आरटीआई में तो लम्बाई पूछी पर टरका दिया सूचना के अधिकार कानून के तहत रावजी का हाटा स्थित चिंतामणि की घाटी निवासी प्रदीप श्रीमाली ने सूरजपोल चौराहा की लम्बाई, श्यामाप्रसाद मुखर्जी की मूर्ति, निर्माण के बाद चौराहा की लम्बाई-चौड़ाई एवं चौराहा छोटा होने पर यातायात की व्यवस्था के वैकल्पिक व्यवस्था को लेकर नगर निगम आयुक्त से सूचना मांगी थी। निगम के सहायक सूचना आयुक्त ने जवाब में कहा कि जो सूचना मांगी गई वह प्रश्नगत है, जबकि आरटीआई में इस प्रकार की सूचना देने का प्रावधान नहीं है। साथ ही चौराहा की लम्बाई एवं श्यामाप्रसाद मुखर्जी की प्रतिमा को लेकर जवाब निगम में उपलब्ध नहीं होने का उल्लेख किया।
चौराहा को लेकर विवाद यह
सूरजपोल चौराहा के आसपास रहने वाले लोगों एवं व्यापारियों का कहना है चौराहा की जो डिजाइन इस समय है उससे वाहन आपस में टकराएंगे। यातायात की व्यवस्था खराब होगी। करोड़ों रुपए के बाद भी आगे जाकर यह चौराहा एक्सीडेंट जोन बन जाए तो क्या होगा।
– पत्रिका व्यू –
नगर निगम को आत्म चिंतन करना चाहिए किसी प्रोजेक्ट में जनता की भागीदारी एवं उसकी राय सामने आती है तो उस पर विचार करना चाहिए न कि अपनी मनमर्जी। आरटीआई के कानून बने हुए यह मान सकते हैं ंंलेकिन शहर के विकास के लिए कानूनी गली निकाले बिना ही कोई अच्छा कार्य हो रहा हो तो नगर निगम को उसमें योगदान देना चाहिए। सूरजपोल चौराहा पर नगर निगम ने भी बहुत खर्च किया और अब स्मार्ट सिटी कंपनी खर्च कर रही है। एक मायने में तो दोनों मिलकर ही काम कर रहे हैं क्योंकि स्मार्ट सिटी के अफसर निगम में और निगम के अफसर स्मार्ट सिटी में काम कर रहे हैं और मिलकर ही कर रहे हैं। ऐसे में टोपी इधर-उधर रखने की बजाय शहर के विकास को फोकस करना चाएिह। आरटीआई में तो चौराहा की लम्बाई- चौड़ाई ही पूछी गई जिस पर भी गोलमाल जवाब देकर निगम ने अपनी ही प्रतिष्ठा को कमजोर किया है। अब भी समय है कि जनता, व्यापारियों और सेवानिवृत्त इंजीनियरों के साथ एक बार सूरजपोल चौराहा पर जुटकर सबकी सुननी चाहिए और अगर वास्तव में भविष्य में कोई परेशानी होने जैसा तकनीकी दृष्टिकोण सामने आ रहा है तो उस पर विचार करना चाहिए। यह भी याद रखना होगा कि तब स्मार्ट सिटी में चयन उदयपुर की जनता की जनभागीदारी के अभियान से ही हुआ है।
नगर निगम को आत्म चिंतन करना चाहिए किसी प्रोजेक्ट में जनता की भागीदारी एवं उसकी राय सामने आती है तो उस पर विचार करना चाहिए न कि अपनी मनमर्जी। आरटीआई के कानून बने हुए यह मान सकते हैं ंंलेकिन शहर के विकास के लिए कानूनी गली निकाले बिना ही कोई अच्छा कार्य हो रहा हो तो नगर निगम को उसमें योगदान देना चाहिए। सूरजपोल चौराहा पर नगर निगम ने भी बहुत खर्च किया और अब स्मार्ट सिटी कंपनी खर्च कर रही है। एक मायने में तो दोनों मिलकर ही काम कर रहे हैं क्योंकि स्मार्ट सिटी के अफसर निगम में और निगम के अफसर स्मार्ट सिटी में काम कर रहे हैं और मिलकर ही कर रहे हैं। ऐसे में टोपी इधर-उधर रखने की बजाय शहर के विकास को फोकस करना चाएिह। आरटीआई में तो चौराहा की लम्बाई- चौड़ाई ही पूछी गई जिस पर भी गोलमाल जवाब देकर निगम ने अपनी ही प्रतिष्ठा को कमजोर किया है। अब भी समय है कि जनता, व्यापारियों और सेवानिवृत्त इंजीनियरों के साथ एक बार सूरजपोल चौराहा पर जुटकर सबकी सुननी चाहिए और अगर वास्तव में भविष्य में कोई परेशानी होने जैसा तकनीकी दृष्टिकोण सामने आ रहा है तो उस पर विचार करना चाहिए। यह भी याद रखना होगा कि तब स्मार्ट सिटी में चयन उदयपुर की जनता की जनभागीदारी के अभियान से ही हुआ है।