महंत रितेश गुरु ने बताया, स्कंद पुराण अनुसार एक बार दुर्लभ कैलाश पर्वत छोड़कर सदाशिव को महाकाल वन स्थित एकांत में बैठा देखकर पार्वती ने शंका का समाधान करना चाहा और कहा, आप यहां क्यों बैठे हो? शिवजी ने कहा, देवी यह स्थान तीन लोक में सर्वाधिक शांत, सुंदर और पुण्यप्रद है। देवर्षि नारदजी ने भी महाकाल वन स्थित उस स्थान की महिमा गाई तथा जहां शिवजी बैठे थे, उसे पत्तनेश्वर महादेव की संज्ञा दी।
जोड़े से पूजा का है विशेष महत्व
महंत ने बताया कि पत्तनेश्वर महादेव की आराधना से सुख-समृद्धि मिलती है। जोड़े से पूजा करने से दांपत्य जीवन सुखी रहता है। घर में सुख-शांति रहती है। मंदिर प्रांगण में कृपालु हनुमानजी, शनि, भैरवनाथ मंदिर भी स्थित हैं। हनुमान मंदिर में हर अमावस्या रामचरितमानस का पाठ होता है। साधु-संतों एवं निराश्रितों के लिए रामरोटी व रुकने की व्यवस्था है।
32 वर्ष से अखंड धुनी
मंदिर प्रांगण में 32 वर्षों से अखंड ज्योत एवं अखंड धुनी प्रज्ज्वलित है। धुनी की शुरुआत 1990 से हुई थी। 84 महादेव मंदिरों में यह पहला शिव मंदिर है, जो उज्जैन में प्रवेश करते समय पहले आता है। सावन में कावड़ यात्री पत्तनेश्वर महादेव के दर्शन कर महाकाल दर्शन के लिए पहुंचते है। यहां 1000 पौधे लगे हैं, जिससे हमेशा हरियाली छाई रहती है।
इसलिए पत्तनेश्वर महादेव नाम पड़ा
स्कंद पुराण में नारद जी ने इसका जगह को पत्तनेश्वर नाम दिया। साथ परमारकालीन स्थापत्यकला अनुसार निर्मित किया गया था। इस कारण पत्तन शब्द से पत्तनेश्वर नाम पड़ा। मुस्लीम शासकों ने इसके स्वरूप को प्रभावित किया। इसके बाद आज यह स्थिति है।