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mahakal lok: बदल रहा है समयः महाकाल कल…आज…कल…

mahakal lok lokarpan-काल गणना के प्रमुख केंद्र महाकाल की नगरी उज्जैन में समय चक्रबदल रहा है।

उज्जैनOct 10, 2022 / 12:32 pm

Manish Gite

काल गणना के प्रमुख केंद्र महाकाल की नगरी उज्जैन में समय चक्रबदल रहा है। पौराणिक नगर के महाकाल ज्योतिर्लिंग की नींव छठी शताब्दी में रखी गई थी, जिसे इल्तुत्मिश ने तहस-नहस किया था, जिसका वैभव मराठा शासकों ने करीब 1800 में लौटाया। आजाद भारत में 1992 के सिंहस्थ के बाद विकास ने गति पकड़ी, जो ‘श्री महाकाल लोक’ के रूप में भव्यता पा रही है। 11 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महाकाल लोक के पहले चरण का लोकार्पण करेंगे।

 

 

 

तब शिवरात्रि पर 2000 लोगों की भीड़ भी बड़ी बात होती थी

बीएल राजपुरोहित, पूर्व निदेशक, विक्रमादित्य शोधपीठ, उज्जैन

कल: वर्ष 1960 में रामानुजकोट से महाकाल दर्शन कर लौटने में 5 मिनट लगते थे। भस्मारती में 20-25 लोग रहते थे। आजादी के बाद लंबे समय तक मंदिर में प्राचीन मूर्तियां और शिलालेख पड़े रहे। सिर्फ सिंहस्थ में मंदिर में भीड़ दिखती थी।
उज्जैन का आज जैसा वैभव वर्ष 1950-60 के दशक में नहीं था। महाकाल की महिमा चहुंओर थी, लेकिन सब कुछ सामान्य और प्राचीन-सा था। मंदिर में चारों ओर भग्नावेष में प्रतिमाएं, शीलालेख पड़े थे। इनमें कुछ को मंदिर में रखकर मंदिर बनाए तो कुछ को म्यूजियम में पहुंचाया। सभा मंडप लकड़ी का था। पंडितों के लिए तखत रखे थे। दर्शन के लिए कतार नहीं लगती थी। चांदी द्वार से प्रवेश और उसी मार्ग से लौट आते थे। महज 5 मिनट में दर्शन हो जाते थे। उस समय बड़ा गणेश और मुख्य द्वार से प्रवेश होता था। मुख्य द्वार भी सामान्य था। सीधे मंदिर के सभा मंडप में पहुंचते थे। मंदिर के बरांडे में पत्थर लगे थे। 60 के दशक में भस्मारती में 20-25 लोग ही रहते थे। …..

उज्जैन का आज जैसा वैभव वर्ष 1950-60 के दशक में नहीं था। महाकाल की महिमा चहुंओर थी, लेकिन सब कुछ सामान्य और प्राचीन-सा था। मंदिर में चारों ओर भग्नावेष में प्रतिमाएं, शीलालेख पड़े थे। इनमें कुछ को मंदिर में रखकर मंदिर बनाए तो कुछ को म्यूजियम में पहुंचाया। सभा मंडप लकड़ी का था। पंडितों के लिए तखत रखे थे। दर्शन के लिए कतार नहीं लगती थी। चांदी द्वार से प्रवेश और उसी मार्ग से लौट आते थे। महज 5 मिनट में दर्शन हो जाते थे। उस समय बड़ा गणेश और मुख्य द्वार से प्रवेश होता था। मुख्य द्वार भी सामान्य था। सीधे मंदिर के सभा मंडप में पहुंचते थे। मंदिर के बरांडे में पत्थर लगे थे। 60 के दशक में भस्मारती में 20-25 लोग ही रहते थे। महा शिवरात्रि पर्व पर 2 से 3 हजार लोगों की भीड़ होना भी बड़ी बात थी। महाकाल सवारी सामान्य निकलती थी। सवारी में पंडे-पुजारियों के साथ 15-20 लोग साथ चलते थे। कोटितीर्थ कुंड कच्चा था। श्रद्धालु इसी में से जल लेकर महाकाल को अर्पित करते थे।

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आज: महाकाल मंदिर की ख्याति बढ़ने से भक्त बढ़े। इससे मंदिर में सुविधाएं विकसित हुईं। 1980 और 1992 के सिंहस्थ में कई बदलाव हुए। 2004 तक नंदी हाल विस्तारीकरण, प्रशासक कार्यालय सहित अन्य कई निर्माण हुए।

श्रीकांत वैशम्पायन, आर्किटेक्ट

मं दिर में बड़े बदलाव की शुरुआत वर्ष 1992 के सिंहस्थ से शुरू हुई। मार्बल गलियारा बना, जहां हादसे में कुछ भक्तों की मौत हो गई थी। इसके बाद भीड़ प्रबंधन पर काम हुआ। तत्कालीन राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा के महाकाल दर्शन के समय प्रशासक कार्यालय से चढ़ाव बने। 2004 के सिंहस्थ के बाद नंदी हॉल में 500 श्रद्धालुओं को बैठने के इंतजाम हुए। इस क्षमता को 2016 में बढ़ाकर 2200 किया। अब महाकाल लोक के पहले चरण का निर्माण हो गया है। यह संभवत: देश का सबसे लंबा मंदिर कॉरिडोर होगा, क्योंकि वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर का कॉरिडोर 300 मीटर का है, जबकि महाकाल लोक 920 मीटर का। महाकाल लोक को शिव, शक्ति व दूसरे धार्मिक किस्सों से जुड़ी 200 मूर्तियां और म्यूरल्स (भित्ती चित्र) से सजाया है। दो फेज में बन रहे महाकालकॉरिडोर का पहला फेज 356 करोड़ रुपए का है।

 

परिसर में एक समय में दो लाख लोग आ सकेंगे, शिप्रा भी बहेगी

कृष्णमुरारी शर्मा, प्रोजेक्ट आर्किटेक्ट, महाकाल कॉरिडोर, उज्जैन

कल: भविष्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए श्री महाकाल लोक का विस्तारीकरण किया जा रहा है। हैरिटेज सहेजने के साथ श्रद्धालुओं की सुविधाएं बढ़ाकर पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकास होगा। शिप्रा नदी कल-कल बहेगी।

सिंहस्थ 2016 के बाद बनी श्री महाकाल लोक की परिकल्पना साकार हो रही है। 356 करोड़ के पहले चरण में हुए कार्यों ने महाकाल मंदिर के सौंदर्य को अनुपम बना दिया है। दूसरे चरण में दो वर्षों में यहां 400 करोड़ से और निर्माण होंगे।

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