हर पांच साल में चुनाव वे पंच-सरपंच का करते हैं और सुविधाओं के लिए उन्हें उदयपुर विकास प्राधिकरण (यूडीए) की ओर ताकना पड़ता है। यूडीए के हालात यह है कि उनके पास इन इलाकों के लिए सबसे जरूरी सफाई व्यवस्था तक के लिए ठोस इंतजाम नहीं है। इसके लिए वे नगर निगम पर निर्भर हैं। ऐसे में इन इलाकों के रहवासी चकरघिन्नी हुए रहते हैं। दूसरी ओर यहां के बाशिंदे अलग-अलग कार्यों के लिए अलग-अलग एजेंसियों पर निर्भर है। जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए पंचायतों पर निर्भर हैं। पट्टे आदि बनवाने के लिए यूडीए के चक्कर लगाते हैं। कोई होटल, रेस्टोरेंट खोलना चाहे तो फूड लाइसेंस नगर निगम से लेना होता है। यही वजह है कि इन इलाकों में रहने वाले लोग भी यही चाहते हैं कि उनकी कॉलोनियों, बाजारों को नगर निगम में शामिल कर लिया जाए, ताकि वे पार्षद का चुनाव कर सकें और सफाई व्यवस्था सहित अपनी प्रमुख समस्याओं के लिए अलग-अलग संस्थाओं के चक्कर लगाने के बजाए निगम के जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों से अपनी बात कह सकें।
गौरतलब है कि शोभागपुरा, भुवाणा, सुखेर, सवीना, बड़गांव, बलीचा, बेदला सहित करीब तीन दर्जन गांव अर्से से उदयपुर शहर का हिस्सा बन चुके हैं, लेकिन दस्तावेजी तौर पर ये नगर निगम की सीमा में शामिल होने के लिए तरस रहे हैं। ये इलाके सरकारी रेकॉर्ड में गांव ही कहला रहे हैं। जबकि शोभागपुरा, बड़ी, बड़गांव और बेदला सहित कुछ ग्राम पंचायतों के सरपंच तो जिला कलक्टर को लिखकर भी दे चुके हैं कि उनकी ग्राम पंचायतों को नगर निगम क्षेत्र में शामिल किया जाए।
निगम के प्रस्ताव सरकारी गलियारों में खो गए
दरअसल, नगर निगम की ओर से वर्ष 2012 में राज्य सरकार को शहरी सीमा विस्तार के प्रस्ताव भेजे गए थे। जो 12 साल से सरकारी दफ्तरों में ही घूम रहे हैं। निगम की ओर से शहर के निकट वाले 34 राजस्व गांवों को नगर निगम की सीमा में शामिल करने के प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजे गए थे। वहीं यूडीए की पैराफेरी में 2008 में शामिल हुई ग्राम पंचायतों में से कई के सरपंच भी निगम की सीमा में शामिल होना चाहते हैं।
इनका कहना …
हमारा गांव अब उदयपुर शहर का ही हिस्सा है। कोई भी समस्या होने पर लोग ग्राम पंचायत में जाते हैं, लेकिन ग्राम पंचायत के अधिकार क्षेत्र में कुछ नहीं है। इसलिए पंचायत को नगर निगम में शामिल करना जरूरी है। यहां पानी और बिजली के बिलों के टेरिफ भी शहर के ही लागू होते हैं। – नरेंद्र त्रिवेदी, निवासी, बड़गांव कौन कह सकता है कि बेड़वास गांव है। जिम्मेदारों को यहां आकर देखना चाहिए। जब हम शहर में आ चुके हैं तो पहचान भी बदलनी चाहिए। ग्राम पंचायतों के पास वैसे भी अब न कोई अधिकार है और ना ही संसाधन। इसलिए अब इस इलाके को नगर निगम की सीमा में शामिल करने की आवश्यकता है।
– दीपक माली, निवासी, बेड़वास