पांच गुना बड़ी ताकत से 25 साल तक भिड़ते रहे प्रताप
छोटे बड़े संघर्ष के साथ ही हल्दीघाटी से लेकर दिवेर युद्ध तक नाक में कर रखा था दम
पांच गुना बड़ी ताकत से 25 साल तक भिड़ते रहे प्रताप
उदयपुर. महाराणा प्रताप भूमण्डल पर मानव जाति की स्वतंत्रता की अवधारणा को समझने और उसे सुप्रतिष्ठित करने वाले पहले महापुरूष थे। उनके व्यक्तित्व और कर्तृत्व का गहराई से अनुशीलन करने पर ऐसा लगता है कि प्रताप ने अपना संपूर्ण पुरुषार्थ मानव जाति की स्वतंत्रता को समर्पित कर दिया था। उनके युग की राजनैतिक वृत्ति और तत्कालीन हिन्दू शासकों की मनोवृत्ति के मद्देनजर महाराणा प्रताप के सोच एवं क्रिया-कलापों को देखें-परखें तो यह विश्वास नहीं होता कि एक राजपूत था, जो धन-धरती के लिए नहीं, पद-प्रतिष्ठा के लिए नहीं तथा परिवार एवं परिजनों के लिए नहीं, केवल मानव मात्र की स्वतंत्रता और अपनी संस्कृति की मर्यादाओं की रक्षा के निमित्त अपने युग के सर्वाधिक सम्पत्तिशाली एवं शक्ति सम्पन्न बादशाह की साम्राज्यवादी लिप्सा को चुनौती देने के लिए दृढ़ता के साथ खड़ा हो गया। ‘वह था महाराणा प्रताप!Ó इसीलिए महाराणा प्रताप वीर शिरोमणि हैं, प्रात: स्मरणीय हैं।
प्रताप न प्रलोभन के आगे झुके और न शक्ति के आगे टूटे। उन्होंने 1:5 की कम आनुपातिक सैन्य शक्ति की स्थिति में भी साम्राज्यवादी अकबर के साथ लगभग पच्चीस वर्ष तक उस दृढ़ता के साथ लोहा लिया कि अन्तत: बादशाह अकबर को मेवाड़ से पलायन करने के लिए बाध्य होना पड़ा। प्रताप का जीवन चरित्र एक प्रतिभा सम्पन्न अनोखे व्यक्तित्व को प्रस्तुत करता है। मेवाड़ के इतिहास का यह सत्य है कि महाराणा उदयसिंह ने कुमारावस्था में ही चितौडग़ढ़ छोड़ चितौडग़ढ़ की तलहटी में रहने का आदेश दिया था, इस कारण प्रताप का कुंवर पद का अधिकांश जीवन गढ़ की तलहटी में बीता। इस समयावधि में प्रताप ने मेवाड़ के सभी इलाकों में घूम-घूम कर मेवाड़ की जनता और पहाड़ी क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी समुदाय से घनिष्ठ सम्पर्क बनाया, जिसका लाभ उन्हें मुगल बादशाह अकबर के साथ संघर्ष के दौरान मिला। इस कालावधि में आदिवासी समुदाय से घनिष्ठता बढऩे के कारण ही प्रताप को ‘कीकाÓ नाम मिला। प्रताप ने कुंवर पदकाल में ही कई शौर्यपूर्ण कार्य कर वागड़, छप्पन और गोड़वाड़ क्षेत्रों पर विजय प्राप्त कर मेवाड़ राज्य सीमा और शक्ति को बढ़ाया। यही नहीं, इसी काल में प्रताप ने आदिवासी युवतियों की समाजकंटकों से रक्षा की, सिंह के साथ कुश्ती कर एक गोमाता के प्राणों की रक्षा की तथा अपने पिता महाराणा उदयसिंह और अपनी विमाता के प्राणों की रक्षा की। ऐसे कई अन्य वीरता, सेवा एवं दया के काम प्रताप ने कुमारावस्था में किए। प्रताप की युद्धनीति भी शोध का विषय है। प्रताप को वह कौनसा सैन्य प्रशिक्षण दिया गया था, जिसकी वजह से वे हर वक्त भाला, तलवार, बरछा एवं धनुष-बाण व ढाल आदि का बड़ी कुशलता से प्रयोग कर लेते थे, अपने घोड़े चेटक को जरूरत पडऩे पर निर्देशित करते थे। प्रताप के चरित्र में शौर्य, धैर्य एवं दृढ़संकल्प आदि गुणों के विकास में महाराणी अजबदे, अमोलकदे, चंपादे आदि का क्या योगदान था, इस शोधपरक कार्य किए जाने चाहिए।
प्रो. एस. सारंगदेवोत, कुलपति, राजस्थान विद्यापीठ विवि
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