– खेलगांव में सरकार ने 50 मीटर की शूटिंग रेंज स्वीकृत कर रखी है, लेकिन यहां पर केवल 10 मीटर की शूटिंग रेंज है। हालांकि ज्यादातर खिलाड़ी दस मीटर की रेंज के हैं, लेकिन कई नए खिलाड़ी 50 मीटर की रेंज के भी आगे आ रहे हैं, जो मेडल भी लाने लगे हैं। ऐसे में उन्हें प्रेक्टिस के लिए राजधानी जयपुर तक की दौड़ लगानी पड़ रही है।
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– राइफल इंडियन है जो ओपन साइड है, जबकि पीप साइड चाहिए। ओपन साइड में पीछे यू व आगे आई होता है। पीप साइड में पीछे सर्कल व आगे भी सर्कल होता है। टारगेट पर शूट करने की एक्यूरेसी ओपन साइड में इतनी नहीं होती है, जितनी पीप साइड में होती है। हालांकि यहां ओपन साइड से काम चला रहे हैं, जबकि प्रोफेशनल में केवल पीप साइड ही चलती हैं।
– इलेक्ट्रॉनिक टारगेट मशीन का मेंटेंनेंस समय पर नहीं होने से वह खराब हो जाती है। वॉल्टेज सही नहीं रहता। साथ ही सॉफ्टवेयर अपडेशन समय पर नहीं होते हैं। डेढ़-डेढ़ लाख के पांच और 12-12 हजार वाले 14 टारगेट मशीन है।
– वर्तमान में यहां नियमित 35 से 40 शूटर्स प्रेक्टिस के लिए आ रहे है, जबकि 50 जुड़े हुए है। सभी खुद की राइफल लेकर आते है।
नहीं है कम्प्रेस एयर सिस्टम यह डेढ़ लाख का मशीन है, इससे राइफल में एयर भरी जाती है, लेकिन यहां नहीं होने से प्रशिक्षक के निजी सिलेंडर्स से ये काम किया जा रहा है। करीब डेढ़ हजार तक का मासिक खर्च आता है।
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खिलाडिय़ों को खासी मशक्कत करनी पड़ती है, स्वयं के लाइसेन्ससुदा हथियार से राइफल पकडऩा सिखा रही हूं ।फि र ड्राय प्रेक्टिस करवाना पड़ता है। करीब एक महीने यहां प्रेक्टिस के बाद दो दिन जयपुर जगतपुरा शूटिंग रेंज में जाकर शॉट लगवा कर प्रेक्टिस करवानी होती है। यदि ये प्रेक्टिस नियमित हो जाए तो हमारे खिलाड़ी बेहतर कर सकते हैंं। 50 मीटर की इतनी कम प्रेक्टिस मिलने के बावजूद भी बच्चे मेडल ले कर आ रहे है। हुनर की हमारे पास कमी नहीं है। उदयपुर की आत्मिका गुप्ता दस मीटर रेंज में अभी इंडिया टीम तक पहुंची है।