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उदयपुर

Rajasthan : आजादी के 77 साल बाद भी ये हाल, झोली की एम्बुलेंस में गंभीर रोगी और गर्भवती के जीवन की डोर

आजादी के 77 साल बाद भी ये हाल: आदिवासी बाहुल्य कलात पंचायत के हालात, 2700 की आबादी के लिए पक्की सड़क नहीं, ऊबड़-खाबड़ व पथरीले मार्ग से गुजरना मजबूरी

उदयपुरDec 03, 2024 / 06:45 pm

Shubham Kadelkar

मरीज को झोली में डालकर ले जाते हुए

गौतम पटेल/सराड़ा (सलूम्बर). एक ओर जहां राज्य व केंद्र सरकार की ओर से गांव-गांव, ढाणी-ढाणी में सड़क निर्माण के दावे किए जाते हैं। वहीं आदिवासी बाहुल्य इलाकों के हालात आज भी बदतर है। बात कर रहे हैं सलूम्बर जिले के सराड़ा पंचायत समिति की कलात ग्राम पंचायत की। जहां आजादी के 77 वर्ष बाद भी पक्की सड़क नहीं है। हाल ये हैं कि कोई बीमार हो या गर्भवती महिला, चिकित्सालय ले जाना हो तो झोली ही एकमात्र सहारा है। कई बार तो सड़क के अभाव में अस्पताल पहुंचाने में समय अधिक लगता है और गंभीर मरीज की मौत तक हो जाती है। यहां के लोगों को करीब 10-15 किलोमीटर पैदल चलने के बाद सड़क नसीब होती है। उसके बाद बीमार या गर्भवती को चावंड, झाडोल, देवपुरा, जावर माइंस या चणावदा के अस्पताल पहुंचाया जाता है।
ग्रामीणों के अनुसार कलात पूर्व में नठारा ग्राम पंचायत से जुडा था। जो कुछ वर्ष पूर्व अलग ग्राम पंचायत बनी। लेकिन मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। मोबाइल नेटवर्क तक नहीं होने से एकबारगी यहां के निवासियों का संपर्क अन्य गांवों से नहीं हो पाता।

पूरी पंचायत में एक इंच सड़क नहीं

ग्राम पंचायत कलात का पूरा क्षेत्र पहाड़ीनुमा है। कुछ दिनों पूर्व उदयपुर सांसद ने करीब छह किलोमीटर तक पैदल चलकर पूरे क्षेत्र का दौरा किया। जहां कहीं भी सड़क नजर नहीं आई। यह क्षेत्र नठारापाल के नाम से भी जाना जाता है। पंचायत में करीब 2700 लोग निवास करते हैं। जिनमें कलात फला, घोड़ा फला, राता खेत फला, ऐडा धावड़ा, हल्दुदरा, पुनावली, गोटा पानी, बामनिया, बुज फला, सुखा मुडा, तीखा फला, राणा कुडी घाटी, मोरिया भाटडा, खाखादरा फला सहित कई फलों में लोग रहते हैं।

इनका कहना है…

पूरी ग्राम पंचायत आदिवासी बाहुल्य है। बिखरी आबादी व पहाड़ियों में फैली हुई है। ग्रामीण आधारभूत सुविधाओं से वंचित है। खासकर सड़क को लेकर हमने कई बार संबंधित विभाग व जनप्रतिनिधियों को अवगत करवाया, लेकिन आज तक किसी ने ध्यान नहीं दिया।
-पिंकी मीणा, सरपंच, कलात

क्षेत्र में सड़कें नहीं होने से बीमार लोगों को झोली में डालकर करीब 15 से 20 किलोमीटर दूर इलाज के लिए ले जाना पड़ता है। लोगों को काफी परेशानी हो रही है। चुनाव के समय जनप्रतिनिधि आश्वासन देकर भूल जाते है।
-रामलाल मीणा, उप सरपंच, कलात

ग्राम पंचायत का गठन वर्ष 2015 में हुआ, लेकिन अभी तक आदिकालीन युग में जी रहे है। आज भी महिलाओं को डिलीवरी के लिए 8 से 10 किमी तक झोली में लेकर जाना पड़ता है। कई बार प्रसूताएं बीच रास्ते में दम तोड़ देती है।
-कलावती मीणा, पूर्व सरपंच, कलात

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