कोटड़ा, मामेर, फलासिया, झाछ़ोल, ओगणा व खेरवाड़ा रेंज। इन इलाकों का जंगल गुजरात से सटा हुआ है। सबसे बड़ी बात यह है कि जंगल के पास हुए विकास और नई बनी सडक़ों ने तस्करों के लिए तस्करी के काम को आसान कर दिया। मामेर से निकलते ही सीधे गुजरात के खेड़ब्रह्मा तो कोटड़ा के आगे नदी पार करते ही और कुकावास वाले रास्ते को पार करते ही गुजरात लग जाता है। बरसों तक कोटड़ा क्षेत्र में रहे सेवानिवृत क्षेत्रीय वन अधिकारी राजेन्द्र मेहता बताते है कि जंगल घने होते है और स्टाफ के पास हथियार से लेकर दूसरे संसाधन नहीं होते है ऐसे में तस्कर भारी रहते है। वे कहते है कि स्टाफ की कमी और संसाधन सबसे बड़ा रोड़ा है। वन अधीनस्थ कर्मचारी संघ के अध्यक्ष मुबारिक हुसैन कहते है कि जंगल में चौबीस घंटे काम करने वाले वनकर्मियों को हार्ड ड्यूटी एलाउंस से लेकर उनको हथियार व संसाधन देने की मांग हम समय-समय पर करते आ रहे है। एक डंडे के जरिए वनकर्मी जंगल संभाल रहे है जिससे क्या होगा अंदाज लगा सकते है।
2. जून महीने में फलासिया पुलिस ने अवैध रूप से जमा की गई साढ़े आठ टन खैर की लकड़ी सहित बाइक जब्त करने के साथ ही तीन आरोपियों की गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तार किए गए आरोपियों में से एक आरोपी नाम बदल कर फर्जी तरीके से रह रहा था।
3. मार्च 2019 में एसओजी ने बड़ी कार्रवाई की और कीर की चौकी से चिकारड़ा में बीच में एक वाहन का पीछा कर करीब 42 लाख रुपए की खैर की लकड़ी जब्त की। पांच तस्करों को गिरफ्तार भी किया था।
4. पिछले दिनों ही झाड़ोल क्षेत्र में लकड़ी लेकर जा रहे तस्करों ने दो वन कर्मचारियों पर डम्पर चढ़ाने की घटना हुई,वनकर्मी गंभीर रूप से घायल हुए। बाद में पुलिस ने तीन तस्करों को गिरफ्तार किया।
5. पिछले दिनों ही भींडऱ इलाके में वन विभा कार्रवाई कर 2 टन खैर की लकड़ी जब्त की।
– वनरक्षकों की भर्ती जंगल के लिए की गई और कई को लगा रखा दफ्तरों में
– रिक्त पदों को भरने पर काम नहीं हुआ, सेवानिवृत जो हो रहे है उसके बदले भी स्टाफ नहीं मिल रहा है
– जंगल में तैनात स्टाफ के पास सुरक्षा के लिए डंडे के अलावा कुछ नहीं
– दो-दो या इससे ज्यादा रेंजों में गाडिय़ां दे रखी है, एक रेंज से गाड़ी मंगाए जितने तो तस्कर भाग निकले।
– नाके पर स्टाफ की कमी
– जंगल में मोबाइल को लेकर नेटवर्क की समस्या होने से सूचना आदान-प्रदान में समस्या।
वर्ष 2017 से 2019 के बीच दो सालों में करीब 6.46 स्कवायर किलोमीटर वन क्षेत्र कम हुआ है। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया देहरादून की रपोर्ट के अनुसार उदयपुर का जंगल क्षेत्र कम हुआ है। जंगल घटने का मतलब सीधे तौर पर पर्यावरण को नुकसान के साथ ही वन्यजीवों व पक्षियों का बसेरा भी खत्म होता जा रहा है।
आंकड़ों से समझे उदयपुर के जंगल को
जियोग्राफिकल एरिया… 11724… 11724
मध्यम क्षेत्र… 1212… 1213.88
खुला वन क्षेत्र… 1552… 1543.66
कुल वन क्षेत्र… 2764… 2757.54
झाड़ीदार जंगल… 270… 224.36
(क्षेत्र स्कवायर किमी में)
संभाग में जंगल की स्थिति
जिला… 2017 में कुल वन क्षेत्र… 2019 में कुल वन क्षेत्र
प्रतापगढ़… 1044… 1037.91
राजसमंद… 511… 521.79
बांसवाड़ा… 261… 268.42
डूंगरपुर… 291… 302.30
चित्तौडगढ़़… 989… 988.80
(क्षेत्र स्कवायर किमी में)
– राजकुमार सिंह, मुख्य वन संरक्षक (प्रादेशिक) उदयपुर संभाग
ग्राउंड पर काम करने वाले संसाधन से लैस हो असल में पान के कत्थे के लिए खैर की तस्करी होती है और इसके नियंत्रण को लेकर पहले से आज में बहुत काम हुआ है। सबसे बड़ी कमी है तो स्टाफ के पास संसाधन नहीं होना। रेंजों में जीप देने से लेकर जंगल में निगरानी करने वाले स्टाफ को हथियार देने के लिए सरकार को आगे आकर करना चाहिए। ग्राउंड स्तर पर काम करने वाले स्टाफ को प्रशिक्षण से लेकर संसाधन से लैस करना होगा।
– राहुल भटनागर, सेवानिवृत मुख्य वन संरक्षक उदयपुर