राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में फेल खेलगांव में स्केटिंग रिंक के नाम पर करीब 160 मीटर का ट्रेक यानी सड़क बना रखी है। इस पर स्केटर्स भले ही स्केटिंग करते थे, लेकिन ये ट्रेक आगे की प्रतियोगिताओं के लिए किसी काम की नहीं है। राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के लिए कोटा स्टोन या समकक्ष स्टोन से तैयार ट्रेक बने रहते हैं। ऐसे में यहां जो स्केटर्स प्रेक्टिस कर रहे हैं, वह आगे चलकर इतनी कारगर साबित नहीं होती, जितनी कोटा स्टोन वाली होती है।
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खेलगांव में शुरुआत में करीब 70 स्केटर्स नियमित स्केटिंग के लिए पहुंचते थे, लेकिन अब केवल चार ही रह गए है। इस संबंध में प्रशिक्षक जितेन्द्रसिंह भाटी ने बताया कि बच्चे इस ट्रेक पर गिरकर घायल होने लगे थे। कई बच्चों को घाव हो गए। धीरे-धीरे अधिकांश ने ट्रेक ही छोड़ दिया। अब जो बच्चे आ रहे हैं, वह भी केवल एक्सरसाइज कर चले जाते हैं।
ऐसा है टे्रक – फिलहाल ट्रेक के नाम पर बनी हुई सड़क की गिट्टी बाहर आने लगी है, जैसे ही बच्चे इस पर स्केट करने के लिए आगे बढ़ते हैं वे गिरकर घायल होने लगते हैं। वाली बना रखी है, कुछ प्रतियोगिताएं जैसे रोड इवेंट के लिए ये ट्रेक काम आ सकता है, लेकिन इसे बेहतर होना चाहिए।
– ज्यादातर बच्चे सीबीएसई की प्रतियोगिताओं में आगे जाते हैं, स्टेट व नेशनल तक, यहां अधिकांश ट्रेक कोटा स्टोन के हैं।
—– स्केटिंग के लिए ये जरूरी…
स्केट सामान्य- 1 हजार से 1500 के बीच
इनलाइन स्केटिंग- सिंगल दो पहिए एक जूते में होते हैं- 2 से 4 हजार बच्चों की सेफ्टी पेड के लिए हेलमेट, एल्बो, नी पेड्स, हैंडसेट- पूरा सेट 7 सौ से करीब तीन हजार
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स्केटिंग रिंक उधड़ चुकी है। ऐसे में यहां कोई स्केटर्स अब आने के लिए तैयार नहीं है। पहले जहां 70 का रोल था, अब केवल चार ही रह गए है, जो प्रेक्टिस नहीं कर पाते हैं। इस टे्रक पर कई बच्चे स्केटिंग करने के दौरान गिरकर घायल हो चुके हैं। प्रेक्टिस के लिए टे्रक तो बेहतर होना ही चाहिए।
—- करीब 12 लाख के टेंडर किए गए हैं। पहले जिसके टेंडर थे वह ठेकेदार नहीं आने से काम आगे नहीं बढ़ पाया। कोशिश कर रहे हैं कि जल्द ही कोटा स्टोन लगे ताकि खिलाडिय़ों को सहूलियत मिले।
शकील हुसैन, जिला खेल अधिकारी
तीन बार टेंडर किए हैं, जो ठेकेदार आता है वह इसका काम नहीं कर पाता। ऐसे में हम एक बार फिर कोशिश कर रहे हंै कि इसका टेंडर कर इसे अच्छा करें, वैसे तो ये काम क्रीड़ा परिषद व खेल विभाग का है, लेकिन यूआईटी जनहित में ये काम कर रही है।