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वाराणसी

अखिलेश यादव ने खीची ऐसी लकीर कि शिवपाल यादव भी हो जायेंगे बेबस

यूपी चुनाव से पहले सपा की ताकत बढ़ाने की तैयारी, कैडर वोटरों पर पकड़ होगी मजबूत

वाराणसीOct 08, 2019 / 02:29 pm

Devesh Singh

Akhilesh Yadav and shivpal Yadav

Akhilesh Yadav and shivpal Yadav

वाराणसी. सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ऐसी लकीर खीची है कि शिवपाल यादव भी बेबस हो सकते हैं। यूपी चुनाव 2022से पहले अखिलेश यादव अपनी ताकत बढ़ाने में जुट गये हैं। अखिलेश का सारा दांव सफल होता है तो फिर बीजेपी के साथ बसपा की परेशानी बढऩा तय है। कांग्रेस भी यूपी में खुद को मजबूत करने में जुटी हुई है। ऐसे में बीजेपी के विरोधी वोटरों को अपने पाले में करने के लिए विभिन्न दलों में होड़ मची हुई है।
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अखिलेश यादव के नेतृत्व में सपा को तीन चुनाव में हार मिल चुकी है। सबसे पहले संसदीय चुनाव 2014 में सपा को झटका लगा था उसके बाद यूपी चुनाव 2017 में समाजवादी पार्टी की हार का सामना करना पड़ा था। इस चुनाव में अखिलेश यादव ने राहुल गांधी व प्रियंका गांधी की कांग्रेस से गठबंधन किया था इसके बाद भी परिणाम नहीं बदल पाया। लोकसभा चुनाव 2019 में अखिलेश यादव ने सबसे बड़ा राजनीतिक निर्णय लेते हुए मायावती की पार्टी बसपा से गठब्ंाधन करके सभी को चकित कर दिया था। लोकसभा चुनाव 2019 में सपा को फिर नुकसान उठाना पड़ा था लेकिन सपा के साथ के सहारे बसपा को फायदा हुआ था। तीन चुनाव में हार के पीछे अखिलेश यादव का दूसरे दलों से गठबंधन व चाचा शिवपाल यादव से झगड़ा भी एक वजह मानी गयी थी। ऐसे में अखिलेश यादव ने ऐसी लकीर खीच दी है, जिससे शिवपाल यादव की बेबसी बढ़ सकती है।
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परम्परागत वोट बैंक को मजबूत करने में जुटी है सपा, शिवपाल यादव की नहीं बना पायेंगे चक्रव्यूह
अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव को लेकर नरम रुख अपनाया हुआ है। सपा के परम्परागत वोटरों में यादव के साथ अन्य पिछड़े जाति व मुस्लिम आते थे। बीजेपी ने सपा के अन्य पिछड़ी जाति के वोट बैंक में सेंधमारी कर ली है। इसके बाद सपा के पास यादव वोटर बचे थे। शिवपाल यादव के अलग होने से यादव वोटरों में भी बंटवारा होने लगा था। राजनीतिक जगत की चर्चा की माने तो सपा ने पहले शिवपाल यादव की विधानसभा से सदस्यता निरस्त करने के लिए प्रार्थना पत्र लिया था लेकिन मुलायम सिंह व अखिलेश के हस्तक्षेप के बाद इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। सपा से शिवपाल यादव की पार्टी प्रगतिशली समाजवादी पार्टी (प्रसपा) से विलय की बात उठने लगी है। अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव का नाम लिए बिना ही कहा था कि जो सपा में आना चाहता है उसका स्वागत है। इसके बाद शिवपाल यादव ने कहा था कि वह सपा में पार्टी का विलय नहीं गठबंधन कर सकते हैं। अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव की वापसी के संकेत देकर बड़ी लकीर खींची है। यदि शिवपाल यादव अब भी अलग होकर चुनावी मैदान में ताल ठोकेंगे तो अखिलेश यादव का नुकसान नहीं हो पायेगा। जिन वोटरों की निगाह यूपी के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार के विलय पर टिकी है और जो लोग अखिलेश यादव व शिवपाल यादव के विवाद से नाराज थे उनके लिए भी अखिलेश यादव बड़े नेता बन कर उभरेंगे। इसकी मुख्य वजह अखिलेश यादव का पारिवारिक विवाद खत्म करने के लिए उठाया गया कदम होगा।
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