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डा.निखिल ने कहा कि मानसून के समय बारिश का अधिकांश पानी नाली से बह जाता है। सरकार रेन वाटर हार्वेस्टिंग को बढ़ावा देने के लिए बहुत काम कर रही है यह सिस्टम महंगा है, जिसके चलते सभी जगहों पर इसका उपयोग संभव नहीं हो पा रहा है। हमारी ईट से गलियों के पानी को भी बचाया जा सकता है। बारिश का पानी इन ईट के जरिय छनते हुए ड्रेन तक जायेगा। इसके बाद डे्रन के जरिए एक बड़ी टंकी में स्टेार होगा। खास तरह की ईट होने के चलते पानी साफ होकर ड्रेन तक पहुंचेगा। उन्होंने बताया कि जमा किये हुए पानी का खेती से लेकर अन्य चीजों में आसानी से उपयोग किया जा सकता है। पीने लायक पानी के प्रश्र पर कहा कि यह वाटर प्यूरीफायर नहीं है इसलिए जमा हुआ पानी को पीने लायक बनाने के लिए खास प्रोसेस करना होगा। डा.लिखिल ने कहा कि यह ईट मजबूत है लेकिन जहां पर भारी वाहन चलते हैं वहां पर इसका उपयोग नहीं होगा। फुटपाथ से लेकर वाहनों की पार्किंग जगह पर इन ईट का उपयोग किया जायेगा। ऐसा करके हम बारिश का पानी व्यर्थ होने से बचा पायेगा। आम लोगों को ईट उपलब्ध कराने के प्रश्र पर कहा कि थोड़ा काम बाकी है जो दो से तीन माह में पूरा हो जायेगा। इसके बाद इंटरनेशल पत्रिका में अपना शोध पत्र प्रकाशित करायेंगे। इसके बाद भारत सरकार को प्रोजेक्ट से जुड़ी सारी जानकारी उपलब्ध करायी जायेगी।
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