यह दावा मेवाड़ क्षत्रिय महासभा का है। महासभा संस्थान के संरक्षक मनोहर सिंह थाणा, अध्यक्ष बालू सिंह कानावत, तेज सिंह बांसी, संमन्वयक डॉ. पुष्पेंद्र सिंह ने हवेली पर लगे निर्माण संबंधी सूचना पट्ट और पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र की वेबसाइट से की जानकारियों को भ्रामक बताते हुए सुधार की मांग की है। प्रो. राणावत का कहना है कि प्राचीन ऐतिहासिक गं्रथ वीर-विनोद में स्पष्ट उल्लेख है कि महाराणा अरिसिंह ने उज्जैन में मराठा युद्ध के बाद ठाकुर अमरचंद को पुन: प्रधानमंत्री बनाने के साथ यह हवेली उनके निवास के लिए दी था। इसका निर्माण महाराणा संग्राम सिंह के समय में पूरा हो चुका था। प्रो. राणावत का कहना है कि प्रधानमंत्री अमरचंद बड़वा उच्च कुलीन सनाढ्य ब्राह्मण थे। उनका नाम प्रधान अमरचंद सनाढ्य संदर्भित किया जाना चाहिए। ठाकुर कई थे, लेकिन रियासतकाल में प्रधान सिर्फ एक होता था। बड़वा शब्द यशोगान करने वालों के लिए प्रयुक्त होता है। प्रशंसनीय और उच्च व्यक्तित्व प्रधानमंत्री अमरचंद के लिए यह उपाधि उपयुक्त नहीं है।
यह है दावे का आधार
बागोर की हवेली का निर्माण यदि प्रधानमंत्री अमरचंद ने करवाया होता तो इसका नाम बागोर की हवेली की बजाय अमरचंदजी की हवेली या प्रधानजी की हवेली होता। जैसा कि उदयपुर में दूसरी हवेलियों के नाम हैं, जैसे पुरोहितजी की हवेली, कोठारीजी की हवेली, मेहताजी की हवेली आदि। यहां ज्यादातर प्रमुख स्थानों के नाम उनके निर्माणकर्ता से जुड़े हैं।
1769 में उज्जैन में मराठा सेना से मेवाड़ सेना की हार हुई। महाराणा अरिसिंह को मालूम था कि मराठा सेना मेवाड़ पर आक्रमण करेगी। महाराणा ने अमरचंद सनाढ्य के घर जाकर उन्हें वापस प्रधान बनने के लिए आमंत्रित किया और निवास के लिए प्रतिष्ठित बागोर की हवेली दी थी। इसका निर्माण इससे पहले महाराणा संग्राम सिंह करा चुके थे। हवेली में निवास करते हुए प्रधानमंत्री अमरचंद ने उदयपुर की रक्षा की कमान संभाली थी।
वीर विनोद विश्वसनीय ऐतिहासिक ग्रंथ है। इसकी जानकारियों को बतौर प्रमाण स्वीकार किया जा सकता है। बागोर ही हवेली का निर्माण महाराणा संग्राम सिंह ने ही कराया था। प्रधानमंत्री अमरचंद सनाढ्य ब्राह्मण थे, यह तथ्य सही है। पूर्व में ठाकुर शब्द का प्रयोग ब्राह्मणों के लिए किए जाने का प्रचलन रहा है।
डॉ. चंद्रशेखर शर्मा, इतिहासकार, उदयपुर
बागोर की हवेली में प्रधानमंत्री अमरचंद का निवास रहा। वह ब्राह्मण थे। यह तथ्य निर्विवाद है। माना भी यही जाता रहा है कि निर्माण प्रधानमंत्री अमरचंद ने करवाया था, लेकिन इसके सभी तथ्यों पर विचार कर वास्तविक निर्माता का इतिहास में उल्लेख होना चाहिए।
प्रो. के.एस. गुप्ता, इतिहासकार