तंत्र-मंत्र: बोलने लगता है मुर्दा, बन जाता है गुलाम, क्या है इस साधना का रहस्य?
काली अंधेरी रात में गुप्त स्थान या श्मशान में होती है शव साधना
काली अंधेरी रात में गुप्त स्थान या श्मशान में होती है शव साधना
उज्जैन. प्राचीन शहर उज्जैन के गढ़कालिका, विक्रांत भैरव, ओखलेश्वर श्मशान और चक्रतीर्थ श्मशान तंत्र क्रियाओं के लिए जाने जाते हैं। यहां कई तरह की तंत्र मंत्र की क्रियाएं की जाती हैं। नवरात्र के दिनों में तो उज्जैन में दूरदराज से तांत्रिक आते हैं। वहीं अमावस्या की काली अंधेरी रात में की गई तांत्रिक क्रियाएं तांत्रिकों को लाभ देती है। ऐसे ही श्मशान घाट में तीन तरह की साधना अघोरी करते हैं। ये है शिव साधना, श्मशान साधना और सबसे महत्वपूर्ण शव साधना। शव साधना के बारे में कहा जाता है इस साधना के पूर्ण होने पर मुर्दे में जान आ जाती है और वह अघोरी से बात करने लगता है। साथ ही उसका गुलाम भी बन जाता है और उसकी हर बात मानता है। बताया जाता है इस साधना को देश के पूर्व प्रधानमंत्री ने बैन भी कर दिया था। शव साधना के बारे में आम लोगों को कम ज्ञान है और इसलिए इसके प्रति कई प्रकार की मान्यताएं भी जन मानस में बनी हुई हैं। आज हम आपको इस साधना के एक बारे में सही जानकारी देकर आपको इस साधना संबंधी अंध मान्यताओं को समाप्त करेंगे, तो आइए जानते हैं शव साधना के बारे में।
तंत्र शास्त्र की अनेक शाखाएं तथा उपशाखाएं हैं और इन सभी की साधना पद्धति तथा कायदे कानून भी भिन्न-भिन्न होते हैं। इनमें से ही एक शाखा का नाम है अघोर पंथ। इसमें अनेकों साधनाएं हैं और उनमें से एक साधना है शव साधना। यह साधना अघोरी संपद्राय की सबसे कठिन साधना है। बताया जाता है कि यह साधना इतनी शक्तिशाली भी होती है कि इसे करने वाला धन से लेकर स्वर्ग में अपनी जगह भी निश्चित कर सकता है। कई बार तो अघोरियों की तंत्र-मन्त्र साधना से कई देवताओं के सिंहासन तक हिल जाते हैं। उज्जैन में सिंहस्थ के समय कई अघोरी तांत्रिक भी आए थे। उन्हें श्मशान में साधना करते देखा भी गया।
यह है शव साधना
शव साधना में अघोरी शव के ऊपर बैठकर साधना करते हैं। यह साधना इतनी शक्तिशाली है कि यदि सफल हो जाए तो साधक देवताओं से भी ज्यादा अधिक शक्तिशाली हो जाता है। वह नाम लेकर व्यक्ति की मृत्यु तक कर सकता है। शव साधना को खुले में तो बिलकुल नहीं किया जाता है। गुफाओं में बैठकर बाबा और अघोरी शव साधना करते हैं। इस साधना के लिए शव जरूरी होता है। शव के ऊपर बैठकर आधी रात के बाद यह साधना की जाती है। ऐसा बोला जाता है कि यदि कोई अज्ञानी व्यक्ति इस साधना को करता है तो शव उसकी जान तक ले सकता है।
ऐसे होती है शव साधना
जानकारों के अनुसार शव साधना के लिए शव को नहला कर शुद्ध कर किया जाता है। इसके बाद विशेष तांत्रिक प्रक्रिया के तहत शव के सिर में छोटा सा सुराख बना यज्ञ सामग्री आदि भी डाली जाती है। इसके बाद शव को साधना स्थल पर रख दिया जाता है और साधक गुरु पूजन, अघोर पुरुष नमन, दिशा नमन, दिशा कीलन, स्थान कीलन जैसी कई क्रिया करता है। शव का भी पूजन कर उसका पूरा सम्मान किया जाता है। शव पूजन के बाद सही ग्रह नक्षत्र की स्थिति आने पर शव के ऊपर बैठ शव साधना के मंत्रों का जप शुरू किया जाता है। साधक के सामने अलख यानि यज्ञ स्थल प्रज्जवलित रहता है, जिसमें अघोरी हर मंत्र के अंत में तांत्रिक सामग्री की आहुति देता रहता है। जैसे-जैसे अघोर साधक के जप पूर्णता की ओर अग्रसर होते जाते है। वैसे-वैसे साधक का जप स्वर भी प्रबल होता जाता है। इस स्थिति में शव में धीरे-धीरे चेतना आती जाती है। उसके अंग फड़कना शुरू कर देते हैं। उसकी आंखों की पलकें खुलने तथा बंद होने लगती हैं और शव की सांसे भी धीरे-धीरे तेज होने लगती हैं। इस पूरी प्रक्रिया में शव पूरी तरह से जाग्रत हो जाता है। इस अवस्था में तांत्रिक लोग शव सहायता से अनेक प्रकार की गुप्त तांत्रिक साधनाओं के तरीके और रहस्य जानते हैं।
पहले शव से लेनी पड़ती है अनुमति
शव साधना के लिए जरूरी है कि जिस व्यक्ति का शव उपयोग किया जा रहा है पहले उससे अनुमति ली जाए। शव उसी व्यक्ति का हो जिसकी अकारण मौत हुई हो। अकारण मौत के कारण उस व्यक्ति की आत्मा आसपास ही होती है और वह अघोरी की मदद करती है। शव पूजा के समय आसपास हजारों-लाखों भूतों का अदृश्य जमघट लग जाता है। अघोरी की पूजा इन भूतों से तभी बच सकती है, जब वह भूतों से निपट सकता है। अघोरी छुपकर इस तरह की साधना करते हैं तो इस प्रकार शव साधना जैसी शक्तिशाली साधना से हर कोई डरता है। यह साधना करना हर किसी के वश की बात भी नहीं है।
यह होता है फायदा
अघोर साधकों की मानें तो शव साधना के कई के तरीके हैं पर शव साधना का विशेष लाभ यही होता है कि इस साधना के माध्यम से अघोरी लोग अन्य तांत्रिक गुप्त साधनाओं का ज्ञान शव द्वारा प्राप्त करते हैं। असल में होता यह है कि जब शव पूरी तरह से जाग्रत हो जाता है तब वह साधना करने वाले अघोरी से उसी प्रकार बातचीत करता है जैसे दो सामान्य व्यक्ति करते हैं। इस अवस्था में शव इस जगत तथा उस दूसरे जगत के मध्य एक माध्यम बना होता है, इसलिए साधक उससे जिन साधनाओं के बारे में जानना चाहता है, वह अघोर साधक को उन सभी साधनाओं के बारे में ज्ञान देता है और इस ज्ञान की मदद से साधक तंत्र के मार्ग पर आगे की ओर बढ़ता है। शव साधना के बहुत ही कम जानकार लोग रह गए हैं और जब कभी भी इनकी अध्यक्षता में यह साधना होती है तो वह बेहद निर्जन स्थान में गुप्त तरीके से होती है।
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