जानकारों के अनुसार सूर्य का मकर राशि में प्रवेश 14 जनवरी की रात 8.50 बजे होगा। सूर्य के उत्तरायण के साथ मौसमी बदलावों के साथ उत्सव के उल्लास का शुभारंभ होगा। मकर संक्रांति पर शश, मालव्य और सुकर्मा योग का शुभ संयोग बन रहा है। शक्ति और आरोग्य के देवता सूर्य उन्नति का प्रकाश फैलाएंगे। नदी स्नान, पतंगबाजी, तिल-गुड़, गिल्ली डंडा की परंपरा के साथ (धनुर) मलमास खत्म होने से शादियों का सिलसिला शुरू होगा।
जानकारों का मानना है कि इससे बाजारों में खरीदी के उत्साह का माहौल बनेगा। उज्जैन में हर त्योहार की शुरुआत बाबा महाकाल के आंगन से करने की परंपरा है, इसी क्रम में भस्म आरती के समय तिल-उबटन से स्नान कराया जाएगा। साथ ही पतंगों से मंदिर में सजावट होगी। इसके बाद शहर के अन्य मंदिरों में उत्सव मनाया जाएगा।
संक्रांति की परंपराएं
घरों में तिल-गुड़ के व्यंजन बनाते हैं। सुहागिनें एक-दूसरे को चूड़ी आदि सुहाग सामग्री भेंट करती हैं। पर्वकाल में तीर्थ नदियों में स्नान करते हैं, इसलिए शिप्रा तट रामघाट पर भी श्रद्धालु स्नान करने पहुंचेंगे। रंगबिरंगी पतंगें उड़ाकर तो कुछ लोग गिल्ली-डंडा खेलकर इस त्योहार का आनंद लेते हैं। धार्मिक परंपराओं के चलते कई लोग गायों को चारा डालते हैं।
विशेष योग के संयोग
ज्योतिषाचार्य पं. अमर डब्बावाला का कहना है कि कालगणना के अनुसार माघ मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर 15 जनवरी को चित्रा नक्षत्र सुकर्मा योग व बलवकरण और तुला राशि के चंद्रमा की साक्षी रहेगी। मकर संक्रांति का पुण्य काल रहेगा, दिनभर दान पुण्य आदि किए जा सकेंगे। इस दिन शनि स्वराशि मकर में गोचर करेंगे। ग्रहों के राजा सूर्य मकर में प्रवेश करेंगे। मकर राशि में सूर्य, बुध और गुरु के संयोग से त्रिग्रही योग बनेंगे। देवगुरु बृहस्पति हंसयोग का निर्माण करेंगे।
20 के बाद शादियों का सिलसिला
ज्योतिर्विद पं. आनंदशंकर व्यास के अनुसार मलमास खत्म होने से शुभ कार्य आरंभ होंगे। 16 दिसंबर से 20 जनवरी तक धनुर मास की अवधि मानी गई है। 20 जनवरी के बाद फिर से शादी-ब्याह और अन्य मांगलिक कार्य शुरू हो जाएंगे, जो 15 मार्च तक चलेंगे। इसके बाद फिर 15 मार्च से 15 अप्रैल तक मीन मास की वजह से मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाएगी। 15 अप्रैल से फिर एक बार मुहूर्त के योग बन जाएंगे, जो कि जुलाई तक चलेंगे। आमतौर पर लोग दिसंबर के मध्य से जनवरी के मध्य तक के महीने को मलमास के नाम से जानते हैं, लेकिन यह धनुर मास कहलाता है।
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इन वस्तुओं का करें दान
ज्योतिषाचार्य पं. अमर डिब्बावाला के अनुसार सूर्य के उत्तरायण होने पर शास्त्रीय महत्व वाले दान पुण्य का अनुक्रम शुरू हो जाता है। मकर संक्रांति महापर्व काल के दौरान चावल, मूंग की दाल, काली तिल्ली, गुड़, ताम्र कलश, स्वर्ण का दाना, ऊनी वस्त्र आदि का दान करने से सूर्य की अनुकूलता, पितरों की कृपा, नारायण की कृपा, महालक्ष्मी की प्रसन्नता देने वाला सुकर्मा योग सहयोग करेगा। मान्यता है, इन योगों में संबंधित वस्तुओं का दान पितरों को तृप्त करता है, जन्म कुंडली के नकारात्मक प्रभाव को भी दूर करता है और धन-धान्य की वृद्धि करता है।