्दशी के दिन बप्पा की विदाई की जाती है। इस दिन ढोल, नगाड़े बजाते हुए श्रद्धालु बप्पा की प्रतिमा को विसर्जन के लिए ले जाते हैं।
पूजा विधि
गणेश चतुर्थी के खास मौके पर सबसे पहले स्नान करें और फिर गणेश जी की प्रतिमा बनाएं। प्रतिमा सोने, तांबे, मिट्टी या गाय के गोबर से तैयार करें। इसके बाद एक साफ कलश लेकर उसमें जल भरें और उसे कोरे कपड़े से बांध दें। तब जाकर भगवान गणेश की प्रतिमा का स्थापना करें। इसके बाद प्रतिमा पर सिंदूर चढ़ाकर षोडशोपचार का पूजा करें। गणेश जी को दक्षिणा अर्पिता कर के 21 लड्डूओं का भोग लगाएं। गणेश जी के पास केवल पाचं लड्डू रखें बाकि बचे हुए लड्डूओं को ब्राह्मणों में बांट दें।