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वाराणसी

पूर्वांचल का सबसे बड़ा अस्पताल, मरीजों की तादाद के आगे लाचार

लगातार बढ़ रही मरीजों की तादाद की तुलना में सुविधाएं नाकाफी, आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं का सर्वथा अभाव. मृत्यु दर में हो रही वृद्धि चिंताजनक, अस्पताल प्रशासन कर रहा प्रधानमंत्री से गुहार…

वाराणसीAug 29, 2016 / 11:38 am

Ajay Chaturvedi

BHU hospital, Srsunder lal Hospital

BHU hospital, Srsunder lal Hospital

डॉ. अजय कृष्ण चतुर्वेदी

वाराणसी.
पूर्वांचल का सबसे बड़ा अस्पताल। यहां रोजाना चार हजार 370 मरीज बहिरंग सेवा (ओपीडी) का लाभ हासिल करने आते हैं। लेकिन यह अस्पताल यहां आने वाले सभी मरीजों को अपेक्षा के अनुरूप इलाज मुहैया नहीं करा पा रहा। हालांकि हाल के दिनों में यहां काफी सुविधाएं उपलब्ध कराई गईं। बावजूद इसके वो नाकाफी साबित हो रही हैं। हाल यह है कि पूर्वांचल के एम्स के रूप में शुमार इस बीएचयू के सरसुंदर लाल चिकित्सालय में मानक के अनुरूप न बेड हैं न आईसीयू की सुविधा। ऐसे में अब विश्वविद्यालय प्रशासन भी वाराणसी के सांसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आस लगाए बैठा है कि शायद पूर्वांचल ही नहीं पश्चिमी बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, नेपाल तक से आने वाले मरीजों को आला दर्जे की चिकित्सा सुविधा मुहैया हो सके। यहां भी सुपर स्पेसिलिटी सुविधाएं हासिल हो सकें। यहां भी हर्ट की बाइपास सर्जरी हो सके। लीवर ट्रांसप्लांट हो सके। कैंसर का समुचित इलाज हो सके।

Dr. O.P.Upadhyay













सरसुदर लाल अस्पताल में आने वाले मरीजों की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि
सरसुंदर लाल चिकित्सालय के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट डॉ. ओपी उपाध्याय ने पत्रिका से खास बातचीत में बताया कि यहां रोजाना 4,370 मरीज आते हैं। मरिजों के अस्पताल आने की संख्या में निरंतर इजाफा हो रहा है। अगर पिछले सात साल की तुलना करें तो पाएंगे कि 2009 में जहां इस अस्पताल में नित्य ओपीडी के लिए आने वाले मरीजों की तादाद 2,584 थी तो वह 2015 में बढ़ कर 4,370 हो गई। यानी लगभग दोगुनी। इस अस्पताल में 1500 बेड हैं लेकिन आईसीयू की संख्या महज 15 है। डॉ. उपाध्याय के अनुसार 1500 बेड व चार हजार से अधिक मरीजों के लिए मानक के अनुसार 150 आईसीयू बेड होने चाहिए। इस अस्पताल में मरीजों की तीमारदारी के लिए मानक के तहत 1300 नर्स होनी चाहिए मगर हैं महज 436। ऐसे ही वार्ड ब्वाय जो 800 चाहिए उनकी जगह मात्र 400 वार्ड ब्वाय काम कर रहे हैं। सफाई कर्मियों की संख्या भी काफी कम मात्र 200 है जो कम से कम 450 होने चाहिए। आईएमएस में हैं कुल 500 डॉक्टर जो पर्याप्त हैं।


सरसुंदर लाल चिकित्सालय को मिले स्वास्थ्य मंत्रालय की सुविधाएं
अस्पताल के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट डॉ. उपाध्याय बताते हैं कि यह अस्पताल बीएचयू के आयुर्विज्ञान संस्थान से जुड़ा है। ऐसे में इसे आर्थिक मदद भी यूजीसी (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग) से मिलती है। देश भर में महज दो ऐसे अस्पताल हैं जिन्हें यूजीसी फंडिंग करती है एक बीएचयू और दूसरा अलीगढ़ विश्वविद्यालय का अस्पताल। तभी तो जहां किसी भी एम्स को मिलता है सालाना प्रति बेड ढाई लाख पर बीएचयू के इस अस्पताल को मिलता है सालाना प्रति बेड एक लाख। ऐसे में कैसे तुलना हो एम्स से। कैसे इतनी बड़ी तादाद में आने वाले मरीजों को अपेक्षित स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराई जाए। मेडिकल सुपरिंटेंडेंट की पीएम व स्वास्थ्य एवं चिकित्सा मंत्रालय तथा एचआरडी मंत्रालय से गुजारिश की है कि मेडिकल कॉलेज को जो सुविधाएं मिल रही हैं उसे बदस्तूर जारी रखते हुए अस्पताल को स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन किया जाए। ताकि मरीजों को अपेक्षित चिकित्सा सुविधा मुहैया कराई जा सके।

