बिजोलिया की गुहिकाओं में खोजे आदिमानव के बनाए चित्र
उदयपुर के विशेषज्ञों ने पहचाने प्रागैतिहासिक कालीन शैलचित्र, कुछ शैलचित्र 40 हजार वर्ष ई.पू. से 10 हजार वर्ष ई.पू. तक के, विशेषज्ञों ने बिजोलिया को बताया भू-पुरातात्विक महत्व का स्थल
उदयपुर•Nov 22, 2021 / 08:35 pm•
Pankaj
पंकज वैष्णव/उदयपुर. राजस्थान में भीलवाड़ा जिले का बिजोलिया कस्बा, जो किसान आन्दोलन की वजह से जाना जाता है, लेकिन इसका अपना भू-वैज्ञानिक एवं पुरातात्विक महत्व भी है, जिससे अधिकांश लोग अपरिचित हैं। उदयपुर के विशेषज्ञों ने बिजोलिया में प्रागैतिहासिक कालीन शैलचित्र खोजे हैं।
पूरे विश्व में प्रागैतिहासिक काल में आदिमानवों की ओर से गुहिकाओं और शिलाखण्डों पर की गई चित्रकारी के अवशेष मिलते हैं। भारत में भी अनेक राज्यों में ऐसे शैलचित्र मिले हैं। राजस्थान के हाड़ौती क्षेत्र (कोटा, बूंदी, झालावाड़) में करीब 400 जगहों पर प्रागैतिहासिक कालीन चित्रावशेष पाए गए हैं, लेकिन बिजोलिया में मिलने वाले चित्रावशेषों से अभी तक पर्दा नहीं उठ पाया था। पुरातात्विक नजर से देखें तो बिजोलिया में आदिमानवों के बनाए शैलचित्रों का पाया जाना अहम बात है।
कस्बे से 3 किलोमीटर दूर है स्थित
बिजोलया में बूंदी मार्ग पर तीन किलोमीटर दूर बांयी तरफ एक उठा हुआ भूभाग है, जहां पीठिका शैल (पेडेस्टल रॉक) के करीब 20 विशाल शिलाखण्ड मौजूद हैं। इन्हीं में से दो पीठिका शैलों (पेडेस्टल रॉक) में मौजूद गर्त एवं गुहिकाओं में प्रागैतिहासिक काल में की गई चित्रकारी के अवशेष देखे गए हैं।
पशु, शिकार और पौधों के चित्र
शिलाचित्रों में आदिमानव के बनाए कई चित्रावशेष हैं, जिनमें शिकार का दृष्य, विभिन्न पशुओं की आकृति, हाथ की छाप, पौधे के चित्र आदि हैं। इनमें से अधिकांश चित्रावशेष फीके पड़ चुके हैं, फिर भी इन्हें आसानी से पहचाना जा सकता है। इसके साथ ही एक स्थान पर ब्राह्मी लिपि में चित्रित हस्तलेख भी है। ये सभी गहरे भूरे और लाल रंग से बने हैं, जिनमें प्राय: गेरू (रेड ऑकर) का प्रयोग हुआ है।
चित्रावशेषों को लेकर अनुमान
– कुछ चित्रावशेष उत्तर पुरापाषाण युग (40 हजार वर्ष ईस्वी पूर्व से 10 हजार वर्ष ईस्वी पूर्व तक) के हैं।
– शेष चित्रावशेष मध्यपाषाण युग (10 हजार वर्ष ई.पू. से 5 हजार वर्ष ई.पू. तक) से ताम्ब्र युग (5 हजार वर्ष ई.पू. से 1200 वर्ष ई.पू. तक) के हैं।
– यहां पाए गए ब्राह्मी लिपि में चित्रित हस्तलेख सम्भवत: तीसरी से पांचवीं शताब्दी के हो सकते हैं।
बिजोलिया: एक नजर
उपरमाल के पठार पर स्थित बिजोलिया मेवाड़ रियासत का बड़ा ठिकाना रहा है। शिलालेखों के अनुसार बिजोलिया में चौहान, गुहिल, परमार तथा पंवार राजवंशियों का राज्य रहा है। यहां 11वीं-12वीं शताब्दी की ऐतिहासिक धरोहर मौजूद है, जिसमें जैन मंदिर, मंदाकिनी मंदिर, किला आदि है। इस क्षेत्र में बलुआ पत्थरों के निक्षेपों का अथाह भण्डार है, जो करीब 80 करोड़ वर्ष पुराने विन्ध्यन काल के हैं। ऐसे में यह क्षेत्र बलुआ पत्थरों के खनन के मामले में प्रदेश का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्र है। यहां करीब 1400 खदानें हैं। खास तरह का बलुआ पत्थर विदेश में निर्यात होता है। बलुआ पत्थरों में कई प्रकार की अवसादी संरचनाएं मिलती है।
टीम ने किया निरीक्षण
राजस्थान के कोटा, बूंदी, झालावाड़ में कई जगहों पर प्रागैतिहासिक कालीन चित्रावशेष पाए गए हैं, लेकिन बिजोलिया में मिले चित्रावशेषों के बारे में किसी को जानकारी नहीं है। हमारी टीम ने यहां का निरीक्षण का प्रागैतिहासिक कालीन चित्रावशेष होने की पुष्टि की है। पुरातात्विक नजर से देखें तो बिजोलिया में आदिमानवों के बनाए शैलचित्रों का पाया जाना बड़ी बात है।
डॉ. विनोद अग्रवाल, सेवानिवृत आचार्य (भूविज्ञान) एवं पूर्व अधिष्ठाता, सुविवि उदयपुर
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