जगद्गुरु रामभद्राचार्य अपने भक्त डॉ0 शैलेन्द्र त्रिपाठी के निज आवास पर रूककर करीब आधा घंटो तक विश्राम किया और भक्तों का हालचाल लिया । उसके बाद महाराज जी अपने आश्रम चित्रकूट धाम के लिए रवाना हो गए ।
आपको बता दें कि जगद्गुरु रामभद्राचार्य उत्तर प्रदेश के चित्रकूट धाम के रहने वाले हैं। वें एक प्रख्यात विद्वान्, शिक्षाविद्, बहुभाषाविद्, रचनाकार और हिन्दू धर्मगुरु हैं। वे रामानन्द सम्प्रदाय के वर्तमान चार जगतगुरू रामानन्दाचार्यों में से एक हैं और इस पद पर 1988 से प्रतिष्ठित हैं।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य महाराज जी चित्रकूट में स्थित संत तुलसीदास के नाम पर स्थापित तुलसी पीठ नामक धार्मिक और सामाजिक सेवा संस्थान के संस्थापक और अध्यक्ष हैं। वे चित्रकूट स्थित जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय के संस्थापक और आजीवन कुलाधिपति हैं। यह विश्वविद्यालय केवल विकलांग विद्यार्थियों को स्नातक तथा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम की डिग्री प्रदान करता है। जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी दो मास की आयु में ही नेत्र की ज्योति से रहित हो गए थे और तभी से प्रज्ञाचक्षु हैं।
अध्ययन या रचना के लिए उन्होंने कभी भी ब्रेल लिपि का प्रयोग नहीं किया है। वें बहुभाषाविद् हैं और 22 भाषाएँ बोलते हैं। वे संस्कृत, हिन्दी,अवधी,मैथिली सहित कई भाषाओं में आशुकवि और रचनाकार हैं। उन्होंने 80 से अधिक पुस्तकों और ग्रंथों की रचना की है।
उनकी प्रमुख रचना में चार महाकाव्य (दो संस्कृत और दो हिन्दी में), रामचरितमानस पर हिन्दी टीका, अष्टाध्यायी पर काव्यात्मक संस्कृत टीका और प्रस्थानत्रयी (ब्रह्मसूत्र, भगवद्गीता और प्रधान उपनिषदों) पर संस्कृत भाषा सम्मिलित हैं। उन्हें तुलसीदास पर भारत के सर्वश्रेष्ठ विशेषज्ञों में गिना जाता है,और वे रामचरितमानस की एक प्रामाणिक प्रति के सम्पादक हैं, जिसका प्रकाशन तुलसी पीठ द्वारा किया गया है।