सरसुंदर लाल अस्पताल की सुविधाएं
अस्पताल के आधिकारिक रिकार्ड के मुताबिक 2009 में जहां साल में नौ लाख, 43 हजार 231 मरीज ओपीडी में आए वहीं 2015 में इनकी संख्या बढ़ कर 13 लाख 32 हजार 996 हो गई। 2009 में जहां साल में 45, 161 मरीज भर्ती किए गए वहीं 2015 में महज 53, 046। यानी बढ़ती भीड़ और बेड की कमी से मरीजों को लौटाना पड़ रहा है। 2009 में जहां 8755 मेजर व 15,591 माइनर सहित कुल 24, 346 आपरेशन किए गए वहीं 2015 में 11,339 मेजर व 17, 759 माइनर सहित कुल 29, 098 आपरेशन ही हो पाए। सबसे चौंकाने वाला तथ्य है मृत्यु दर, जो 2009 में 2,546 था वह 2015 में बढ़ कर 3,107 तक पहुंच गया। 2013 और 2014 में तो मृत्यु दर इससे भी अधिक रहा। 2013 में जहां साल में 3,393 मरीजों की मौत हुई वहीं 2014 में 3,287 मरीजों की जान नहीं बचा सका यह अस्पताल। ये आंकड़े किसी भी अच्छे अस्पताल के लिए घातक हैं।

Dr.Omshankar























इसलिए चाहिए एम्स
इस संबंध में आईएमएस के कॉर्डियोलॉजिस्ट डॉ. ओम शंकर कहते हैं कि अब बीएचयू का सरसुंदर लाल चिकित्सालय निरंतर बढ़ती मरीजों की तादाद के आगे लाचार है। इस अस्पताल में जितनी सुविधाएं मुहैया की जा सकती थीं की जा चुकी हैं। छह मंजिल का है यह अस्पताल। अब इसमें इतनी जगह ही नहीं बची कि इसमें और सुविधाएं मुहैया कराई जा सकें। लिहाजा एक ही विकल्प है एम्स। उसके लिए भी अलग स्थान की तलाश करनी होगी। कहा कि उन्होंने यह सुझाव काफी पहले दिया था कि जहां ट्रामा सेंटर की स्थापना की जा रही है वहीं बीएचयू एम्स की स्थापना हो। लेकिन ऐसा हो नहीं सका। ऐसे में अब काशी में कबीर प्राकट्य स्थल (लहरतार) के करीब सरकारी जमीन इतनी है कि वहां एम्स की स्थापना की जासकती है। लिहाजा केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री से यह अनुरोध है कि बनारस ही नहीं बल्कि बिहार, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, नेपाल आदि जगहों से आने वाले गंभीर मरीजों के लिए काशी में एक एम्स की स्थापना हो। ऐसा अस्पताल हो जहां मरीजों को सुपर स्पेसिलिटी स्वास्थ्य सुविधाएं मिल सकें।

हर्ट, कैंसर व लीवर रोगियों को न जाना पड़े बाहर
डॉ. ओम शंकर कहते हैं कि काशी में हम लोग मनाते हैं कि किसी को दिल की बीमारी न हो। कारण यहा बाइपास सर्जरी नहीं हो सकती। कैंसर का समुचित इलाज नहीं हो सकता। लीवर ट्रांसप्लांटेशन का उदाहरण तो हाल ही में सबने देखा जब ओलंपियन मोहम्मद शाहिद को गुडगांव जाना पड़ा। अगर यह सुविधा काशी में होती तो शायद हम अपने होनहार खिलाड़ी की जिंदगी बचा पाते। ऐसे में अब काशी में एक सर्व सुविधा युक्त अस्पताल की दरकार है जो एम्स ही पूरी कर सकता है।

काशी में एम्स क्यों
डॉ शंकर कहते हैं काशी दुनिया की प्राचीनतम नगरी है। चिकित्सा विज्ञान से इसका गहरा नाता है। चरक, सुश्रुत, धनवंतरि की कर्मभूमि है यह। यहीं पहली सर्जरी हुई। पुराणों में वर्णित है जब समुद्र मंथन में विष निकला और भगवान शंकर ने उसे ग्रहण किया तब उनके गले में जो इंफेक्शन हुआ इसका इलाज यहीं इसी शहर में हुआ। हम उस परंपरा को कैसे मिटा सकते हैं। दूसरे यहां अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। अब तो प्रधानमंत्री ने जल यातायात की सुविधा भी मुहैया करा दी है। दुनिय़ा भर के पर्यटक यहां आते हैं। फिर ये काशी एम्स से उपेक्षित क्यों।

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