अफसोस है कि
अफसोस है कि मध्यप्रदेश में ही पंचायती राज व्यवस्था सियासत व नौकरशाहों के चंगुल में फंसकर तड़प रही है। जिला पंचायत, जनपद पंचायत, ग्राम पंचायत के लिए चुने गए जनप्रतिनिधियों के अधिकार सिर्फ कागजों तक सीमित हैं। पूरे प्रदेश में यही स्थिति है। जिला पंचायत अध्यक्ष व जनपद पंचायत अध्यक्ष तक की सुनवाई नहीं हो रही। और अगर ये जनप्रतिनिधि विपक्षी दल से तालुक्क रखते हैं तो इनका पूरा कार्यकाल दु:स्वप्न की तरह बीतता है।
बात करते हैं उज्जैन जिला पंचायत की
बात करते हैं उज्जैन जिला पंचायत की। जिला पंचायत अध्यक्ष व उपाध्यक्ष कांग्रेस के हैं। २१ सदस्यीय जिला पंचायत में ११ सदस्य कांग्रेस के हैं। नौ बीजेपी के हैं। दो माह बाद बुलाई गई साधारण सभा में गिनती के छह सदस्य आए। कोरम पूरा करने के लिए कम से कम सात होना चाहिए। सो पहले दिन सभा रद्द। सभा जरूरी थी, सो अगले दिन भी मुश्किल से ८ सदस्य जमा किए गए, लेकिन सभा से जिम्मेदार अफसर गायब। सभा में जिला पंचायत अध्यक्ष ने तराना में दो सौ रुपए से बन रही सड़कों में गड़बड़ी मुद्दा उठाया। पहले से सिंहस्थ व पंचक्रोशी मार्ग के निर्माण में भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे पीडब्ल्यूडी के एक उपयंत्री को इन सड़कों की जिम्मेदारी दे दी। यह उपयंत्री १५ साल से तराना में टिका है और जो भी ईई उज्जैन में तैनात होता है, उसे साध लेता है।
उपयंत्री को ही सारे कामों की जिम्मेदारी क्यों दी
परमार ने सवाल उठाया कि इसी उपयंत्री को ही सारे कामों की जिम्मेदारी क्यों दी जाती है? जबकि तराना में और भी उपयंत्री हैं, एसडीओ भी हैं। इन्हें भारी भरकम काम से क्यों मुक्त रखा जाता है? अध्यक्ष ने आरोप लगाया कि ये उपयंत्री ठेकेदारी में व्यस्त है। जाहिर है, आरोप व मामला गंभीर है, लेकिन सुनवाई नहीं हो रही। जब जिला पंचायत अध्यक्ष के इतने गंभीर आरोपों को दरकिनार कर दिया जाता है तो जिला पंचायत के सदस्यों की स्थिति का अंदाजा आसानी लगाया जा सकता है। जनपद पंचायतों के हाल और भी खराब हैं।
यही है पंचायती राज की हकीकत
दरअसल, पंचायती राज की दुर्दशा के लिए सियासत व नौकरशाह जिम्मेदार हैं। पंचायती राज व्यवस्था में असली चेहरा कौन हैं? और मुखौटा कौन हैं? ये समझना पड़ेगा। मुखौटा भले ही पंचायती राज व्यवस्था के जनप्रतिनिधि हों, लेकिन असली चेहरे यहां कलेक्टर व सीईओ हैं। थोड़ी-बहुत सत्ता पक्ष के विधायकों को तवज्जो मिल जाती है। पंचायती राज के मुख्य सिद्धांत सत्ता के विकेंद्रीकरण की ये हालत कर डाली जिम्मेदारों ने। जिले की ६०९ ग्राम पंचायतों की स्थिति भी इससे अलग नहीं है। अधिकतर ग्राम पंचायतों में सरपंच मुखौटा बने हैं, सचिव की धुन पर वे नाचने को मजबूर हैं। दो साल पहले दावा किया गया कि सभी पंचायतें हाईटेक हो चुकी हैं।
हरेक ग्राम पंचायत में कंप्यूटर
दावे के अनुसार हरेक ग्राम पंचायत में कंप्यूटर, प्रिंटर, एलसीडी टीवी स्थापित कर दी गई है। हकीकत देखना हो तो किसी भी ग्राम पंचायत में जाकर देख लें। वहां धूल खाती सिर्फ टेबल-कुर्सियां ही दिखेंगी। पंचायती राज को हकीकत में बदलने के लिए ऐसी ठोस व्यवस्था बनानी चाहिए जिससे जनप्रतिनिधि व प्रशासन एक-दूसरे के पूरक हों। अधिकार व काम करने के अवसर जनप्रतिनिधियों को मिलने चाहिए और इसकी व्यवस्थित निगरानी का जिम्मा प्रशासन के पास होना चाहिए। क्या इस बारे में सियासतदार व नौकरशाह कुछ सोचेंगे? क्योंकि एक शायर की ये पंक्तियां हैं-
” बहुत ही खूबसूरत होती है एकतरफा मोहब्बत, ना ही
कोई शिकायत होती है, ना कोई बेवफा कहलाता है। “
gopal.bajpai@in.patrika.com