अस्पताल की चादरों के पीछे दूसरा खेल धोबीघाट पर सुबह 9 से 10 सरकारी अस्पताल की चादरों व कपड़ों की धुलाई का काम चलता है। आउटडोर बंद होने के बाद धोबी अपने-अपने हिसाब से होटलों, धर्मशालाओं व निजी अस्पतालों के कपड़ों की गठरियां लेकर पहुंचते हैं। वे सरकारी साबुन-सर्फ से बाहरी कपड़े धोते हैं। दिखावे के लिए वे मुर्दाघर व उसके बाहर अस्पताल की चादरों को आगे सुखाकर उनके पीछे अन्य कपड़ों को सुखाते हैं। संवाददाता ने जब वहां सुख रहे नेपकिन, रंगीन चादरें व अन्य कपड़ों के बारे में पूछा तो वहां धोबी सकपका गए और तुरत फुरत उन्हें समेट लिया।
चोरी छिपे सरकारी बिजली से इस्त्री धोबीघाट में कपड़े धुलाई के अलावा इस्त्री भी होती है। शाम पांच बजे के बाद सरकारी बिजली खर्च कर अस्पताल परिसर में ही रहने वालों परिवारों एवं अन्य के कपड़ों पर प्रेस कर चांदी काटी जा रही है।
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अस्पताल अधीक्षक लाखन पोसवाल से सीधी बातचीत
जवाब: पत्रिका से जानकारी मिलने के बाद निरीक्षण किया तो वहां मुझे बाहर के कपड़े नहीं मिले।
– धुलाई बिल का भुगतान कैसे होता है? जवाब: श्रमिकों की हाजिरी आती है, उसके बाद नर्सिंग अधीक्षक जांच कर बिल का भुगतान करते हैं।
जवाब: ओटी में धुलने वाले कपड़ों के लिए प्रेस दे रखी है। बाहर के कपड़े प्रेस हो रहे हैं, तो दिखवाता हूं।
काला साबुन चूरा – 400 करीब किलो ग्राम
सोड़ा- 200 किलो ग्राम
सोड़ाकास्टिक सोड़ा- करीब 50 किलो ग्राम —
यह है धोबीघाट का लेखा-जोखा
अस्पताल के सभी वार्डों के कुल चादरें-1500 से 2000
– बाहरी चादरें धुलती है प्रतिदिन- 800 से 1000
– तौलिये, नेपकिन, रंगीन चादरे आदि की होती है धुलाई