तो आइये उन अहम कारणों पर बात करते हैं, जिसने विधायक का चुनाव जीत चुके महेश परमार के बिल्कुल करीब आ चुकी महापौर की कुर्सी कुछ मतों की कमी के कारण उनकी नहीं हो सकी और भाजपा को इस बार इतनी करारी टक्कर का सामना क्यों करना पड़ा।
यह भी पढ़ें- analysis: क्यों हारी कांग्रेस? क्या इस बार भी अंतर्कलह और एकजुटता की कमी कांग्रेस को ले डूबी?
-नोटा ने बदले समीकरण
इस बार मतदाताओं ने नोटा काभरपूर उपयोग किया। महापौर चुनाव में कुल पांच प्रत्याशी मैदान में थे। इसके अलावा एक बटन नोटा का भी था। 2255 मतदाताओं ने किसी प्रत्याशी को वोट न देते हुए नोटा को चुना। नोटा के वोट के आगे महापौर पद के दो प्रत्याशी भी पीछे रह गए। भाजपा, कांग्रेस व आप प्रत्याशी के बाद सबसे अधिक नोटा को पंसद किया गया है। भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशी के बीच बेहद कम अंतर से हुई हार-जीत में नोटा बड़ा कारण माना जा रहा है। नोटा वाले वोट किस पार्टी या प्रत्याशी की नाराजगी के कारण थे, यह तो कहा नहीं जा सकता लेकिन वर्तमान में आए चुनावी परिणाम में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। लेकिन, ये बात गौर करने वाली है कि, जितना अंतर हार जीत में नहीं रहा उससे तीन गुना ज्यादा वोट तो नोटा पर पड़े हैं। अगर नोटा का विरोध पिछले मेयर के लिए माना जाए तो नोटा ने ही भाजपा को निकटतम ही सही पर जीत दिलाई है।
-भाजपा ने उठाया बाहरी प्रत्याशी का मुद्दा
कांग्रेस की ओर से घटि्टया के रहने वाले उज्जैन की तराना विधानसभा सदस्य महेश परमार को महापौर पद के लिए चुनाव मैदान में उतारा था। वर्ष 2018 में विधायक चुनाव जीतने वाले महेश परमार के पक्ष में माहौल भी बनाने की खूब कोशिश की गई। लेकिन, भाजपा ने इसमें बाहरी का मुद्दा जोर-शोर से उठाते हुए दमखम के साथ प्रचार किया। आपको बता दें कि, तराना उज्जैन शहर से करीब 35 किमी दूर है, ऐसे में इस हवा ने खूब जोर पकड़ा कि, जो महापौर हम तक या हम जिस महापौर तक आसानी न पहुंच सकें उसे वोट देकर अपना सफर मुश्किल क्यों करें। हालांकि, कांग्रेस ने लोगों की इस समस्या का निराकरण करने का हर संभव प्रयास किया, पर ये कोशिश शायद जीत के लिए काफी नहीं थी।
-बड़े नेताओं का अंतर
एक तरफ महेश परमार की बात करें तो उन्होंने तो अपने कार्यकर्ताओं के साथ निगम क्षेत्र की एक एक गली, सड़क पर मौजूद घर तक पहुंचने का प्रयास किया, लेकिन प्रचार के दौर में उन्हें बड़े नेताओं का उतना साथ नहीं मिला। राजनीतिक जानकारों की मानें तो इस वजह ने भी लोगों के जहन में अपना घर बनाया होगा, जिससे वो जीत का स्वाद नहीं सके। क्योंकि, पूरे चुनाव प्रचार के दौरान सिर्फ पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने ही सिर्फ एक बार यहां सभा की थी। जानकार मानते हैं कि, अगर कांग्रेस के बड़े नेता प्रचार में परमार का सहयोग बढ़ा देते तो शायद जीत का तमगा कांग्रेस के खाते में पहनाया जाता।
-टटवाल के मुकाबले परमार को नहीं मिला सहयोगियों का साथ
महेश परमार दो साल पहले जब विधायक का चुनाव लड़े तो उस समय उन्हें उज्जैन में समर्थकों का पूरा साथ मिला। इस बार जब महापौर के लिए मैदान में उतरे तो उन्हें सहयोगियों की कमी खली। यहां पर उनके कई सहयोगी या तो खुद चुनावी मैदान में खड़े होकर अपने लिए ही प्रचार करने में व्यस्त रहे या फिर परिवार और करीबी के पार्षद पद के प्रचार में जुटे रहे। ऐसे में वो पूरी तरह से परमार को समय नहीं दे सके।
-समाज से भी डगमगाया वोट
आपको बता दें कि, महेश परमार बलई समाज से आते हैं, जबकि भाजपा के मुकेश टटवाल बेरवा समाज से आते हैं। जातिगत समीकरण को देखते हुए ही भाजपा ने टटवाल को प्रत्याशी बनाया था। यहां पर बलई समाज के 4 फीसदी वोटर हैं, जबकि बेरवा समाज के 8 फीसदी से ज्यादा मतदाता हैं। टटवाल को भाजपा के कोर वोट तो मिले ही, बेरवा समाज ने भी साथ दिया।
-बूथ मैनेजमेंट में भी अंतर
कांग्रेस का बूथ मैनेजमेंट भी कमजोर रहा। टटवाल के पक्ष में माहौल बनाने के लिए भाजपा ने चुनाव के 15 दिन पहले ही बूथ स्तर पर अपने कार्याकर्ताओं को मैदान में उतार दिया। इसके अलावा सीएम खुद एक सप्ताह में ही दो बार टटवाल के लिए प्रचार करने पहुंचे। सीएम के अलावा सिंधिया भी माहौल बनाने उज्जैन पहुंचे। इसके अलावा मंत्री मोहन यादव और विधायक पारस जैन पूरे समय टटवाल के सहयोग में खड़े रहे।
जीत की जीत की ये भी अहम वजह
1- सफाई में भाजपा की पिछली परिषद द्वारा किए गए कार्य और भाजपा संगठन की मजबूती का मिला फायदा
2-कांग्रेस की निष्क्रियता का भाजपा को मिला फायदा। पार्टी नेताओं की मेहनत से मिली जीत
3-युवा चेहरा, स्वच्छ छवि और विजन का मिला लाभ, कमलनाथ का क्षेत्र, पार्टी का भी भरपूर सहयोग
4-बेहतर बूथ मैनेजमेंट का मिला लाभ।
5-एआइएमआइएम ने कांग्रेस के वोट काट दिए, कांग्रेस के वोट में सेंध लगाई तो मिल पाई काफी छोटी जीत
6-सीएम शिवराज और प्रदेश भाजपा संगठन ने पूरी ताकत झोंकी। विधायक भी एकजुट रहे।
7-भाजपा संगठन की मदद सीएम का रोड शो और पांच सभाओं से लाभ, उनके व्यक्तित्व का फायदा
बड़ा हादसा- नर्मदा नदी में गिरी बस, अभी तक निकाले जा चुके 13 शव, देखें वीडियो