देश में अश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को वाल्मीकि जयंति मनाई जाती है। अंग्रेजी कलेंडर में वाल्मीकि जयंती 20 अक्टूबर को है। हिंदू पंचांगों के अनुसार महर्षि वाल्मीकि का जन्म अश्विन मास की पूर्णिमा को माना जाता है। स्कंद पुराण के अवंतिखंड में 27वें अध्याय का अध्ययन करने पर पता चलता है कि महर्षि वाल्मीकि ने कुश के आसन पर बैठकर यही पर रामायण की रचना की थी।
महाकालेश्वर वैदिक शोध संस्थान के शोध पत्र में भी इसका उल्लेख मिलता है। महाकालेश्वर वैदिक शोध संस्थान के निदेशक डा. पीयूष त्रिपाठी के प्रकाशित शोध से पता चलता है कि महर्षि वाल्मीकि का उज्जैन से भी नाता है। शोध में पता चला है कि स्कंद पुराण के अवंतिखंड के अद्ययन से पता चलता है कि महर्षि वाल्मीकि प्रयागराज में तपस्या और स्वाध्यायकरते थे, पर रामायण महाकाव्य की रचना के लिए वह उज्जैन आए थे। पहले उन्होंने भगवान महाकाल की आराधना की और उसके बाद रामायण महाकाव्य की रचना की थी।
यह स्थान अब श्री सिद्धक्षेत्र वाल्मीकि धाम के नाम से जाना जाता है और उज्जैन में शिप्रा के तट पर दो हजार वर्गफीट में बना सिद्धक्षेत्र वाल्मीकि धाम बना है। बताया जाता है कि वाल्मीकि आश्रम के पीठाधीश्वर राष्ट्रीय संत बालयोगी उमेशनाथजी महाराज ने ही अयोध्या श्रीराम मंदिर परिसर में महर्षि वाल्मीकि का मंदिर बनाया जाने की इच्छा जताई थी। अब अयोध्या के वाल्मीकि मंदिर के भूमि पूजन के लिए वाल्मीकि धाम आश्रम की मिट्टी ले जाई जाएगी।